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________________ साधना के आठ सूत्र महावीर ने इन वचनों में कहे हैं। जीवन के दो पहलू हैं। एक उसका विधायक रूप है--सक्रिय, एक उसका निषेधक रूप है-निष्क्रिय / जीवन में जो हम करते हैं, जीवन में जो हम होते हैं, उसमें दोनों का हाथ होता है / पुण्य भी किया जा सकता है सक्रिय होकर, और पुण्य किया जा सकता है निष्क्रिय होकर भी। पाप भी किया जा सकता है सक्रिय होकर, और पाप किया जा सकता है निष्क्रिय होकर भी। साधारणतः हम सोचते हैं कि पाप या पूण्य सक्रिय होकर ही किए जा सकते हैं। एक व्यक्ति लटा जा रहा है। जो लट रहा है वह पाप कर रहा है, लेकिन आप खड़े होकर देख रहे हैं, कुछ भी नहीं कर रहे हैं, तो भी महावीर कहते हैं पाप हो गया; आप नकारात्मक रूप से सहयोगी हैं। आप रोक सकते थे, नहीं रोक रहे हैं; आप पाप कर नहीं रहे हैं; लेकिन पाप होने दे रहे हैं। वह होने देना भी आपकी जिम्मेदारी है। तो जो आप पाप करते हैं, वे तो आपके पाप हैं ही—जो पाप दूसरे करते हैं, और आप होने देते हैं उनकी जिम्मेदारी भी आपके ऊपर है। ___ इस पृथ्वी पर कहीं भी कोई पाप हो रहा है, तो हम सब भागीदार हो गये, क्योंकि हम चाहते तो उसे रोक सकते थे—निष्क्रिय भागीदार / वे जो पाप करनेवाले लोग हैं, इसीलिए पाप कर पा रहे हैं इसलिए नहीं कि दुनिया में बहुत पापी हैं बल्कि इसलिये कि दुनिया में बहुत नकारात्मक पापी हैं; वे जो पाप को होने देंगे। दुनिया में बुरे लोग ज्यादा नहीं हैं, यह सुनकर हैरानी होगी। निश्चित ही दुनिया में बुरे लोग ज्यादा नहीं हैं, लेकिन दुनिया में निष्क्रिय बुरे लोग ज्यादा हैं, जो बुरा करते नहीं, लेकिन बुरा होने देते हैं—जो बुरे को होने से रोकने की तत्परता नहीं दिखाते। महावीर इन सूत्रों में दो हिस्से कर रहे हैं साधना के, एक विधायक और निषेधक / पांच विधायक तत्व हैं साधक के लिए, और तीन निषेधक तत्व हैं। इन आठ के बीच जो जीने की कला सीख लेता है, उसे धर्म का स्वरूप उपलब्ध हो जाता है। और जिसे धर्म की स्वयं की अनुभूति हुई हो, वही धर्म के संबंध में कुछ बोल सकता है। इसलिए महावीर ने इन्हें 'प्रवचन-माताएं' कहा है। इन आठ को जो उपलब्ध नहीं है, उसके बोलने का कोई भी मूल्य नहीं है / खतरा भी हो सकता है; क्योंकि जो हम नहीं जानते उस संबंध में कुछ भी कहना खतरनाक है। जीवन बड़ी सूक्ष्म और जटिल बात है। अनजाने, बिना जाने अज्ञान में दी गई सलाह जहर हो जाती है। शुभ इच्छा से भी दी गई सलाह 293 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340042
Book TitleMahavir Vani Lecture 42 Panch Samitiya aur Tin Guptiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size82 MB
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