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________________ कल्याण-पथ पर खड़ा है भिक्षु हो सकते हैं-आइन्स्टीन, फ्रायड और मार्क्स तीनों यहूदी हैं। यहूदी से ईर्ष्या पैदा होती है। ईर्ष्या का बदला लेने का सीधा कोई उपाय नहीं दिखाई पड़ता। मजाक से बदला लिया जाता है। __ मजाक एक बदला है। उससे यहूदियों के संबंध में कुछ पता नहीं चलता, जो मजाक कर रहे हैं, उनके संबंध में पता चलता है। सरदारों से भी कई लोगों को कई तरह की पीड़ा है। ज्यादा शक्तिशाली भी मालूम पड़ता है। ज्यादा पुरुषोचित भी मालूम पड़ता है / जीतने का उपाय भी कम दिखाई पड़ता है। गुजराती के संबंध में तो कोई मजाक करे ! कोई कारण नहीं है / कारण होने चाहिए। मजाक हमारा बदला है। वह हम उससे लेते हैं. जिसके पीछे कोई पीडा सरक रही है। और उस पीडाको सीधा हल करने का उपाय नहीं होता, तो हम व्यंग निर्मित करते हैं। महावीर कहते हैं किसी का हंसी-ठट्टा नहीं करे। उसका प्रयोजन क्या है? उसका प्रयोजन यह है कि उसकी किसी से प्रतिस्पर्धा नहीं है; प्रतियोगिता नहीं है। इसलिए कोई छिपा हुआ बदला लेने का सवाल भी कहां है ! यह महावीर की बड़ी अंतर्दृष्टि है, जो फ्रायड के पहले कोई भी ठीक से पकड़ नहीं पाया। दुनिया के किसी भी धर्मशास्त्र ने, साधु हंसी-मजाक न करे किसी का, ऐसा नियम नहीं बनाया / सिर्फ महावीर ने कहा कि साधु किसी से...। जरूर महावीर को बड़ी गहरी प्रतीति है कि आदमी किसी के प्रति जब व्यंग करे तो, करने का कारण भीतर छिपी हुई कोई हिंसा होती है। आप अपनी ही देखना, जब आप किसी का मजाक करने लगें, तो आप क्या चाह रहे हैं भीतर? आप उसको किसी तरह नीचे दिखाना चाहते हैं। और नीचे दिखाने का कोई सीधा रास्ता नहीं पा रहे हैं, इसलिए उलटा रास्ता पकड़ रहे हैं। ___ साधु अपनी हंसी-मजाक कर सकता है; अपने प्रति व्यंग कर सकता है। महावीर ने जरूर बर्नार्ड शा को साधु कहा होता / बर्नार्ड शा एक दिन थियेटर में खड़ा है। उसका नाटक पूरा हुआ है। नाटक अदभुत था और सिर्फ एक आदमी को छोड़कर पूरा हाल तालियां से स्वागत किया। तभी वह आदमी खडा हआ और उसने कहा, 'शा, योर प्ले स्टिंग्स-सड़ा हआ है तुम्हारा नाटक, और बदबू आती है। एक क्षण को सन्नाटा हो गया। लोग भी चौंक गये कि अब क्या होगा। शा ने कहा, 'आइ कमप्लीटली एग्री विद यू, बट व्हाट वी टू कैन डू अगेंस्ट दिस ग्रेट मेजार्टी-मैं राजी तुमसे पूरी तरह हूं, लेकिन हम दो करेंगे भी क्या इतने लोगों के खिलाफ?' / ___ यह आदमी अपने पर हंस सकता है। अपने पर वही हंस सकता है, जो इतना आश्वस्त है अपने प्रति / दूसरे पर हंसने की चेष्टा, दूसरे को किसी तरह व्यंग के माध्यम से गिराने की चेष्टा, क्षुद्र मन का लक्षण है। 'इस भांति अपने को सदैव कल्याण-पथ पर खड़ा रखनेवाला भिक्षु अपवित्र और क्षणभंगुर शरीर में निवास करना हमेशा के लिए छोड़ देता है तथा जन्म-मरण के बंधनों को सर्वथा काटकर अ-पुनरागमन-गति (मोक्ष) को प्राप्त हो जाता है।' __जहां से वापिस नहीं लौटा जा सकता-प्वाइंट आफ नो रिटर्न-उस स्थिति को उपलब्ध हो जाता है, जहां से वापिस गिरना नहीं है। ऐसी जीवन-चर्या में जीने वाला व्यक्ति धीरे-धीरे शरीर से भिन्न होने लगता है / उसे स्पष्ट होने लगता है कि मैं शरीर नहीं हूं, और चैतन्य के साथ तादात्म्य जोड़ने लगता है। धीरे-धीरे दीये की खोल छूट जाती है, और सिर्फ ज्योति का स्मरण रह जाता है। इस ज्योति के साथ जब पूरी एकता सध जाती है, तो शरीर को पुनः ग्रहण करने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती / मुक्त ज्योति-शरीर से मुक्त ज्योति का नाम मुक्ति है। महावीर कहते हैं, ऐसी ज्योतियां लोक के अंतिम स्तल पर शाश्वत आनंद में लीन रहती हैं-आखिरी सीमा लोक की। महावीर जगत 483 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340050
Book TitleMahavir Vani Lecture 50 Kalyan Path par Khada hai Bhikshu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size86 MB
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