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________________ अरात्रि-भोजन : शरीर-ऊर्जा का संतुलन भूख लगी है आपको। घर में आग लग गयी, फिर भूख नहीं लगती। फिर पता ही नहीं चलता कि भूख लगी है। अभी बिलकुल सुस्त होकर बैठते थे कि कदम नहीं उठाये उठता है और घर में आग लग गयी है, आप ऐसे दौड़ रहे हैं जैसे गलती हो गयी कि आपको ओलम्पिक क्यों न भेजा! सारी ताकत लगा दी है आपने। मिल्खा सिंह अब आपसे जीत नहीं सकता दौड़ में। क्यों? ध्यान नियोजित हो गया। एकाग्र हो गया, मकान में आग लग गयी, शरीर से हट गया। पूरे शरीर से हट गया। ध्यान का नियोजन बड़ी बात है। मैंने सुना है मिल्खा सिंह के संबंध में। एक रात उसके घर में चोर घुसे। वह विश्व विजेता दौड़ाक / उसके घर में चोर घुसे। मिल्खा सिंह जोश में आ गया, चोरों के पीछे भागा। पुलिस स्टेशन पहुंच गया। जाकर इंस्पेक्टर को कहा कि चोर कहां हैं? मैं उनके ठीक पीछे था। चोर तो वहां कोई थे नहीं। इंस्पेक्टर ने कहा, 'कहां के चोर? आप अकेले दौड़े चले आ रहे हैं।' मिल्खा सिंह ने कहा, 'गलती हो गयी, आई मस्ट हैव ओवर टेकन देम। रास्ते में मैं भूल गया कि चोरों का पीछा कर रहा हूं, मैं समझा दौड़ चल रही है।' आपका मस्तिष्क जहां नियोजित हो जाये, फिर सब भूल जाता है। चित्त एकाग्र हो जाये कहीं भी तो शेष सब विस्मृत हो जाता है। क्योंकि स्मरण के लिए चित्त का संस्पर्श जरूरी है। पैर में दर्द हो रहा है, तो चित्त पैर तक जाये तो ही पता चलता है। पेट में भूख लगी है, चित्त पेट तक जाये तो ही पता चलता है। पेट को कभी पता नहीं चलता है भूख लगने का। पता तो चित्त को चलता है लेकिन चित्त पेट तक जाये तो ही पता चलता है। अगर चित्त कहीं और चला जाये तो फिर पेट तक नहीं जा सकता। घर में आग लगी है तो चित्त वहां चला गया। एक धारा में चित्त बह जाये तो शेष सारा जगत अनुपस्थित हो जाता है।। ___ काशी के नरेश का आपरेशन हुआ पेट का, तो उसने कहा, मैं कोई दवा नहीं लूंगा। कोई जिंदगी भर दवा नहीं ली थी। नहीं लेने का खयाल था कि शरीर में कुछ भी विजातीय रासायनिक द्रव्य नहीं डाल लें। लेकिन बिना दवा आपरेशन...आपरेशन होगा कैसे? बेहोश तो करना पड़ेगा। उसने कहा कि नहीं, कोई जरूरत नहीं, बस मुझे गीता पढ़ने दी जाये। मैं गीता पढ़ता रहूंगा, तुम पेट का आपरेशन कर डालना / ___ डाक्टर बड़े चिंतित थे कि यह असंभव मामला दिखता है; गीता पढ़ने में इतना चित्त एकाग्र हो पायेगा? लेकिन कोई उपाय न था। मौत दोनों हालत में होने वाली थी। अगर नहीं आपरेशन करते हैं, तो सम्राट मरेगा। अगर करते हैं तो एक संभावना भी है शायद...इसलिए आपरेशन किया गया। और काशी नरेश गीता पढ़ते रहे और उनका पेट काटा जाता रहा। सी दिया गया, सब ठीक, हो गया। यह पहला आपरेशन था, बड़ा आपरेशन था; पहला आपरेशन था, जो बिना किसी अनेस्थेशिया के, बिना किसी बेहोशी की दवा के किया गया। डाक्टर तो चकित हो गये। उन्होंने कहा, यह तो चमत्कार है। लेकिन नरेश ने कहा, कोई चमत्कार नहीं है। क्योंकि पेट तक मेरा जाना जरूरी है, तभी तो मुझे पता चले कि वहां दर्द हो रहा है। लेकिन मैं गीता की तरफ जा रहा हूं, तो फिर वहां नहीं जा सकता। ध्यान की तरफ जाये बिना रात्रि-भोजन से बचने का कोई अर्थ नहीं है। उपवास का भी कोई अर्थ नहीं है। आप समझते हैं, उपवास और अनशन में यही फर्क है। अनशन का मतलब है, भूखे मर रहे हैं रात, सोच रहे हैं। अनशन उपवास नहीं है। उपवास शब्द का अर्थ होता है, आत्मा के निकट होना। उपवास-आत्मा के पास होना। आत्मा के पास होने का अर्थ ही ध्यान है। तो जो ध्यान नहीं कर सकता, वह उपवास नहीं कर सकता। इसलिए मैं नहीं कहता कि उपवास की फिक्र करो। पहले ध्यान की फिक्र करो। ध्यान जिसे आता है उसका अनशन उपवास बन जाता है। जिसे ध्यान नहीं आता, उसका उपवास सिर्फ भूख हड़ताल 475 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340025
Book TitleMahavir Vani Lecture 25 Aratri Bhojan Sharir Urja ka Santulan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size80 MB
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