________________ जिन सूत्र भागः 11 बाहर के शोरगुल से शून्य हो जाओ। और अभी तो तुम जो भी | महावीर का सारा शिक्षण मृत्यु का शिक्षण है-शून्य होने की जानते हो, सब बाहर का शोरगुल है। इसलिए कहते हैं, तुम जो कला है। पर शून्य होने की कला ही पूर्ण होने की कला है। चाहे हो उससे बिलकुल शून्य हो जाओ! अभी तो तुमने व्यर्थ को ही दोनों में से कुछ भी शब्द चुन लो; लेकिन मैं कहूंगा, तुम शून्य ही जोड़-जोड़कर अपनी प्रतिमा बनायी है। अभी तो तुमने चुनना। पूर्ण को चुना कि तुम चूके। क्योंकि पूर्ण के साथ लोभ कागज-पत्तर को जोड़-जोड़कर अपनी प्रतिमा बनायी है। अभी | आया। तुमने कहा, 'अरे! तो हम पूर्ण हो जाएंगे! गजब!' तो शाश्वत का तुम्हारी प्रतिमा से कोई भी संबंध नहीं है। अभी | पकड़ा अहंकार ने रस! वही अहंकार जिसको छुड़ाना है, छूटना तो तुम कहते हो, यह मेरा नाम है, यह मेरी जाति है, यह मेरा धर्म | है जिससे, पूर्ण होने की आकांक्षा से भर गया! फिर तुम्हारे है, यह मेरा घर है; यह मेरा कुल है, यह मेरा देश है, यह मैं हिंदू गुब्बारे में और हवा भरने लगेगी। फिर अहंकार और बड़ा होने हूं कि जैन हूं, कि मुसलमान हूं कि ईसाई हूं, कि मैं गरीब हूं कि लगेगा। पूर्ण होने का नशा छा गया! इसलिए ज्ञानियों ने शून्य अमीर हूं, कि शिक्षित कि अशिक्षित, कि गोरा कि काला, कि की भाषा कही है-जानते हुए कि अंतिमतः पूर्ण घटता है लेकिन सम्मानित कि अपमानित, कि साधु कि असाधु-अभी तो तुमने | तुमसे कहना उचित नहीं। तुमसे कहना खतरनाक है। जो भी जोड़ा है, बाहर से जोड़ा है। यह तो दूसरों ने जो कहा है, महावीर ने जो कहा, उसको तमने वैसा ही नहीं सना है जैसा उसको ही तुमने इकट्ठा कर लिया है। | उन्होंने कहा था। अन्यथा ये दुर्दिन, यह दुर्दशा, यह दारिद्र , यह इसलिए कहते हैं, तुम अपने से खाली हो जाओ। यह सब दीनता न घटती। इसलिए जो लोग ऐसा लांछन लगाते हैं, ऐसा कूड़ा-कर्कट हटाओ। और घबड़ाने की कोई जरूरत नहीं। तुम | विवाद खड़ा करते हैं, उनके विवाद में तथ्य तो है; लेकिन तथ्य बेफिक्र कूड़ा-कर्कट हटाओ, क्योंकि जो कूड़ा-कर्कट नहीं है, का इशारा तुम्हारी तरफ है, उन्हीं की तरफ है। तथ्य का इशारा उसे तुम हटाओ भी, तो भी हटा न सकोगे। इसलिए भय की | महावीर की तरफ नहीं है। काश! तुम महावीर को समझते तो कोई जरूरत नहीं है। इसलिए डर-डरकर हटाने की जरूरत नहीं | इस देश में जैसा धन्यभाग फलता, इस देश में जैसे महिमावान कि कहीं ऐसा न हो कि हीरे खो जाएं। वे हीरे कुछ ऐसे हैं कि खो | फूलों का जमघट जुड़ जाता, वैसा कहीं भी नहीं हो पाता। अगर ही नहीं सकते। इसलिए तुम आग भी लगा दो इस मकान में, तो महावीर को समझे होते तो तुम्हारे भीतर जो अपरिसीम है, वह भी कुछ बिगड़ेगा नहीं। तुम खालिस, साबित निकल आओगे | प्रगट होता। तुम्हारे चारों तरफ प्रकाश-मंडल निर्मित होता। न क्योंकि तुम्हारा स्वभाव जलता नहीं। भी कुछ तुम्हारे पास होता तो भी तुम समृद्ध होते। और अभी तो नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः! हालत ऐसी है कि सब कुछ भी तुम्हारे पास हो, तो भी दरिद्रता न आग उसे जलाती, न शस्त्र उसे छेदते हैं। अमरत्व तुम्हारा | कहां मिटती है? स्वभाव है। तुमने धनी आदमियों की दरिद्रता नहीं देखी, तो फिर तुमने कुछ लेकिन अनुयायी की भाषा है, वह घबड़ाता है। वह कहता है, भी नहीं देखा! तुमने शक्तिशालियों की शक्तिहीनता नहीं देखी! इससे तो संसार में बने ही रहे; चलो झूठे ही सही, कुछ तो हैं तुमने पदधारियों की नपुंसकता नहीं देखी! अकड़ के झंडों के सुख! मान्यता ही सही, मिलते नहीं, आशा ही बंधाते हैं, कुछ | पीछे कमजोरी के सिवाय और क्या है? जितने बड़े झंडे हाथ में तो हैं! दुख हैं, चलो कोई हर्जा नहीं, हम तो हैं! कांटे भी चुभते | हैं, जितने ऊंचे डंडे हाथ में हैं, उतनी ही हीनता भीतर छिपी है। हैं, चलो सह लेंगे, जूते पहन लेंगे, दवा खोज लेंगे, मलहम कर हीनता न हो तो कौन डंडे और झंडे लेकर यात्राएं करता है! क्या लेंगे, ऐसे रास्तों पर न जाएंगे जहां कांटे हैं लेकिन कम से कम जरूरत है ? किसको दिखाना है? जिसको अपना स्वरूप दिख हम तो हैं! लेकिन इस 'हम' को करोगे क्या? इस अहं को गया, उसको दिखाने को अब कुछ भी न बचा। करोगे क्या? फिर तुम जिसे जिंदगी कहते हो, और कहते हो जीवन का मुश्किल नहीं है मौत, आजमाओ तो सही स्वीकार, उसमें जिंदगी जैसा क्या है? . मर जाने से पहले क्यों मरे जाते हो? था ख्वाब में खयाल को तुझसे मुआमला ain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org