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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 एक और ध्यान रखने की बात है कि आनंदित आप अकेले हो सकते हैं, लेकिन क्रोधित आप अकेले नहीं हो सकते / आनंद के लिए किसी की आपको अपेक्षा नहीं है कि कोई आपकी बटन दबाये। इसलिए हमने कहा है कि जब कोई व्यक्ति अपना परम मालिक हो जाता है तो परम आनंद को उपलब्ध हो जाता है। __कुछ चीजें हैं जो दूसरों पर निर्भर हैं। जो दूसरों पर निर्भर हैं वह प्रमाद में ही हो सकती हैं। कुछ चीजें हैं जो किसी पर निर्भर नहीं-स्वतंत्र हैं-वे अप्रमाद में हो सकती हैं। इसलिए महावीर कहते हैं प्रमाद को कर्म, कर्म-बंधन के कारण / जब भी हम बेहोशी में कुछ कर रहे हैं, हम बंध रहे हैं। और यह कर्म-बंधन हमें लंबी यात्राओं में उलझा देगा, लंबे जाल में डाल देगा। अप्रमाद को अकर्म, होश को अकर्म कहा है महावीर ने। अगर आप होशपर्वक क्रोध कर सकते हैं तो महावीर कहते हैं कि आपको क्रोध का कोई बंधन नहीं होगा। लेकिन होशपूर्वक क्रोध होता ही नहीं। अगर आप होशपूर्वक चोरी कर सकते हैं, तो महावीर कहते हैं चोरी अकर्म है। इसमें फिर कोई कर्म-बंधन नहीं है। लेकिन होशपूर्वक चोरी होती ही नहीं। अगर आप होशपूर्वक हत्या कर सकते हैं, तो महावीर हिम्मतवर हैं, वे कहते हैं, इसमें कोई कर्म का बंधन नहीं है। आप होशपूर्वक हत्या करें / लेकिन होशपूर्वक हत्या होती ही नहीं / हत्या होती है अनिवार्य रूप से बेहोशी में। ___ तो महावीर कहते हैं, एक ही है नियम, होशपूर्वक / एक ही है पुण्य, होशपूर्वक / एक ही है धर्म, होशपूर्वक। फिर सारी छूट है। होशपूर्वक जो भी करना हो करो। धर्म को इतना इसेंशिएल, इतना सारभूत कम ही लोगों ने समझा और कहा है / इसलिए महावीर की सारी उपदेशना, उनकी सारी धर्मदेशना इस एक ही शब्द के आसपास घूमती है-होश, विवेक, जागरूकता, अप्रमाद / इतना मूल्य दिया है उन्होंने तो सोचने जैसा है। नीति की दूसरी कोई आधारशिला नहीं रखी। यह करना बुरा है, यह करना अच्छा है, इस पर महावीर का जोर नहीं है, लेकिन तब बड़ी हैरानी होती है। महावीर को जिन्होंने पच्चीस सौ साल अनुगमन किया है, उनको होश की कोई फिक्र नहीं है! उनको कर्मों की फिक्र है। वे कहते हैं-यह कर्म ठीक, वह कर्म गलत। इस फर्क को समझ लें। जब मैं कहता हूं, यह कर्म ठीक, यह कर्म गलत, तो होश का कोई सवाल नहीं है। जब मैं कहता हूं, होश ठीक, बेहोशी गलत, तो कर्म का कोई सवाल नहीं है। जिस कर्म के साथ भी मैं होश जोड़ लेता हूं वह ठीक हो जाता है। वह अकर्म हो जाता है, उसका कोई बंधन नहीं रह जाता / और जिस कर्म के साथ मैं होश नहीं जोड़ पाता हूं वह पाप है, वह बंधन है, वह अधर्म है, वह कर्म है। - रहस्य यह है कि जो भी गलत है, उसके साथ होश नहीं जोड़ा जा सकता। गलत होने का मतलब ही यह है कि वह केवल बेहोशी में ही संभव है। गलत होने का एक ही गहरा मतलब है कि जो बेहोशी में ही संभव है। सही होने का एक ही मतलब है कि जो केवल होश में ही होता है, बेहोशी में कभी नहीं होता / इसका क्या मतलब हुआ? इसका मतलब हुआ कि आप अगर बेहोशी से दान करते हैं तो वह बंधन है। एक आदमी रास्ते पर भीख मांगता हुआ खड़ा है / आप अकेले जा रहे हैं तो आप भीख मांगनेवाले की फिक्र नहीं करते। चार लोग आपके साथ हैं और भीख मांगनेवाला हाथ फैला देता है तो आपको कुछ देना पड़ता है। यह भीख मांगनेवाले को आप नहीं देते, अपनी इज्जत को, जो चार लोगों के सामने दांव पर लगी है। इसलिए भिखारी भी जानता है कि अकेले आदमी से उलझना ठीक नहीं। चार आदमियों के सामने हाथ फैला देता है, पैर पकड़ लेता है। उस वक्त सवाल यह नहीं है कि भिखारी को देना है, उस वक्त सवाल यह 50 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340030
Book TitleMahavir Vani Lecture 30 Ek hi Niyam Hosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size68 MB
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