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________________ जिन सूत्र भागः1 4 सब को फेंक देना। इसको निखारना है। इस सोने में मिट्टी मिली नहीं है कि तुम कुछ और हो गये हो जो तुम नहीं हो। भूलने का है, माना; मिट्टी को काट डालना है, सोने को बचाना है। तो इतना ही अर्थ है कि तुमने कुछ और समझ लिया है। हो तो तुम | दुनिया में कुछ लोग हैं जो इसी को प्रेम समझ रहे हैं। वे गलत। वही जो हो। जैसे आज रात तुम यहां सोओ और सपने में देखो, और दुनिया में कुछ लोग हैं जो मिट्टी के कारण इस पूरे प्रेम को | कलकत्ते में हो, तो कोई कलकत्ते पहुंच नहीं गये। कोई लौटने के फेंक देने को कहते हैं। वे भी गलत; पहले से भी ज्यादा गलत। | लिए तुम्हें कोई हवाई जहाज नहीं पकड़ना पड़ेगा। कोई हिलाकर क्योंकि मिट्टी के बहाने कहीं सोने को मत फेंक देना! जगा देगा, तुम पूना में जगोगे, कलकत्ते में नहीं जगोगे। तुम यह अहिंसा की धारणा में वही हो गया है। फेंक ही दो इस प्रेम न कहोगे कि यह क्या मुसीबत कर दी। तुम भागकर स्टेशन भी को; इसमें खतरा है, इसमें उपद्रव है, इसमें तनाव है, परेशानी न जाओगे कि अब मैं पकडूं ट्रेन पूना जाने की, इस आदमी ने है, अशांति है। फेंक ही दो। लेकिन साथ ही सोना भी चला कलकत्ते में जगा दिया। सपने में कलकत्ते में थे। यह सिर्फ जाता है। खयाल था। असलियत में तो तुम पूना में ही हो। मैं तुमसे कहता हूं, ये दोनों अतियां हैं, इनसे बचना। इसमें से | परमात्मा को खोया जा नहीं सकता। हो तो तुम परमात्मा में मिट्टी तो काटनी है-घृणा काटनी है, क्रोध काटना है, मत्सर, | ही। सपने तुम कोई भी देख लो। और सपना तुम्हारी स्वतंत्रता ईर्ष्या अलग करनी है—प्रेम को निखारना है। है। और सपने बड़े मधुर हैं। और सपने एकदम बुरे भी नहीं हैं, जीवन एक प्रयोगशाला है प्रेम को निखार लेने की। और क्योंकि इन्हीं सपनों के माध्यम से तुम अपने से अपने को दूर कर धन्यभागी हैं वे जो अपने प्रेम को पूरा निखार लेते हैं। उस प्रेम के लेते हो, फासला कर लेते हो। फिर मिलन का मजा आ जाता निखरे रूप में ही जगत जैसा दिखाई पड़ता है उसका नाम है। जैसे मछली सागर में ही रहती है तो सागर को भूल ही जाती परमात्मा है। उस प्रेम के निखरे रूप में ही तुम जिस नियति को है, सागर का पता ही नहीं चलता। जरा फेंक दो मछली को उपलब्ध होते हो, उसका नाम आत्मा है। किनारे पर, तड़फती है तब उसे पहली दफा याद आती है कि सागर क्या है। दूसरा प्रश्नः जो दीया तूफान से बुझ गया उसे फिर जलाकर तुम अपने सपनों के तट पर तड़फ रहे हो। यह तड़फ तुम्हें फिर क्या करूं? जो स्वभाव स्वप्न में खो गया, उसे वापस जगाकर सागर में ले जायेगी। अब तुम पूछते हो कि क्या फायदा जो क्या करूं? आप कहते हैं तो मान लेता हूं कि मैं ही परमात्मा दीया तूफान से बुझ गया...?' बुझा नहीं है। कोई तूफान हूं, लेकिन जो परमात्मा घर से ही भटक गया, उसे घर वापिस तुम्हारे दीये को बुझा नहीं सकता; अन्यथा तूफान तो इतने बुलाकर क्या करूं? हैं...। कोई तूफान तुम्हारे दीये को नहीं बुझा सकता। किसको पता चल रहा है यह? यह कौन कह रहा है कि क्या करूं उस ऐसा प्रश्न बहुतों के मन में उठता है, स्वाभाविक है। लेकिन दीये को फिर से जलाकर जिसको तूफान ने बुझा दिया? यह जो तुम जीवन की जटिलता को नहीं समझ रहे हो। स्वभाव इसीलिए कह रहा है वही तो तुम्हारा दीया है-यह तुम्हारा जो खो गया है, क्योंकि बिना खोये तुम उसे जान ही न सकोगे। वह चैतन्य-भाव है। यह कौन कह रहा है कि क्या फायदा उस सदा से है, तुम उसके प्रति अंधे हो जाते हो। उसे खोना जरूरी कौन है जो कह रहा है? है, ताकि तुम पा सको। पाने के लिए खोना अनिवार्य है। खोकर यही तुम्हारा परमात्म-भाव है। यह साक्षी-भाव, यह चैतन्य, भी तुम वस्तुतः थोड़े ही खोते हो, क्योंकि स्वभाव तो वही है जो यह ज्ञान, यह बोध, यह ज्योति। दीया बुझता नहीं। यह दीया खोया न जा सके। बुझनेवाला दीया नहीं है। और बुझ जाता तो इसके जलाने के विस्मरण का नाम खोना है। तुम भूल गये हो। और यह भूलने फिर कोई उपाय न थे। बुझ जाता तो तुम होते ही न। बुझ जाता की बात अत्यंत आवश्यक है समझ लेनी। भूलने का अर्थ यह तो सोचनेवाला भी न होता कि कैसे इसे जलाऊं। तुम हो। तुम 356 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340116
Book TitleJinsutra Lecture 16 Utho Jago Subah Karib Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size38 MB
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