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________________ जिन सूत्र भागः पागलपन हो गया कि बीमारी हो गई कछ, तो रोक लेते हैं। निखार लो, रो लो! कहीं ऐसा न हो कि वह आ जाये और मैंने उनको कहा कि अब यह खतरनाक कर रहे हो। एक तरफ तुम्हारी आंखें गीली न हों। तो पैदा कर रहे हो-प्रार्थना, पूजा, ध्यान से और फिर रोक है खबर गर्म उनके आने की रहे हो। यह तो विरोधाभासी कृत्य हो जायेगा। यह तो तुम्हारी आज ही घर में बोरिया न हुआ। जीवन-ऊर्जा में विरोध, संकट पैदा हो जायेगा। यह तो बिछाने को आसन घर में नहीं है और उनके आने की खबर आ खरतनाक है। प्रसन्न होओ, आंसुओं को आनंद से बहने दो! | गई है! आनंद के लक्षण हैं आंसू! लेकिन हमने एक ही ढंग के आंसू कोई फिक्र नहीं, बिना आसन के चल जायेगा। लेकिन और जाने हैं—वे दुख के आंसू हैं। | भी कुछ ज्यादा महत्वपूर्ण जरूरी चीजें हैं। आदमी ने कई महत्वपूर्ण चीजों के अनुभव खो दिये; उनमें एक | पलकन पग पोंछू आज पिया के महत्वपूर्ण आंसू भी हैं। आंसू को सीमित कर लिया है; जब अंसुअन पूर्छ हाल हिया के। दुखी होते हैं, तभी रोते हैं। आंसू का दुख से कुछ लेना-देना नहीं | बोरिया न हुआ, चलेगा। लेकिन कहीं ऐसा न हो कि पैर है। आंसू का संबंध तो अतिरेक से है। दुख ज्यादा हो जाये तो पोंछने के लिए पलकें न हों! कहीं ऐसा न हो कि हाल हिया के आंसू की जरूरत आ जाती है। आनंद ज्यादा हो जाये तो आंसू पूछने के लिए आंसू न हों! की जरूरत आ जाती है। जो इतना ज्यादा हो जाये कि प्याली के पलकन पग पोंछू आज पिया के ऊपर से बहने लगे, तो आंसू आते हैं। आंसू का कोई संबंध न अंसुअन पूर्वी हाल हिया के। दुख से है न सुख से है-अतिरेक से है। उसकी तैयारी करो! निमंत्रण भेज दिया, तो आता ही होगा। तो तुम कभी आनंद में रोये या नहीं? अगर आनंद में नहीं रोये बुलाया है तो आयेगा ही। अब तुम उसके आने की चिंता न तो तुमने आंसुओं की जो सबसे ऊंची चरम अनुभूति थी वह चूक | करके, अपनी तैयारी करो। गये। तब तुमने बहुत साधारण-सी अनुभूति दुख की जानी। और बड़ी से बड़ी तैयारी है कि तुम हृदय भरकर रो सको, कि और दुख के कारण, लोग कहते हैं कि हिम्मत रखो, रोओ मत! तुम परिपूर्ण डूबकर नाच सको, कि अवाक, आश्चर्यचकित और लोग कहते हैं, मर्द बनो, रोओ मत! यह क्या बच्चों के जैसे घड़ियां बीत जायें और तुम ठगे-से रह सको! या स्त्रियों जैसे रोने लगे? तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई! आंसू का जो एक और अनूठा रूप है—आनंद का, अहोभाव भूलती सी जवानी नई हो उठी का-उससे मनुष्यता वंचित ही हो गई है। जिस दिवस प्राण में नेह बंसी बजी . नारद ने अपने सूत्रों में कहा है: भक्त रोमांचित होता! बालपन की रवानी नई हो उठी आंसुओं से भर जाता! गदगद हो जाता! कंपित होने लगती कि रसहीन सारे बरस रस भरे उसकी देह ! रो-रोआं पुलकित हो जाता! हो गए, जब तुम्हारी छटा भा गई तो जिसको समर्पण में, शरणागति में, आनंद आ रहा है, वह तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई! ध्यान की फिक्र न करे। प्रार्थना! जलाये धूप-दीप! नाचे। भक्त तो यह मानकर ही चलता है कि तुम चल ही पड़े रोये! पुलकित हो! थोड़े क्षणों को पागल होने की कला सीखे! होओगे! खबर मिल ही गई होगी तुम्हें! थोड़े क्षणों को भूले समझदारी और संसार! थोड़ी देर को मीरा वह तैयारी में जुट जाता है। बने! लोक-लाज खोई! साधक तो भगवान को खोजता है; भक्त तो भगवान को ध्यान की कोई जरूरत नहीं है-प्रार्थना की जरूरत है। ध्यान | मानता है। साधक को तो अभी तय करना है कि भगवान है या है संकल्प के मार्ग पर। प्रार्थना है समर्पण के मार्ग पर। इसके नहीं। भक्त को उतना तो तय है कि भगवान है; अब इतना ही पहले कि परमात्मा आये, प्रार्थना खूब कर लो, आंखों को खूब | देखना है कि मेरी पात्रता है या नहीं। इस भेद को स्मरण रखना। 446 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340120
Book TitleJinsutra Lecture 20 Palkan Pag Ponchu Aaj Piya ke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size33 MB
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