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________________ H HTRARA वासना ढपोरशंख है I ऐसे ही सब बैठे हैं अपने दरवाजों पर, राह में आंखें बिछाए, | कहा, 'अच्छा दो करोड़ की सही।' उसने कहा, अरे, चार की उसकी, जो न कभी आया है और न कभी आएगा। बंद करो | कर दूं? मगर हुआ कुछ नहीं। वह आदमी थोड़ा घबड़ाया। दरवाजे। उठो, बहुत देख चुके यह राह! तुम जिसकी राह देख | उसने कहा कि भई करते क्यों नहीं...चार ही सही। उसने कहा, रहे हो, वह है ही नहीं। उसके आने का कोई सवाल नहीं है। 'अरे, आठ की कर दें न...!' ऐसा ही ढपोरशंख था वह। वासनाओं से जिसने आनंद के आने की राह देखी हैं वह गलत उससे कुछ हुआ नहीं, वह दुगना करता जाता...! की राह देख रहा है, जो आ ही नहीं सकता। वासना का स्वभाव | वासना ढपोरशंख है। राग ढपोरशंख है। वह तुमसे कहता है आनंद नहीं। सिर्फ आशा बंधाती है। वासना ढपोरशंख है। कि होगा, होगा; जितना मांग रहे हो उससे ज्यादा होगा। तुम्हारे तुमने कहानी सुनी है? एक आदमी ने शिव की बड़ी भक्ति सपने से भी बड़ा सपना पूरा कर के दिखला दूंगा। क्या तुमने की। जब उसकी भक्ति पूरी हो गई, शिव ने कहा, तू वरदान मांग खाक आशा की है! जो तुम्हें दूंगा, तुम चकित हो जाओगे। ले। उस आदमी ने कहा, 'मैं क्या मांगू! आप ही जो उचित हो, तुमने इसकी कभी आशा भी नहीं की थी, सोचा भी न था। दे दें।' शिव ने उठाकर अपना शंख दे दिया और कहा, यह शंख मगर ये सब बातें हैं। अनुभव तो कुछ और कहता है। अनुभव है, इससे तू जो भी मांगेगा मिल जायेगा। तू कहेगा कि एक तो कहता है, न दो की वर्षा होती है, न चार की वर्षा होती है, न मकान मिल जाये, एक मकान मिल जायेगा। तू कहेगा, धन की | आठ की वर्षा होती है। लेकिन आशा बड़ी होती चली जाती है। वर्षा हो जये, धन की वर्षा हो जायेगी। | आशा कहे चली जाती है, 'अरे! और कर दूं! तुम घबड़ा क्यों उस आदमी ने तत्क्षण-शिव को तो भूल ही गया-प्रयोग रहे हो? अगर इतने दिन बेकार गये, कोई फिक्र नहीं, आगे किया कि हीरे-जवाहरात बरस जाएं, बरस गए। घर, आंगन, देखो, भविष्य में देखो। अतीत का हिसाब मत रखो। सूरज द्वार सब भर गए। यह खबर धीरे-धीरे आसपास फैलने लगी। ऊगेगा! चंदा चमकेगा! जरा आगे देखो!' क्योंकि अचानक वह आदमी ऐसी शान से रहने लगा कि दूर-दूर आशा तुम्हें आगे खींचे लिये चली जाती है। तक उसकी सुगंध फैल गई। एक संन्यासी उसके दर्शन को इसलिए महावीर कहते हैं, 'राग की उत्पत्ति...।' जहां से आया। वह रात ठहरा। संन्यासी ने कहा कि मुझे पता है कि तुम्हें आशा का जन्म होता है, वहीं समझने की जरूरत है, वहीं जागने शंख मिल गया है, क्योंकि मुझे भी मिल गया है। मैंने भी शिव की जरूरत है। वहीं आशा को मत सहारा देना। कहना, 'ठीक की भक्ति की थी। मगर तुम्हारा शंख मुझे पता नहीं, मेरा शंख ढपोरशंख, तुझे जो कहना हो, कह। हम कुछ मांगते ही नहीं। न तो महाशंख है। इससे जितना मांगो, दुगना देता है। कहो लाख हम लाख मांगते न दो लाख मांगते। हमने मांग ही छोड़ दी।' मिल जायें दो लाख...। थोड़े दिन में तुम पाओगे कि जब तुम न मांगोगे तो ढपोरशंख तो उसने कहा, देखें तुम्हारा शंख! लोभ बढ़ा। इतना सब दुगना न कर पाएगा। क्योंकि वह दुगना तभी करता है, जब तुम मिल रहा था उसे, लेकिन फिर भी लोभ पकड़ा। उसने कहा, मांगते हो। तुम न मांगो तो वह चुप हो जाएगा। तुम न मांगो तो देखें तुम्हारा शंख। उस संन्यासी ने शंख दिखलाया और वासना आशा न बंधाएगी। तुम मांगते हो, इसलिए बंधाती है। संन्यासी ने शंख से कहा कि एक करोड़ रुपये चाहिए। शंख भूल तुम्हारे मांगने में हो जाती है। तुमने मांगा कि तुम आशा के बोला, एक क्या करोग, दो ले लो! वह भक्त तो...कहा कि चक्कर में पड़े। आशा कहती है, दुगना दिला देंगे! बस ठीक है। आप तो संन्यासी हैं, आपको क्या करना! छोटे जड़ से महावीर पकड़ते हैं। शंख से भी काम चल जायेगा, छोटा मेरे पास है। छोटा तो उसने हिंसा करने के अध्यवसाय से ही कर्म का बंध होता है। फिर संन्यासी को दे दिया। संन्यासी तो भाग गया उसी रात। उसने कोई जीव मरे या न मरे, जीवों के कर्म-बंध का यही स्वरूप है।' सुबह उठते ही से पूजा-प्रार्थना की, अपने महाशंख को निकाला यह बड़ा बहुमूल्य सूत्र है। इस सूत्र को गीता के परिप्रेक्ष्य में और कहा, 'हो जाये करोड़ रुपयों की वर्षा !' शंख बोला, दो | समझने की जरूरत है, क्योंकि गीता का सारा संदेश यही है। करोड़ की कर दूं? मगर हुआ कुछ भी नहीं। उस आदमी ने | कृष्ण अर्जुन को कहते हैं, न कोई मरता है न कोई मारता है, तो तू 2851 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340113
Book TitleJinsutra Lecture 13 Vasna Dhapor Shankh Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size33 MB
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