________________ ग हला प्रश्न : आपने कल कहा कि सत्य संज्ञा नहीं कहते हैं, वृक्ष है। ऐसा कहना नहीं चाहिए। यह सत्य के है, क्रिया है। क्या इसी भांति प्रेम, आनंद, ध्यान, अनुकूल नहीं है। यह अस्तित्व का सूचक नहीं है। कहना समाधि जो भी स्वभावगत है, वह भी संज्ञा नहीं, चाहिए, वृक्ष हो रहा है। जब हम कहते हैं वृक्ष है, तब ऐसा वरन क्रिया है? और क्या क्रिया का समझ से कोई संबंध नहीं लगता है कि होना बंद हो चुका, कोई चीज है। जब हम कहते हैं है? कृपा कर समझाएं। | वृक्ष है, जितनी देर हमने कहने में लगाई कि वृक्ष है, उतनी देर में वृक्ष कुछ और हो चुका। कुछ पुराने पत्ते गिर गये। कुछ नई क्रिया है : जीवंतता। संज्ञा है : लाश। संज्ञा का अर्थ है : जो कोंपलें सरककर बाहर आ गयीं। कोई कली फूल बन गई। कोई चीज हो चुकी। क्रिया का अर्थ है : जो अभी हो रही, हो रही, हो फूल बिखर गया। वृक्ष उतनी देर में बूढ़ा हो रहा है। हम कहते रही। जैसे नदी बह रही है, नदी क्रिया है; तालाब नहीं बह रहा, | हैं, मकान है, लेकिन मकान भी जराजीर्ण हो रहा है; आज है तालाब संज्ञा है। बहाव जीवन है, ठहराव मृत्य है। कल नहीं हो जायेगा, अन्यथा महलों के खंडहर कैसे होते! हम जीवन में जो भी महत्वपूर्ण है, सभी क्रिया जैसा है। प्रेम भी कहते हैं, यह आदमी जवान है; अगर हम गौर से देखें तो कहना कोई वस्तु नहीं है। प्रेम भी प्रक्रिया है। करो तो है, न करो तो पडेगा, यह आदमी जवान हो रहा है या यह आदमी बढा हो रहा गया। जो तुमसे कहता है, मैं तुम्हें प्रेम करता है, उसका प्रेम भी है। 'है' की कोई अवस्था नहीं है। उन्हीं क्षणों में होता है जब वह करता है; जब नहीं करता तब प्रेम यूनान के बहुत बड़े मनीषी हैराक्लतु ने कहा है, तुम एक ही खो जाता है। नदी में दुबारा नहीं उतर संकते। दुबारा उतरने को वही नदी प्रेम को बनाये रखना हो तो क्रिया को जारी रखना पड़े। ध्यान पाओगे कहां? पानी बहा जा रहा है। भी तभी होता है जब तुम करते हो; जब तुम नहीं करते, खो जाता | फिर हैराक्लतु के एक शिष्य ने कहा कि अगर हैराक्लतु सही है है। जो तुम करते हो वही होता है। श्वास भी तुम जब तक ले रहे तो एक ही नदी में एक बार भी कैसे उतरा जा सकता है? जब हो, तभी तक है; जब न लोगे, तब कैसी श्वास? तुम्हारे पैर ने नदी की ऊपर की सतह छई, तब नदी और थी; जरा जीवन का बड़ा गहनतम सत्य है कि यहां सभी प्रक्रियाएं हैं। पैर नीचे गया, तब नदी और हो गई; और तलहटी तक पहुंचा, विज्ञान ने भी इस सत्य को उदघोषित किया है। तब तक नदी और हो गई। गंगा बही जाती है। बहाव में गंगा बड़े वैज्ञानिक एडिंगटन ने लिखा है कि 'ठहराव' झूठा शब्द है। इसलिए सब हो रहा है। है, क्योंकि कोई चीज ठहरी हुई नहीं है। सब हो रहा है। इसलिए | तुम हो, ऐसा नहीं-तुम हो रहे हो। ठहराव को प्रदर्शित करनेवाले सभी शब्द अज्ञान-सूचक हैं। हम जीवन एक घटना है, वस्तु नहीं। और जिसने जीवन का यह 1610 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org