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________________ जिन सूत्र भागः1 Timmymasti मंजिल पर। बारहवीं मंजिल के बाद सीधी चौदहवीं होती है। धर्म के जगत में जिसे जाना हो उसे महावीर जैसा दिगंबर होना चौदहवीं कहने से हल हो जाता है, है वह तेरहवीं; मगर चौदहवीं चाहिए-परिपूर्ण नग्न, सारे आवरणों से मुक्त। कह दी तो उतरनेवाले को क्या फिक्र है! लेकिन तेरहवीं कहो तो लेकिन बुद्धिमान आदमी हानि-लाभ की सोचता है। बुद्धि का कोई उतरने को राजी नहीं। तेरह नंबर का कमरा नहीं होता। तेरह ही धर्म से कुछ लेना-देना नहीं है। तारीख को लोग यात्रा करने नहीं जाते। तो एक आदमी ने बड़ी तेरे सीने में दम है, दिल नहीं है किताब लिखी है। उसने सारे आंकड़े इकट्ठे किये हैं कि तेरह | तेरा दिल गर्मि-ए-महफिल नहीं है निश्चित ही खतरनाक आंकड़ा है। तेरह तारीख को कितने युद्ध गुजर जा अक्ल से आगे कि यह नूर शुरू हुए, उसने सब हिसाब बनाया है। तेरह तारीख को कितनी चिरागे-राह है, मंजिल नहीं है। कार-दुर्घटनाएं होती हैं; तेरह तारीख को कितने लोग कैंसर से यह जो बुद्धि का छोटा-सा टिमटिमाता दीया है, 'चिरागे-राह मरते हैं; तेरह तारीख को कितने तलाक होते हैं-तेरह तारीख, है', राह पर इसका थोड़ा उपयोग कर लो। चिरागे-राह है, तेरहवीं मंजिल, तेरह का जहां-जहां संबंध है, उसने बड़े हजारों मंजिल नहीं है। इस बुद्धि के दीये को आखिरी मंजिल मत समझ आंकड़े इकट्ठे किये हैं। लेना। यह टिमटिमाता दीया, इस पर ही उलझ मत जाना। यह कोई मित्र मुझे दिखाने लाया था, वह भी बड़ा प्रभावित था। | हानि-लाभ का विचार, शुभ-अशुभ का विचार, स्वर्ग-नर्क का उसने कहा कि देखो, अब तो तथ्य सामने हैं। मैंने उससे कहा, त हिसाब, यह गणित बिठाना-अगर इसमें ही लगे रहे तो तम चौदह तारीख की खोज कर, इतने ही तथ्य, चौदह तारीख में भी धीरे-धीरे पाओगे कि खोपड़ी तो तुम्हारी बड़ी होती जाती है, मिल जायेंगें। चौदह को भी लोग मरते हैं। चौदह को भी | हृदय सिकुड़ता जाता है। धर्म का संबंध हृदय से है, बुद्धि से कार-दुर्घटनाएं होती हैं। और चौदहवीं मंजिल से भी लोग गिरते नहीं, सोच-विचार से नहीं। गहन भाव की दशा है धर्म। हैं। तू कोई भी तारीख के पीछे पड़ जा। जिंदगी इतनी बड़ी है, तेरे सीने में दम है, दिल नहीं है तुम कोई भी पक्ष तय कर लो, तुम्हें प्रमाण मिल जायेंगे। तेरे सीने में दम है, दिल नहीं है इसलिए सत्य की खोज पर जो निकलता है, उसे पहले से पक्ष | तेरा दिल गर्मि-ए-महफिल नहीं है लेकर नहीं चलना चाहिए। नहीं तो वह जो खोज रहा है, खोज | गुजर जा अक्ल से आगे कि यह नूर लेगा। यही तो बड़े से बड़ा खतरा है जगत में कि तुम जो खोजना चिरागे-राह है, महफिल नहीं है। चाहते हो खोज ही लोगे। तुम अपनी मान्यता को सिद्ध कर ध्यान हम कहते ही उसे हैं जहां तुम इस चिरागे-राह को लोगे। सत्य के खोजी को कोई मान्यता नहीं होनी चाहिए। उसे फूंककर आगे निकल जाते हो। इसलिए तो बुद्ध और महावीर ने तो खुली आंख रखनी चाहिए-निष्पक्ष, निर्दोष-तो तथ्य का उसे 'निर्वाण' कहा है। निर्वाण शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है: दर्शन होता है। दीये को बुझा देना। जब सारे दीये बुझा देते हैं तो निर्वाण है। परंपरा के लाभ भी हैं, हानियां भी हैं। लेकिन धर्म परंपरा नहीं | अब बड़े मजे की बात है, जैन दीवाली मनाते हैं; क्योंकि उस है। और हानि-लाभ से धर्म का कोई संबंध नहीं है। रात महावीर का निर्वाण हुआ। और दीये जलाते हैं। उस रात तो | तुम्हें हानि-लाभ में रहना हो, धर्म से बचना, सावधान रहना। | सब दीये बझा दो, पागलो। निर्वाण का अर्थ होता है : दीये बझा तुम्हें हानि-लाभ से ऊपर उठना हो, तो धर्म के द्वार पर दस्तक | दो। जैन दीवाली पर दीये जलाते हैं-खुशी में कि महावीर का देना। और धर्म के द्वार पर दस्तक देनी हो, परंपरा को वहीं छोड़ | निर्वाण हुआ। लेकिन निर्वाण शब्द का अर्थ होता है : दीये बुझा आना जहां जूते उतार आते हो। दो। ये बुद्धि के, हिसाब के, किताब के दीये बुझा दो। ये तर्क अगर परंपरा को लेकर धर्म के मंदिर में आये तो तुम धर्म के के, विचार के दीये बुझा दो। उस गहन मौन और शून्य और शांत मंदिर में कभी आओगे ही नहीं; तुम्हारी परंपरा तुम्हें घेरे रहेगी। | अंधेरे में खो जाओ, जो तुम्हारा स्वभाव है। तुम आओगे भी और नहीं भी आ पाओगे। महावीर ने भी खूब रात चुनी-अमावस की रात-मुक्त होने 170 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.340108
Book TitleJinsutra Lecture 08 Samyak Gyan Mukti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size36 MB
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