________________ प्यास ही प्रार्थना है उसके लिए निमंत्रण है। प्यास ही प्रार्थना है। जो प्यास नहीं होता है जो तुमने किया है। क्या किया है? कभी एक पैसा किसी जानते, वे और शब्द दोहराते हैं। जिनको प्यास की समझ आ| भिखारी को दे दिया है। और उसी की जेब काटी थी पहले; नहीं गई, वे सिर्फ प्यास ही प्यास में डूब जाते हैं। वे इतने प्यासे हो तो भिखारी ही कैसे होता, यह भी तो सोचो। फिर उसी को जाते हैं कि भीतर कोई प्यासा भी नहीं होता, बस प्यास ही प्यास समझाने लिए एक पैसा भी दे दिया है कि उपद्रव न कर, हड़ताल होती है-इस पार से उस पार, रोएं-रोएं में, धड़कन-धड़कन वगैरह पर मत जा, शांत रह। क्या किया है तुमने? चार पैसे में, श्वास-श्वास में! भिखारी को दिए थे। अलग बैठे थे फिर भी आंख साकी की पड़ी हम पर द्वारपाल चिंतित हो गया। उसने अपने सहयोगी से पूछा, बोल अगर है तश्नगी कामिल तो पैमाने भी आएंगे। भाई, क्या करें? उसने कहा, 'करना क्या है! चार पैसे वापस अगर प्यास पूरी है तो तुमने प्याला तो तैयार कर दिया। अब, दो और कहो कि नर्क जा, नर्क जा, खत्म कर मामला, हिसाब अब तुम फिक्र छोड़ो! अब शराब भी आ जाएगी। अब कोई भर साफ कर!' भी देगा प्याले को, तुम प्याला तो बनाओ! तुम्हारा किया कितना हो सकेगा? चम्मच-चम्मच से सागर सदा ही परमात्मा अकारण घटित होता है। इससे तुम गलत के किनारे हम बैठे हैं। चम्मचें भर रहे हैं, इससे कहीं सागर मत समझ लेना मुझे। तुम यह मत समझ लेना कि फिर क्या उलिचता है! इससे कहीं कुछ होता नहीं। करना। जब मैं कहता हूं कि अकारण घटित होता है, तो मैं यह लेकिन इससे तुम यह मत समझ लेना कि मैं यह कह रहा हूं कि कह रहा हूं कि तुम जो भी करते हो, वह तो ना-कुछ है। जब चलो, झंझट मिटी, चार पैसे भी अब देने की कोई जरूरत नहीं। परमात्मा घटित होगा तो तुम जानोगे, अरे! मैंने कुछ भी तो नहीं यह मैं नहीं कह रहा हूं। मैं तुमसे कहता हूं, देना! दिल खोलकर किया था। यद्यपि तुमने बहुत किया था, लेकिन अब तुम जानोगे | देना! लेकिन आखिर में याद रखना कि वे चार पैसे ही दिये। कि कुछ भी तो न किया था। जो मिला है, वह इतना ज्यादा है कि / कितना ही दिया हो, सब दे दिया हो, सब लुटा दिया हो, तो भी जो किया था अब उसकी बात भी करनी फिजल है। मिला है | चार पैसे ही तुम्हारे पास थे, ज्यादा तो तुम्हारे पास ही न था, खजाना अकूत, जो तुमने किया था वह कौड़ी-कौड़ी था। अब ज्यादा तुम देते भी कैसे! उसकी बात भी उठाने में शर्म लगेगी। फिर तुम यह थोड़े ही इसलिए जिन्होंने पाया है, उनको हमेशा लगा : कुछ भी तो नहीं कहोगे परमात्मा से कि 'सुनो जी! कितने उपवास किए, याद किया, प्रसाद-स्वरूप है। यहीं भूल पैदा होती है। सुननेवाला है? कि कितने ध्यान में बैठता था, भूल तो नहीं गए? कितना समझ लेता है, चलो तब अब यह भी झंझट नहीं। अब कुछ दान-पुण्य किया था!' करना ही नहीं; जब मिलना है प्रसाद रूप तो जब मिलेगा, सुना है मैंने, एक कंजूस मरा। स्वर्ग के द्वार पर पहुंचा। मिलेगा। लेकिन प्रसाद उन्हीं को मिलता है जो अपनी समग्र द्वारपाल ने पूछा कि कुछ पुण्य वगैरह किए हैं?' ध्यान रखना, चेष्टा करते हैं। मिलता प्रसाद रूप है लेकिन प्रसाद उन्हीं को ठीक से कहानी सुन लेना, पूछेगा, तुम भी जब जाओगे! और मिलता है जो समग्र चेष्टा करते हैं। वही गलती मत कर देना जो इस आदमी ने की। उसने कहा, 'हां इसलिए चिंता मत करो। संकल्प से मिला या समर्पण से, यह किये हैं।' बस यही तो पापी का लक्षण है। अगर वह कह देता भी छोड़ो। कैसे मिला, इसकी क्या फिक्र ! मिला! अब तो थोड़ा 'कहां! क्या पुण्य! सामर्थ्य कहां! करने को मेरे पास क्या नाचो! अब विचार छोड़ो, अब तो थोड़ा समारोह करो! अब तो था!' द्वार खुल जाते, लेकिन चूक गया। उसने कहा, 'किए कुछ उत्सव करो! हैं।' तो द्वारपाल ने कहा, "फिर ठहरो। फिर खाते-बही देखने जमीं पे जाम को रख दे, जरा ठहर साकी पड़ेंगे। हिसाबी-किताबी आदमी हो।' खाते-बही देखे तो पता मैं इस पे हो लूं तसद्दुक तो फिर उठा के पिऊं। चला, एक भिखारी को चार पैसे उसने दान दिए थे। अब तो जरा बलिहारी हो जाओ। कहो कि जरा रख जमीन तुम कहोगे 'बस इतना?' लेकिन 'बस इतना' ही सिद्ध पर, पहले मैं नाच लं, थोड़ा बलिहारी हो जाऊं इस पर, फिर | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibran.org