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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 खिले हों, सबकी सगंध मृत्यु के क्षण में आ जाती है। ___ अगर मृत्यु महादुख है, तो पूरा जीवन दुख की एक लंबी यात्रा थी। मृत्यु महासुख हो सके, यही धार्मिक व्यक्ति की खोज है। और जो विरोधाभास है, वह यह है कि जिसकी मृत्यु महासुख हो पाती है, उसके पूरे जीवन पर सुख की छाया और सुख का संगीत फैल जाता ___ आप मृत्यु से डरते हैं / डर का कारण ही यही है कि आपको अभी जीवन का कोई पता नहीं चला। जिस दिन आपको जीवन का पता चल जायेगा, मृत्यु मित्र है। मृत्यु जीवन को नष्ट नहीं करती, केवल शरीर से जीवन को अलग करती है। जीवन को नष्ट करने का कोई आधार नहीं है मृत्यु में / मृत्यु तो केवल उस जीवन से आपको अलग कर लेती है, जिसको आपने एकमात्र जीवन बना रखा था। जैसे कोई आदमी एक दीवाल के छेद से आकाश को देख रहा हो, और उसे कुछ पता न हो कि बाहर जाकर पूरे आकाश को देखा जा सकता है, जीया जा सकता है, और हम उसे उसके छेद से छीनने लगें, खींचने लगें, तो वह चिल्लाने लगे कि मेरा आकाश मत छीनो, मैं मर जाऊंगा। यही तो मेरा जीवन है, यही तो मेरी मुक्ति है, यही तो मेरा सुख है कि सूरज उगता है, कि पक्षी उड़ते हैं, कि फूल खिलते हैं, इसी छिद्र से तो मैं देख पाता हूं। वह रोयेगा, चिल्लायेगा। उसे कुछ भी पता नहीं कि हम उसे पूरे आकाश के नीचे ही ले जा रहे हैं, जहां फूलों की तरह वह खुद भी खिल सकता है; जहां पक्षियों की तरह वह खुद भी उड़ान भर सकता है; जहां सूरज की तरह वह भी रोशन हो सकता है। लेकिन वह अपने छिद्र को ही आकाश समझ रहा है। और जो सदा छिद्र के पास ही बैठा रहा हो, उसे यह भ्रांति होनी स्वाभाविक है। ___ हमारी इन्द्रियां जीवन की तरफ छोटे-छोटे छेद हैं। हमारी आंख क्या है? वह जो भीतर छिपा है, उसके लिए एक छोटा-सा छेद है शरीर में, जिससे हम बाहर देख पाते हैं। हमारा कान क्या है? एक छोटा-सा छेद है, जिससे बाहर की ध्वनि भीतर आ पाती है। हमारी इन्द्रियां छिद्र हैं, उन छिद्रों को ही हम जीवन समझ लिये हैं। मृत्यु हमें छिद्रों से अलग करती है। हम दुखी होते हैं, क्योंकि हमारा सब कुछ छीना जा रहा है / कुछ भी छीना नहीं जा रहा है। अगर हम भीतर के निवासी को पहचान लें, तो मृत्यु हमें केवल क्षद्रता से अलग कर रही है। इसलिए जो व्यक्ति भीतर के निवासी को पहचानने लगता है, उसकी मृत्यु मोक्ष हो जाती है। हमारा जीवन भी मृत्यु जैसा है, उसकी मृत्यु भी मुक्ति बन जाती है। __ मैंने सुना है कि नसरुद्दीन एक दिन अपने मित्रों से बात कर रहा है और शिकार की अतिशयोक्तिपूर्ण घटनाएं और अनुभूतियां सुना रहा है। एक जगह जाकर तो बात बिलकुल आखिरी हद पर पहुंच गयी। उसने कहा, 'मैं अफ्रीका गया था, और सिर्फ शिकार के लिए गया था। चांदनी रात थी। तो बंदूक बिना लिये झोपड़े के बाहर घूमने निकल गया। एक भयंकर सिंह अचानक एक वृक्ष के नीचे आ गया। दस फीट की दूरी रही होगी...।' मित्र भी सांस रोक लिये। 'बंदूक हाथ में नहीं है' नसरुद्दीन ने कहा, 'सिंह दस कदम की दूरी पर तैयार खड़ा है।' एक मित्र ने पूछा, 'फिर क्या हुआ?' नसरुद्दीन ने कहानी को छोटा करने के लिहाज से कहा, 'सिंह ने हमला किया और मेरा खात्मा कर दिया।' उस मित्र ने कहा, 'नसरुद्दीन, डू यू मीन दि लायन किल्ड यू? बट यू आर अलाइव, सिटिंग जस्ट बिफोर मी-और तुम भलीभांति जिंदा हो / मतलब तुम्हारा क्या है, उस सिंह ने तुम्हें खत्म कर दिया?' नसरुद्दीन ने कहा, 'हा, य काल दिस बीइंग अलाइव-यह मेरी जिंदगी को तम जिंदगी कहते हो?' 426 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340048
Book TitleMahavir Vani Lecture 48 Asparshit Akamp hai Bhikshu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size76 MB
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