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________________ जिन सूत्र भागः खड़े हो, उसकी चैथी पर आंखें गड़ाकर देखना जरा थोड़ी 'आत्मा ज्ञायक-रूप में ही ज्ञात है और वह शद्ध अर्थ में देर-एक दो तीन मिनट। वह फौरन लौटकर देखेगा और क्रोध ज्ञायक ही है। उसमें ज्ञेयकृत अशुद्धता नहीं है।' से देखेगा। मनोवैज्ञानिक ने इस पर बहुत-से प्रयोग किये हैं। / यह बहुत मूलभूत बात है। इसको शाब्दिक जाल में खो मत क्या मामला है? आदमी किसी के गौर से देखने को, बेचैन देना। इसको ज्ञान के दांव-पेचों में मत खो देना। क्योंकि इस पर क्यों हो जाता है, बर्दाश्त क्यों नहीं करता? क्योंकि जब भी कोई बड़े दांव-पेंच चलते रहे हैं। पंडितों ने बड़े अर्थ किये हैं, बड़ी तुम्हें गौर से देखता है, बहुत गौर से देखता है, तो वह तुम्हें वस्तु व्याख्याएं की हैं-पक्ष-विपक्ष में। क्योंकि पंडितों का अपना में रूपांतरित कर देता है। वह तुम्हारे ज्ञायक-स्वभाव को नष्ट हिसाब है। वे कहते हैं, ज्ञायक, बिना ज्ञेय के ज्ञायक अकेला हो करता है। वह तुम्हें ज्ञेय बना देता है, आब्जेक्ट। जैसे कुर्सी को कैसे सकता है? तर्कगत संदेह उठाते हैं, जब ज्ञेय नहीं है तो कोई देख रहा है, मकान को कोई देख रहा है, वृक्ष को कोई देख ज्ञायक कैसा? जब ज्ञान नहीं है तो ज्ञायक कैसे? रहा है-ऐसे ही जब तुम्हें कोई देखता है, तब तुम्हारा तो दार्शनिकों का एक समूह रहा है जो कहता है, जब ज्ञेय और ज्ञायक-स्वरूप नष्ट होता है। तुम्हें ऐसा लगता है कि मुझे वस्तु ज्ञान खो जायेंगे, तो ज्ञायक भी खो जायेगा, अंधकार छा समझा जा रहा है; जैसे मैं कोई देखने की वस्तु है। | जायेगा। शायद तर्क से उनकी बात ठीक भी लगती हो। लेकिन हां, कोई तुम्हें बहुत प्रेम से देखे तो बेचैनी नहीं होती। जिससे जो अनुभव है, वह तर्क के थोड़े बाहर है। और महावीर को तर्क तुम्हारा लगाव हो, तो बेचैनी नहीं होती। क्योंकि तुम जानते हो, | में कोई रस नहीं है। वह सिर्फ वक्तव्य दे रहे हैं, जो उन्होंने जाना वह तुम्हारे शरीर को नहीं देख रहा। तुम जानते हो, वह तुम्हें है। मैं भी तुमसे कहता हूं, ज्ञायक बच रहता है। ज्ञान भी खो वस्तु नहीं बना रहा। तुम जानते हो, उसकी आंखें तुम्हारे जाता है। ज्ञेय भी खो जाता है। ज्ञायक-स्वभाव को खोज रही हैं; तुम्हारी अंतरात्मा को खोज और इसलिए अगर खोजना हो तो तर्कजाल में मत पड़ना। रही हैं। उसकी आंखें तुम्हारे भीतर जाकर तुम्हारी खोज में हैं। थोड़ी साधना की दिशा में कदम उठाना। तुम, जिसको कि विषय-वस्तु बनाया नहीं जा सकता, वह उसके | अल्फाज के पेचों में उलझता नहीं दाना साथ संग-साथ जोड़ने की आकांक्षा रखता है। इसलिए प्रेम के | गव्वास को मतलब है सदफ से कि गहर से क्षण में ही आंख बेहूदी नहीं मालूम पड़ती। अन्यथा आंख, अगर शब्दों की उलझनों में समझदार नहीं उलझता। गौर से कोई देखता चला जाये तो हिंसक हो जाती है; अभद्र अल्फाज के पेचों में उलझता नहीं दाना। मालुम होने लगती है; शिष्टाचार के बाहर हो जाती है। -वह जो बुद्धिमान है, वह शब्दों के दांव-पेंच में नहीं जब भी किसी व्यक्ति को देखो तो उसे वस्त बनाने की चेष्टा उलझता।। मत करना। अन्यथा तुम हिंसा से देख रहे हो। किसी व्यक्ति को गव्वास को मतलब है सदफ से कि गुहर से। साधन की तरह मत देखना, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति साध्य है, -वह जो गहरा गोता लगानेवाला है, उसे मतलब मोतियों से परम साध्य है। किसी व्यक्ति को ऐसा मत देखना कि इसका है या सीपियों से? वह मोती तलाशता है। जैसे मोती सीपी में क्या उपयोग है, कि यह आदमी पद पर है, काम पड़ेगा, जय राम | छिपे होते हैं, लेकिन सभी सीपियों में नहीं छिपे होते; कुछ जी कर लो; कि यह आदमी पद पर है, थोड़ी खुशामद करो; कि सीपियां खाली होती हैं, कोई मोती नहीं होता-कुछ शब्द खाली इस आदमी के पास धन है, कभी जरूरत पड़ सकती है कि यह होते हैं, उनमें कोई मोती नहीं होता। पंडितों के शब्द सीपियों की आदमी शक्तिशाली है, दोस्ती बनाना काम की बात होगी। तरह हैं; उनमें कोई मोती नहीं होता। क्योंकि मोती तो अनुभव से किसी व्यक्ति को जब तुम साधन की तरह देखते हो, तब भी ढालना होता है। मोती तो प्राणों से ढालना होता है। ये महावीर तुम हिंसा कर रहे हो। क्योंकि वह ज्ञायक-स्वरूप जो भीतर के वचन सीपियां नहीं हैं। मोती हैं, और तुम इन मोतियों का अर्थ छिपा है, साध्य है-आत्यंतिक साध्य है। उसे साधन नहीं | तभी समझ पाओगे, जब तुम भी इन्हें ढालने में लगोगे। बनाया जा सकता। मेरे देखे, जब तक तुम किसी अर्थ में महावीर जैसे न होने लगो 14201 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340119
Book TitleJinsutra Lecture 19 Dharm ki Mul Bhitti Abhay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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