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________________ वर्णभेद जन्म से नहीं, चर्या से नाप-नापकर चल रहे हैं, अपना कोई बोध नहीं है जो आचरण बन सके। आचरण शास्त्र से पकड़ा है; उसको थोपते चले जा रहे हैं। इससे एक बड़ी अशोभन घटना घटती है कि आत्मा खो जाती है साधु की भी / औपचारिक व्यवस्था रह जाती है, आत्मा खो जाती है। __महावीर कहते हैं कि यह होगा ही, अगर कोई बाह्य को ज्यादा मूल्य देगा आंतरिक से, और पहले बाह्य को बदलने की कोशिश करेगा, और सोचेगा, पीछे भीतर को बदल लूंगा। सिर मुंडा लेने से कोई श्रमण नहीं होता। हालांकि यह हो सकता है कि जो श्रमण हो गया है, वह सिर मुंडा ले। यह दूसरी बात हो सकती है, जरूरी नहीं है कि हो। और ध्यान रखना कि जो सिर न मुंडाये तो ऐसा मत समझ लेना कि वह श्रमण नहीं हुआ। लेकिन यह घटना भी घट सकती है कि कोई श्रमण होकर सिर मुंडा ले। __ बालों का एक सौंदर्य है / बालों का एक आकर्षण है। बाल बहुत कामुक हैं, खींच सकते हैं; इसलिए हम सिर मुंडाने में भयभीत होते हैं। कोई आपका सिर मुंडा दे तो आप घर से निकलना पसंद नहीं करेंगे कि लोग क्या कहेंगे! हम तो तब सिर मुंडाते हैं आदमी का, जब वह मर जाता है / तब उसका सिर सफा कर देते हैं, न अब कोई देखने की दिक्कत है, न कोई डर है, न अब किसी को आकर्षित करना है। बालों का एक कामुक आकर्षण है। इसलिए पुरुष तो सिर मुंडा भी ले, स्त्री सिर मुंडाने को बिलकुल राजी नहीं हो सकतीं। और स्त्री सिर मुंडी हुई बिलकुल पुरुष जैसी मालूम होने लगती है; स्त्री जैसी मालूम नहीं होती। स्त्री का बहुत-सा सौंदर्य उसके बालों में छिपा है / तो महावीर कहते हैं, श्रमण होकर कोई सिर मुंडा सकता है, क्योंकि अब उसे कोई प्रयोजन नहीं रहा दूसरे को आकर्षित करने में। अब अपनी सुविधा की बात है। और श्रमण को बाल दिक्कत दे सकते हैं। महावीर कहते हैं कि बाल अगर रखना हो तो दूसरों पर बालों को कटवाने के लिए निर्भर होना पड़ता है। अकारण निर्भरता बढ़ती है / या साथ में साधन रखो, रेजर रखो, उस्तरा रखो कि बालों को साफ करो। अगर न साफ करो तो गंदगी बढ़ती है। अगर बालों को बढ़ने दो तो उनकी सफाई का ध्यान रखना पड़ता है। अगर सफाई न करो तो जुएं पड़ जाएं और दूसरा मल इकट्ठा हो जाए / वह सब कष्टपूर्ण है / तो महावीर कहते हैं कि जो व्यक्ति श्रमण हो गया है, वह हो सकता है कि बालों को साफ कर दे / बालों को साफ कर देना एक गौण घटना है; क्योंकि अब उसे कोई उत्सुकता नहीं है कि उसके शरीर को कोई सुंदर माने / और उसके स्वास्थ्य के लिए हितकर होगा, स्वच्छता में सहायक होगा और व्यर्थ की व्यवस्था उसे नहीं जुटानी पड़ेगी। ___ महावीर कहते हैं कि साधक को व्यवस्था न जुटानी पड़े, ऐसे जीना चाहिए। कुछ भी उसे ढोना न पड़े। तो बाल अकारण है, लेकिन इससे उलटा सही नहीं है कि आप बाल घुटा लें तो आप श्रमण हो गये। बालों को घुटाने के पीछे और भी कारण हैं। जो लोग महावीर की साधना में उतरेंगे और भीतर की साधना में प्रवेश करेंगे, वे चाहेंगे कि बाल न घोंट ले। आपको शायद खयाल में नहीं है, बाल भी अकारण नहीं हैं और कुछ कर रहे हैं। शायद आपको खयाल हो, कि मनुष्य अतीत में, कोई दस लाख साल पहले, मनुष्य के पूरे शरीर पर बाल थे, क्योंकि पूरे शरीर को रक्षा की जरूरत थी। जैसे-जैसे आदमी की रक्षा की व्यवस्था बदलती गयी और शरीर को रक्षा की जरूरत न रही, शरीर से बाल तिरोहित होने लगे। अब सिर्फ उन जगहों पर बाल रह गये हैं, जहां अभी भी रक्षा की जरूरत है। कुछ ग्लैंड्स भीतर छिपे हैं जिनको रक्षा की जरूरत है। ___ महावीर की साधना का एक हिस्सा है कि भीतर का जो ताप है, भीतर की जो ऊर्जा है, गर्मी है, उस गर्मी को, उस ऊर्जा को, उस अग्नि को काम-केंद्र से उठाकर सहस्रार तक लाना है। बाल उस गर्मी को बिखरने में बाधा देंगे, उस गर्मी को मस्तिष्क में रोक लेंगे। वह गर्मी आकाश में तिरोहित हो जानी जाहिए, अन्यथा मस्तिष्क भारी और रुग्ण हो जायेगा / तो सहस्त्रार के स्थान पर बाल नहीं होने चाहिए ताकि 391 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340046
Book TitleMahavir Vani Lecture 46 Varnbhed Janma se Nahi Charya se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size75 MB
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