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________________ मोक्षमार्ग-सूत्र : 2 जो जीवे वि न जाणे, अजीवे वि न जाणइ / जीवा जीवे अयाणतो, कहं सो नाहिइ संजमं / / जो जीवे वि वियाणाइ, अजीवे वि वियाणइ / जीवा जीवे वियाणंतो, सो हु नाहिइ संजमं / / ___ जया गई बहुविहं, सव्वजीवाण जाणइ / तया पुण्णं च पावं च बंधं मोक्खं च जाणऽ / / जया पुण्णं च पावं च बंधं मोक्खं च जाणइ / तया निव्विंदए मोए जे दिव्वे जे य माणुसे / / जो न तो जीव अर्थात चेतनतत्व को जानता है, और न अजीव अर्थात जड़तत्व को जानता है, वह जीव-अजीव के स्वरूप को न जाननेवाला साधक, भला किस तरह संयम को जान सकेगा? जो जीव को जानता है और अजीवको भी, वह जीव और अजीव दोनों को भलीभांति जाननेवाला साधक ही संयम को जान सकेगा। जब वह सब जीवों की नानाविध गतियों को जान लेता है, तब पुण्य, पाप, बंध और मोक्ष को भी जान लेता है। जब (साधक) पुण्य, पाप, बंध और मोक्ष को जान लेता है, तब देवता और मनुष्य संबंधी काम-भोगों की व्यर्थता जान लेता है—अर्थात उनसे विरक्त हो जाता है। 508 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340052
Book TitleMahavir Vani Lecture 52 Samay hai Santulan ki Param Avastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size80 MB
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