________________ Dom HIV वासना ढपोरशख है E न E को बनाने के लिए धन चाहिए, इस बड़े मकान को बनाने के लिए मेरे मन में यह भाव उठा कि धन्यभागी है प्रसेनचंद्र-मेरे साथ दूसरों से धन छीनना पड़ेगा। इस बड़े मकान को बनाने के लिए ही बड़ा हुआ, साथ हम पढ़े और लिखे और खेले और ये इतने अब प्रतिस्पर्धा करनी पड़ेगी। इस बड़े मकान को बनाने के लिए बड़े आंतरिक साम्राज्य का मालिक हो गया और मैं कुछ भी न | ईमानदारी, बेईमानी, सब मार्गों से खोजबीन करनी | कर पाया; मैं बाहर की व्यर्थ की चीजें जटाने में लगा रहा: मेरी पड़ेगी-जैसे भी। इस बड़े मकान की आकांक्षा के उठते ही जिंदगी यू ही गई–तो तब मेरे मन में सवाल उठा था कि अगर तुम्हारे भीतर हिंसा का बीज पड़ गया। देर लगेगी वृक्ष बनने में, प्रसेनचंद्र की इसी समय मृत्यु हो जाये तो यह किस स्वर्ग में या लेकिन अगर बचना हो वृक्ष से तो बीज से ही बच जाना। मोक्ष में जन्मेगा, वह मैं आप से पूछता हूं। इसलिए महावीर कहते हैं, राग की उत्पत्ति-हिंसा। ऐसा मत महावीर ने कहा, उस समय अगर प्रसेनचंद्र की मृत्यु हो जाती सोचना कि किसी की गर्दन काटोगे तब हिंसा। तो वह सातवें नर्क में पड़ता। यही अपराध और पाप का भेद है। अपराध--जब पाप | बिंबिसार ने कहा, आप क्या कहते हैं? सातवें नर्क में? तो वास्तविक होकर प्रगट हो जाता है। जब पाप कानून की पकड़ में हमारी क्या गति होगी? वह सब छोड़कर खड़ा है! आ जाता है तो अपराध। और जब तक पाप कानून की पकड़ में महावीर ने कहा कि तुम आए, उसके पहले तुम्हारा नहीं आता तभी तक पाप। तुम अपने मन में बैठे अगर दुनियाभर फौज-फांटा आया; तुम्हारे वजीर निकले, सेनापति निकले, को भी मारने का विचार करते रहो, तो कोई अदालत तुम्हें दंड सिपाही निकले, उन सब ने भी प्रसेनचंद्र को देखा। तुम्हारे दो नहीं दे सकती। पुलिस नहीं आ सकती पकड़ने कि तुम बहुत वजीर उसके पास खड़े होकर बात करने लगे कि ये देखो, बुद्ध हिंसा के विचार कर रहे हो। विचार की स्वतंत्रता है तुम्हें। विचार | की तरह यहां खड़ा है! यह प्रसेनचंद्र है। यह बड़ा सम्राट था। को व्यक्त मत करना। अगर आज लगा रहता अपने काम में तो सारी जमीन का मालिक कानून इतनी ही फिक्र करता है कि तुम जो सोचते हो, करना हो जाता। यहां बुद्ध की तरह खड़ा है नग्न! और ये अपने वजीरों मत; किया तो पकड़े गये। अगर तुम सिर्फ सोचते रहो, तुम्हारी के ऊपर सब छोड़ आया है। इसके बेटे छोटे हैं और वजीर सब मौज। लेकिन धर्म इससे गहरे जाता है। धर्म कहता है, तुम लूटे ले रहे हैं। जब तक इसके बेटे बड़े होंगे तब तक खजाने में सोचना मत। क्योंकि जो तुमने सोचा, कितनी देर बचोगे करने कुछ बचेगा ही नहीं। से? विचार वस्तु बन जाता है। जो भाव है, वह कल घना होकर उन दोनों वजीरों ने ऐसी बात की, प्रसेनचंद्र ने सुनी। वह आंख बरसेगा। आज जो बिलकुल छोटा-सा मालूम पड़ता था, वह बंद किये खड़ा था। लेकिन उसने सुनी। सुनते ही क्रोध आ कल बड़ा हो जायेगा; वह फैलता रहेगा। आज कहीं भी पता न गया। उसने कहा, 'अच्छा! तो मेरे वजीर समझते क्या हैं, क्या चलता था, तुम बिलकुल शांत बैठे थे। मैं मर गया हूं! मैं अभी जिंदा हूं!' क्रोध में, जैसी उसकी पुरानी महावीर के जीवन में उल्लेख है कि उनका एक शिष्य थाः आदत थी, हाथ उसका तलवार पर चला गया। तलवार अब प्रसेनचंद्र। वह सम्राट था पहले, फिर संन्यस्त हो गया, नग्न नहीं थी, अब तो नंगा खड़ा था। लेकिन पुरानी आदत...! मुनि हो गया। तलवार पर हाथ चला गया। जब तलवार पर उसका हाथ गया एक दिन प्रसेनचंद्र का एक दूसरा मित्र बिंबिसार महावीर के | तो उसकी पुरानी एक और आदत भी थी कि जब भी वह बहुत दर्शन को आया। वह भी सम्राट था। उसने आकर महावीर को | क्रोध में आ जाता और तलवार पर उसका हाथ जाता तो दूसरे पछा कि राह में प्रसेनचंद्र को खड़े देखा एक गफा में। धन्यभागी हाथ से वह अपना मुकट सम्हालता कि कहीं वह गिर न जाये है प्रसेनचंद्र! मेरा बचपन का साथी है। वह मुनित्व को उपलब्ध क्रोध में। अब मुकुट भी न था। दूसरा हाथ उसने मुकुट हो गया। वह दिगंबर मुनि हो गया। एक मैं हूं अभागा, अभी भी सम्हालने के लिए रखा; वहां कुछ भी न था। अपने ही माथे को सड़-गल रहा हूँ संसार में। एक प्रश्न मेरे मन में उठा है, वह छूकर उसे याद आयी कि अरे, यह मैं क्या कर रहा हूं! तत्क्षण आप से पूछना है। जब मैं प्रसेनचंद्र के पास से गुजर रहा था और उसने अपना तनाव छोड़ दिया, हिंसा का भाव छोड़ दिया। 283 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org