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________________ अरात्रि-भोजन : शरीर-ऊर्जा का संतुलन साफ कर लेना है, और कुछ भी नहीं। मित्र ने पूछा है—पाने योग्य चीज को अधिकतर मात्रा में पाने की चेष्टा में भी क्या लोभ है? असल में पाने योग्य क्या है? जो पाने योग्य है, वह भीतर पहले से ही मिला हुआ है। उसका कोई लोभ नहीं किया जा सकता। और जो भी हम पाने योग्य मानते हैं, वह पाने योग्य नहीं होता। लोभ पहले आ जाता है, इसलिए पाने योग्य मालूम पड़ता है। इसे थोड़ा ठीक से समझ लें। हम कहते हैं, जो पाने योग्य है, उसके लोभ में क्या हर्ज है! लेकिन पाने योग्य वह होता ही इसलिए है कि लोभ ने उसे पकड़ लिया है। नहीं तो पाने योग्य नहीं होता। जो चीज आपको पाने योग्य लगती है, आपके पडोसी को पाने योग्य नहीं लगती। पडोसी का लोभ कहीं और है, आपका लोभ कहीं और है, यही फर्क है। __ कोई चीज अपने आप में पाने योग्य नहीं है। जिस दिन आपका लोभ उस चीज से जुड़ जाता है, वह पाने योग्य दिखायी पड़ने लगती है। जब तक लोभ नहीं जुड़ा था, पाने योग्य नहीं थी। पाने योग्य का मतलब ही यह है कि लोभ जुड़ गया। तब तो एक वीसियस सर्किल पैदा हो जाता है। लोभ पहले जुड़ गया, इसलिए चीज पाने योग्य मालूम पड़ती है। और फिर हम कहते हैं, जो पाने योग्य है, उसके लोभ में हर्ज क्या! यह लोभ जो दूसरा है, धोखा दे रहा है। इसके पहले ही लोभ आ गया। ऐसा समझें तो आसान हो जायेगा। हम कहते हैं, सुंदर व्यक्ति पाने योग्य मालूम पड़ता है। लेकिन सुंदर ही क्यों मालूम पड़ता है? आप जब कहते हैं, फलां व्यक्ति सुंदर है तो आप सोचते है, सौंदर्य कोई गुण है जो वहां व्यक्ति में मौजूद है। लेकिन मनसविद चाहते हैं. पाना चाहते हैं. वह आपको संदर दिखायी पड़ता है। यह तो हमारे अनभव की बात है। क्योंकि जो आज हमें सुंदर दिखायी पड़ता है, जरूरी नहीं कि कल भी सुंदर दिखायी पड़े। जो हमें सुंदर दिखायी पड़ता है, हमारे मन की तरकीब है, हम कहते हैं, वह सुंदर है इसलिए हम पाना चाहते हैं। असलियत और है। हम पाना चाहते हैं, इसलिए वह सुंदर दिखायी पड़ता है। हमारी चाह पहले है। और जहां हमारी चाह जुड़ जाती है, वहीं सौंदर्य दिखायी पड़ने लगता है। जहां हमारा लोभ जुड़ जाता है, वहीं पाने योग्य मालूम पड़ने लगता है। ___ पाने योग्य क्या है? पाने योग्य केवल वही है, जो मिला ही हुआ है। जिसे पाने की कोई जरूरत ही नहीं है। और जिसे भी पाने की जरूरत है, वह पाने योग्य नहीं है। यह कंट्राडिक्टरी मालूम पड़े, विरोधी मालूम पड़े। जो पाने योग्य मालूम पड़ता है वह पाने योग्य है ही नहीं, क्योंकि वह पराया है। उसे पाना पड़ेगा। और जिसे भी हम पा लेंगे, उसे छोड़ना पड़ेगा। संसार का इतना ही अर्थ है। कितना ही पाओ, छोड़ना पड़ेगा। सिर्फ एक चीज मुझसे नहीं छीनी जा सकती, वह मेरा होना है। उसे मैंने कभी पाया नहीं, वह मुझे मिला ही हुआ है, आलरेडी गिवेन। जब भी मैंने जाना, वह मुझे मिला हुआ है। उसे मैंने कभी पाया नहीं। बाकी आपने जो भी चीजें पा ली हैं, वह सब छिन जायेंगी। जो पाया जाता है, वह छिन जाता है, क्योंकि वह हमारा नहीं है। इसलिए तो पाना पड़ता है। एक दिन छिन जाता है। जो हमारा नहीं है वह हमारा नहीं हो सकता। जो मेरा है, उसे मैंने कभी पाया ही नहीं। वह मैं ही हूं। __इसलिए धर्म की दृष्टि में पाने योग्य सिर्फ एक है बात, और वह है स्वयं का स्वरूप। उसको हम आत्मा कहें, परमात्मा कहें, मोक्ष कहें-यह शब्दों का भेद है। बाकी कोई भी चीज पाने योग्य नहीं है। लोभ दिखाता है, यह पाने योग्य है, यह पाने योग्य है, यह पाने योग्य है। लोभ दिखा देता है, वासना दौड़ पड़ती है। सफलता मिल जाती है, मोह बन जाता है। असफलता मिल जाती है, क्रोध बन जाता है। इसलिए लोभ अधर्म का मूल है। 469 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340025
Book TitleMahavir Vani Lecture 25 Aratri Bhojan Sharir Urja ka Santulan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size80 MB
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