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________________ जिन सत्र भाग : 1 तुम्हारा होने का केंद्र है। तो दूसरे में भी तुम्हें जब अपना केंद्र __तुमने जो चोट दूसरे को मारी है, वह क्रोध में तुम्हीं को लग गई दिखाई पड़ने लगे, तब महावीर कहते हैं, तुम जागे। है। महावीर का यह मूलभूत आधार है। अगर तुम दुखी हो तो अहिंसा का पूरा शास्त्र दूसरे में भी स्वयं को देखने का ही | तुमने किसी को दुख देना चाहा था; अन्यथा तुम दुखी न हो शास्त्र है। लेकिन इस दूसरे को देखने को एक परमात्मा को सकते थे। तुम पीड़ित हो, परेशान हो, चिंताग्रस्त हो, संताप से महावीर नहीं मानते कि परमात्मा सब में छाया हआ है। महावीर भरे हो, चैन खो गया, शांति खो गई, जीवन की प्रफुल्लता खो मानते हैं, तुम्हीं दूसरे से जुड़े हो और दूसरा तुमसे जुड़ा है। जीवन | गई है, तो जरूर यही तुमने जीवन के साथ किया है। जीवन के एक अंतरात्माओं का अंतर्जाल है; अंतरात्माओं का अंतर्संबंध साथ तुम जो करते हो, उसी के प्रतिफल तुम्हें मिलते हैं। . है। जैसे मकड़ी का जाला होता है; एक धागे को हिला दो, पूरा हमारी हालत उलटी है। साधारणतः हम ऐसा सोचते हैं कि जाला हिल जाता है—ऐसे ही एक व्यक्ति की चेतना को हिला दूसरे हमें दुखी कर रहे हैं। दूसरे तो केवल तुमने जो दिया था दो, सारा अस्तित्व हिल जाता है। एक वृक्ष को चोट पहुंचा दो, | वापिस लौटा रहे हैं। तुम्हारी धरोहर तुम्हें सौंप रहे हैं। और अगर चोट सभी पर फैल जाती है। क्योंकि हम अलग-थलग नहीं हैं। तुमने ऐसा देखा कि दूसरे तुम्हें दुखी कर रहे हैं तो तुम्हारी पूरी हम टूटे-टूटे नहीं हैं। मेरे और तुम्हारे बीच कोई दीवाल नहीं है। जीवन-दिशा भ्रांत हो जाएगी। तब तुम कभी सुखी न हो जो मुझे घटेगा, वह तुम्हें भी घटेगा। जो तुम्हें घटेगा, वह मुझ सकोगे। क्योंकि दूसरों को तुम कैसे बदलोगे? अपने को ही तक भी आ जाएगा। जैसे हम सागर में एक कंकड़ को फेंक दें, | बदलना इतना मुश्किल है, दूसरों को तुम कैसे बदलोगे? फिर लहरें उठती हैं. दर-दिगंत तक फैलती चली जाती हैं। अगर मैंने दसरा कोई एक थोड़ी है, अनंत हैं। इस अनंत को तुम कैसे तुम्हें चोट पहुंचाई तो एक कंकड़ फेंका सागर में। माना, तुम्हारी बदलोगे? और इसको बदलने के लिए तो अनंत काल लग तरफ फेंका था, लेकिन उसकी लहरें सभी को आंदोलित करेंगी। जाएगा। अगर बदल भी पाए तो इतना समय लग जाएगा...! उन सभी में मैं भी सम्मिलित हूं। एक तो बदलना असंभव, बदल भी लिया तो अनंत काल तुम तो जो दख देता है. वह अपने हाथ से अपने लिए दख निर्मित | दख भोगते रहोगे। करता है। जो सुख बांटता है, वह अपने हाथ से अपने लिए सुख / यहीं मार्क्स और महावीर की दृष्टि में भेद है। मार्क्स कहता है, निमंत्रित करता है। तुम जो दोगे वही तुम्हें मिलेगा। जो तुमने समाज जुम्मेवार है, अर्थव्यवस्था जुम्मेवार है। इसे बदल दो, दिया था पहले वही तुम पा रहे हो। किया तुमने दूसरे के साथ सब सुख हो जायेगा। परमात्मा को मनुष्य से अलग दूर ऊपर था, हो गया तुम्हारे साथ। आकाश में माननेवाले कहते हैं, प्रार्थना करो, पूजा करो, सब महावीर कहते हैं, तुम्हारे अतिरिक्त यहां कोई नहीं है। तो तुम ठीक हो जायेगा। गंगा-स्नान करो, सब ठीक हो जायेगा। वे भी जो भी करोगे, अपने ही साथ कर रहे हो। | बड़ी झूठी बातें हाथ में दे रहे हैं। हमारी हालत ऐसी है, जैसे तुमने उस शेखचिल्ली की कहानी महावीर सीधी बीमारी का निदान करते हैं। वे कहते हैं, न तो सुनी होगी। वह बैठा था, शांति से राह चलते लोगों को देख रहा कोई परमात्मा ऊपर बैठकर तुम्हें दुख दे रहा है। इसलिए तुम्हें था। एक मक्खी उसे परेशान करने लगी, आकर नाक पर बैठने दुख नहीं दिया जा रहा है कि तुमने प्रार्थना नहीं की है, कि तुमने लगी। एक-दो दफे उसने झपट्टा मारा, लेकिन मक्खियां जिद्दी पूजा नहीं की है। ऐसा परमात्मा भी क्या परमात्मा होगा जो होती हैं। जैसे ही उसने झपट्टा मारा, मक्खी फिर आकर नाक पर | तुम्हारी पूजा की अपेक्षा और आकांक्षा रखता हो, और जो बैठ गई। फिर उसे क्रोध आने लगा। यह छोटी-सी मक्खी और इसलिए नाराज हो जाता हो कि तुम ठीक से पूजा नहीं कर रहे, उसे सता रही है! उसका क्रोध बढ़ता चला गया। उसने और प्रार्थना नहीं कर रहे, तुम नियम और व्यवस्था से नहीं चल रहे! झपट्टे जोर से मारे। फिर उसके बर्दाश्त के बाहर हो गया। पास ऐसा परमात्मा तो बड़ा अहंकारी होगा। ऐसा परमात्मा तो स्वयं में ही पड़ी हुई छुरी थी, उठाकर छुरी उसने मक्खी को मारी। | दुखी होगा, तुम्हें कैसे सुखी कर पाएगा? थोड़ा सोचो, अगर मक्खी तो उड़ गई, नाक कट गई। परमात्मा तुम्हारी प्रार्थनाओं से सुखी होता हो, तो मरा जाता 276 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340113
Book TitleJinsutra Lecture 13 Vasna Dhapor Shankh Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size33 MB
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