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________________ भिक्षु की यात्रा अंतर्यात्रा है की घटना ही नहीं घटती / बिना प्रेम के दो व्यक्ति साथ रहने लगते हैं और एक-दूसरे के शरीर का उपयोग करने लगते हैं। विवाह चालाक, चतुर लोगों की ईजाद है। इसलिए विवाह में जो भरोसा करते हैं, वे प्रेम में पड़नेवाले लोगों को पागल कहते हैं। उनके हिसाब से वे बिलकुल ठीक कहते हैं। क्योंकि उनको गणित नहीं आता, तर्क नहीं आता। वे बिलकुल भूल कर रहे हैं। प्रेम में झंझट में पड़ेंगे, लेकिन जो झंझट में पड़ने से बचता है, वह जीवित ही नहीं रह जाता; और जितनी झंझट से बचता है, उतना मुर्दा होता चला जाता है / मरा हुआ आदमी बिलकुल झंझट में नहीं होता। आपको झंझट से बिलकुल हंड्रेड परसेंट बचना हो-सौ प्रतिशत, तो आप मर जायें; आप जिन्दा न रहें। श्वास लेने में भी खतरा है इन्फेक्शन का, डर है बीमारी का। उठने-बैठने में खतरा है। __ जीना बड़ा खतरनाक है। और जो आदमी जितना ज्यादा जीना चाहता है, उतने बड़े खतरे में उसे उतरना होगा। प्रेम बडा खतरा है-शिखर छूते हैं आप, लेकिन खाई में गिरने का डर भी पैदा हो जाता है। जो आदमी सपाट जमीन पर चलता है—विवाह सपाट जमीन है, उसमें कभी कोई गिरता नहीं / कोई शिखर भी नहीं छूता गौरीशंकर के, कोई गिरता भी नहीं। लेकिन जो गौरीशंकर के शिखर पर चढ़ने की कोशिश कर रहा है, वह खतरा हाथ में ले रहा है। लेकिन ध्यान रहे, जहां खतरा इतना बड़ा होता है, जैसा गौरीशंकर के नीचे की खाई, उस खतरे की चुनौती में ही जीवन भी अपने पूरे शिखर पर उठता है। जिसके जीवन में एडवेन्चर नहीं है, दुस्साहस नहीं है, वह आदमी जीवित ही नहीं है। वह पैदा ही नहीं हुआ। वह अभी अपनी मां के गर्भ में है। अभी वहां से उसका छुटकारा नहीं हुआ। प्रेम खतरे में ले जाता है। लेकिन, श्रद्धा महाखतरे में ले जाती है। क्योंकि प्रेम तो एक साधारण व्यक्ति का भरोसा है; और श्रद्धा एक असाधारण व्यक्ति का भरोसा है / प्रेमी तो हमें इस जगत के बाहर नहीं ले जायेगा; इसके भीतर ही परिभ्रमण होगा-श्रद्धेय हमें इस जगत के बाहर ले जाने लगेगा। वह हमें उठाने लगेगाउन अछूती ऊंचाइयों की तरफ, जिनको कभी-कभार ही सदियों में कोई आदमी छ पाता है। वासना प्रेम का खतरा उठाने की तैयारी करवा देती है। श्रद्धा उस अनंत, असीम, अनजान, अज्ञात, और अज्ञात ही नहीं, अज्ञेय घटना के लिए साहस दे देती है। श्रद्धा में भय है सिर्फ एक : अपने को खोने का भय / श्रद्धा में अहंकार खोयेगा। क्योंकि श्रद्धा का अर्थ है, आप अपने अहंकार को कहीं छोड़ रहे हैं और किसी को कह रहे हैं कि आज से तुम मेरी आंख हुए, अब मैं तुम्हारे द्वारा देखूगा; तुम मेरे कान हुए, तुम्हारे द्वारा मैं सुनूंगा; तुम मेरे हृदय हुए, तुम्हारे द्वारा मैं धड़दूंगा। अब मैं गौण हुआ छाया की तरह, तुम मेरी आत्मा हो गये। श्रद्धा का अर्थ है : किसी व्यक्ति में प्रकाश की घटना को अनुभव करके अपने को उस प्रकाश के साथ जोड देना; उसकी छाया बन जाना / लेकिन वासना से भरा व्यक्ति, अनंत वासनाओं से भरा हुआ व्यक्ति अपने अहंकार को छोड़ने से डरता है। क्योंकि अहंकार के छूटते ही सारी वासनायें भी गिरती हैं और अहंकार को हम बढ़ाये जाना चाहते हैं, जब तक कि असंभव ही न हो जाए। सुना है मैंने, एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन ज्यादा पी गया है और मधुशाला में लड़ने के मिजाज से भर गया; लड़ने का मूड आ गया। तो उसने खड़े होकर चारों तरफ देखा और कहा कि इस मधुशाला में अगर कोई हो माई का लाल तो बाहर निकल आये, उसे मैं चारों खाने अभी चित्त कर दूं! लेकिन किसी ने उस पर ध्यान न दिया / और लोग भी अपने नशे में लीन थे। उससे उसकी हिम्मत बढ़ी और उसने कहा कि छोड़ो, मधुशाला में क्या रखा है! इस पूरे गांव में भी अगर कोई माई का लाल हो तो खबर कर दो। फिर भी किसी ने ध्यान न दिया तो उसकी आवाज और बढ़ गयी, और उसने कहा, 'इस पूरे देश में, अगर किसी ने अपनी मां का दूध पिया हो तो प्रगट हो जाये!' फिर भी कोई प्रगट न हुआ। तो उसने कहा, 'इस पूरी पृथ्वी पर है कोई मर्द?' एक आदमी जो बड़ी देर से सुन रहा था, उसे बड़ी हैरानी हुई कि यह आदमी बढ़ता ही चला जा रहा है। तो उसने अपना गिलास 407 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340047
Book TitleMahavir Vani Lecture 47 Bhikshu ki Yatra Antaryatra Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size78 MB
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