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________________ जीवन एक सुअवसर है से ही अगर तुमने तय कर लिया कि अशांति बुरी है तो तुम जान जो तुम्हारे पास है उसको ही कैसे रूपांतरित करें, कैसे उसमें से कैसे पाओगे, देख कैसे पाओगे? जो आंखें पहले ही पक्षपात से ही सार को खोजें, असार को त्यागें, कैसे उसको निचोड़ें, इत्र भर गईं और जिन्होंने तय कर लिया कि अशांति बुरी है और बनाएं-तो तुम सत्य हो सकोगे। अशांति से छूटना है, वे आंखें अशांति का अवलोकन न कर | महंगा है यह सौदा। इसलिए महावीर कहते हैं, तप है यह पाएंगी। अवलोकन शुद्ध न होगा, अवलोकन प्रामाणिक न सत्य। इसमें तपना पड़ेगा। यह तपना सस्ता तपना नहीं है कि होगा। तुम पहले से ही तैयार हो। तुम जूझने को तैयार हो, लड़ने धूप में खड़े हो गए और तप लिए। वह तो बच्चे भी कर लेते हैं। को तैयार हो। दुश्मन को कभी कोई भर आंख देख पाता है! वह तो बुद्धू भी कर लेते हैं। उसके लिए तो कोई बुद्धिमत्ता की दश्मन से तो हम आंखें बचा लेते हैं। मित्र को देख पाते हैं। प्रेमी जरूरत नहीं है। जड़ भी कर लेते हैं। वस्तुतः जो जड़बुद्धि हैं, वे को देख पाते हैं। जिससे हमारा प्रेम हो, उसकी आंखों में आंखें ज्यादा आसानी से कर लेते हैं। क्योंकि जितनी जड़बुद्धि होती है डाल पाते हैं। उतनी जिद्दी होती है। और जितनी जड़बुद्धि होती है, उतनी तो अपने को प्रेम करो, अगर सत्य होना है। और जैसे भी हो संवेदनहीन होती है। धूप में भी खड़े हो जाते हैं, थोड़े दिन में बुरे-भले, यही हो, इसके अतिरिक्त कुछ और हो नहीं सकता | उसका भी अभ्यास हो जाता है। उपवास भी कर लेते हैं. उसका था। जो तुम हुए हो, इसको पहचानो, परखो, जांचो, खोलो भी अभ्यास हो जाता है। कुछ लोग हैं जो खड़े हैं वर्षों से, बैठे एक-एक गांठ। अशांति है तो अशांति सही, क्या करोगे? नहीं, लेटे नहीं-उसका भी अभ्यास हो गया। लेकिन तुमने अशांति तुम्हारा तथ्य है। जैसे आग जलाती है, वह उसका | कभी इन लोगों की आंखों में गौर से देखा! वहां तुम्हें प्रतिभा की गुणधर्म है। अशांति तुम्हारे आज का तथ्य है। आज तुम जैसे हो दमक न मिलेगी। वहां तुम्हें आनंद और शांति के स्वर सुनाई न उसमें अशांति के फूल लगते हैं, अशांति के कांटे लगते हैं। पड़ेंगे। इनकी छाती के पास, हृदय के पास कान लगाकर लेकिन देखो, पहचानो, समझो, स्वीकार करो। भागो मत। डरो | सुनना; वहां कोई अनाहत का नाद न मिलेगा। वहां तुम मत। विपरीत की चेष्टा मत करो। अशांति है तो शांति को लाने पाओगे : जड़ता, राख, मरे हुए लोग। के प्रयास में संलग्न मत हो जाओ। वह प्रयास अशांति से बचने अकसर हठी जड़ होता है। और जिसको तुम तप कहते हो, का प्रयास है। बचकर कोई कभी बच नहीं पाया। अगर वह हठ से ज्यादा नहीं है, जिद्द है, क्रोध है, अहंकार है लेकिन कामवासना है तो उतरो। उस गहरे कुएं में उतरो जिसका नाम सत्य नहीं। कामवासना है। उसकी सीढ़ी दर सीढ़ी नीचे जाओ। उसकी | सत्य का तप क्या है? सत्य का तप है : अपने को जैसा है आखिरी तलहटी को खोजो। वहीं से उठेगा ब्रह्मचर्य। जागरण वैसा स्वीकार किया, वैसा ही प्रगट किया; अपने और अपनी से उठेगा ब्रह्मचर्य। कामवासना की पहचान में से ही ब्रह्मचर्य अभिव्यक्ति में कोई भेद न किया। फिर जो हो, समाज अच्छा पैदा होता है। कामवासना में ही छिपा है ब्रह्मचर्य; जैसे | कहे बुरा कहे, लोग चाहें न चाहें, सम्मान दें अपमान दें, फिर जो कामवासना बीज का खोल है और उसके भीतर छिपा है कोमल हो–यह है असली तप। लोग निंदा करें, वह भी स्वीकार है। तंत, कोमल पौधा ब्रह्मचर्य का। तुम समझो, बीज को कैसे लोग प्रशंसा करें, वह भी स्वीकार है। लोग भूल जाएं, उपेक्षा जमीन में बोएं. फिर कैसे सम्हालें-उसी से निकलेगा। कीचड़ करें, वह भी स्वीकार है। यह है तप। सत्य होने को महावीर से जैसे कमल निकलता है, ऐसे ही कामवासना से ब्रह्मचर्य कहते हैं तप। निकलता है। 'सच्चामि वसदि तवो'–सत्य में बसता है तप। संयम भी अशांति का ही सार है शांति। उसी के भीतर से निचोड़ना है। वहीं है। जैसे फलों से इत्र निचोड़ते हैं, ऐसे ही क्रोध से निचुड़कर करुणा इन दो शब्दों को समझ लेना चाहिए, क्योंकि महावीर ने इन दो आती है। शब्दों का साथ-साथ उपयोग किया। तो जो तुम्हारे पास है उसके विपरीत होने में मत लग जाओ। तप का अर्थ है : तुम्हारे भीतर ऐसी बहुत-सी सचाइयां हैं 43 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340107
Book TitleJinsutra Lecture 07 Jivan Ek Suavsar Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
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