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________________ ब्राह्मण-सूत्र : 3 न वि मुंडिएण समणो, न ओंकारेण बंभणो / न मुणी रण्णवासेणं, कुसचीरेण ण तावसो / / समयाए समणो होइ, बंभचेरेण बंभणो। नाणेण उ मुणी होइ, तवेण होइ तावसो / / कम्मुणा बंभणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ / वइसो कम्मुणा होइ, सुद्दो हवइ कम्मुणा / / एवं गुणसमाउत्ता, जे भवन्ति दिउत्तमा / ते समत्था समुद्धत्तुं, परमप्पाणमेव चे / / सिर मुंडा लेने मात्र से कोई श्रमण नहीं होता, 'ओम' का जाप कर लेने मात्र से कोई ब्राह्मण नहीं होता, निर्जन वन में रहने मात्र से कोई मुनि नहीं होता, और न कुशा के बने वस्त्र पहन लेने मात्र से कोई तपस्वी ही हो सकता है। समता से मनुष्य श्रमण होता है; ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण होता है; ज्ञान से मुनि होता है; और तप से तपस्वी बना जाता है / मनुष्य कर्म से ही ब्राह्मण होता है , कर्म से ही क्षत्रिय होता है, कर्म से ही वैश्य होता है और शूद्र भी अपने किए कर्मों से ही होता है / (अर्थात वर्ण-भेद जन्म से नहीं होता / जो जैसा अच्छा या बुरा कार्य करता है, वह वैसा ही ऊंच या नीच हो जाता है।) इस भांति पवित्र गुणों से युक्त जो द्विजोत्तम (श्रेष्ठ ब्राह्मण) हैं, वास्तव में वे ही अपना तथा दूसरों का उद्धार कर सकने में समर्थ हैं। 382 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340046
Book TitleMahavir Vani Lecture 46 Varnbhed Janma se Nahi Charya se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size75 MB
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