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________________ पलकन पग पोंछु आज पिया के जल्दी ही इस शून्य का चेहरा बदलना शुरू हो जायेगा। अगर तुम्हें आग में डाले। बड़ी जलन होगी, बड़ी पीड़ा होगी। उस तुमने इसे स्वीकार किया तो इस शून्य में तुम्हें सौंदर्य दिखाई पड़ने | पीड़ा के बिना कोई भी जन्मा नहीं है। उस पीड़ा के बिना किसी लगेगा। जिसे हम स्वीकार करते हैं, उसमें सौंदर्य दिखाई पड़ने को नये जन्म का आविर्भाव नहीं हुआ है। लगता है। इसलिए तो अपनी मां किसी को असुंदर नहीं मालूम हए होश गुम तेरे आने से पहले होती। अपना बेटा किसी को असुंदर नहीं मालूम होता। जिसे | हमीं खो गये तुझको पाने से पहले हम स्वीकार करते हैं, वहां सौंदर्य का आविर्भाव हो जाता है। हुए तुझ बिन बसर क्या बताऊं सौंदर्य हमारे स्वीकार से पैदा होता है। किसे होश था तेरे आने से पहले। सौंदर्य कहीं बाहर कोई गण नहीं है हमारे स्वीकार की छाया हए होश गम तेरे आने से पहले। है। स्वीकार करो-और सौंदर्य पूर्ण बनने लगेगा। स्वीकार उसके आने के पहले तुम्हारा होश भी खो जायेगा, तम भी खो करो-और सौंदर्य में बड़ा आनंद आने लगेगा। स्वीकार | जाओगे। क्योंकि तुमने जिसे अब तक समझा है 'मैं', वह सिर्फ करो-और शून्य शांति, और परम शांति का धाम बन जायेगा। कूड़ा-कर्कट है। वही तो बाधा है। अगर अस्वीकार किया तो दौड़कर बाहर जाने के अतिरिक्त कोई हमीं खो गये तुमको पाने से पहले। उपाय नहीं है। और बाहर से ही तो थककर भीतर आ रहे थे। एक बड़ी महत्वपूर्ण बात याद रखना H आदमी कभी परमात्मा फिर बड़ी विक्षिप्तता पैदा होगी। से मिलता नहीं। जब तक आदमी है तब तक परमात्मा नहीं। शून्य परमात्मा का पहला अनुभव है। पूर्ण परमात्मा का | और जब परमात्मा प्रगट होता है, आदमी खो चुका होता है। अंतिम अनुभव है। शून्य की तरह परमात्मा आता है; पूर्ण की आदमी तो बीमारी है। मिट जाने पर उस परम धन्यता का तरह विराजमान होता है। शून्य की तरह आता है, क्योंकि हमारा आविर्भाव होता है। तुम जब खाली कर देते हो सिंहासन, तभी मिटना जरूरी है। शून्य की तरह आता है, क्योंकि हम सिर्फ | परमात्मा उस पर विराज पाता है। तुम जब तक बैठे हो, तब तक कूड़ा-कर्कट का ढेर हैं। हमें आग देना जरूरी है, ताकि हम जल विराज नहीं पाता। जायें और वही बचे जो कुंदन है। सिर्फ शुद्ध स्वर्ण बचे और ये पंक्तियां बड़ी मधुर हैं: कचरा जल जाये। हुए होश गुम तेरे आने से पहले तो जब सुनार सोने को आग में डालता है तो सोना भी घबड़ाता हमीं खो गये तुझको पाने से पहले होगा, चिंतित होता होगा, बच जाना चाहता होगा, अंगीठी के हुए तुझ बिन बसर क्या बताऊं बाहर आ जाना चाहता होगा। लेकिन उसे पता नहीं कि सुनार की -दिन तेरे आने के पहले कैसे बीते, यह भी कैसे बताऊं! आकांक्षा क्या है। सुनार सोने को नहीं जलाना चाहता। और किसे होश था तेरे आने से पहले! सुनार भलीभांति जानता है कि सोना जलता नहीं। जो जल जाये न तो तेरे आने के पहले होश था, क्योंकि हम बेहोश थे संसार वह सोना नहीं है। वह डाल ही रहा है आग में इसलिए कि जो में; न तेरे आने के बाद होश रहा, क्योंकि हम बेहोश हुए तुझमें। सोना नहीं है, उससे सोना अलग हो जाये। तो यह जो इन दोनों बेहोशियों के बीच-संसार की बेहोशी शून्य आग है। और परमात्मा उन्हीं को डालता है जिन पर और परमात्मा की बेहोशी; संसार की शराब और परमात्मा की उसकी अनुकंपा है। शराब-इन दोनों मधुशालाओं के बीच जो थोड़ी-सी यात्रा है पात्रता से ही शून्य उत्पन्न होता है। घबड़ाना मत! छलांग वहीं थोड़ा-सा होश रहता है। लोग या तो धन में खोये हैं, पद में लगाकर अंगीठी के बाहर मत गिर जाना। नहीं तो पहले से भी खोये हैं, मद से भरे हैं; और या फिर लोग परमात्मा में खो जाते ज्यादा कूड़ा-कर्कट संगृहीत हो जायेगा। स्वीकार करना। हैं। दोनों के बीच में, दो मधुशालाओं के बीच में जो थोड़ा-सा भीतर की यात्रा पर शून्य मिला—यह पहली खबर मिली कि फासला है, वहीं थोड़ा-सा होश रहता है। तुम पात्र होने लगे। कम से कम तुम इतने पात्र हुए कि परमात्मा 'सरोज' अभी उसी यात्रा पर है-दो मधुशालाओं के बीच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340120
Book TitleJinsutra Lecture 20 Palkan Pag Ponchu Aaj Piya ke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size33 MB
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