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________________ अरात्रि-भोजन : शरीर-ऊर्जा का संतुलन लेना है! रात पानी नहीं पीना है, इसलिए सूरज डूबते-डूबते खूब पानी पी लेना है! यह हत्या हो गयी मूल सूत्र की। लेकिन यह होगी, क्योंकि हमारा कुल खयाल इतना है कि रात्रि-भोजन छूट गया तो सब कुछ मिल गया। उसके पोछे के पूरे विज्ञान का कोई बोध नहीं रात्रि-भोजन जिसे छोड़ना हो, उसे पूरी जीवनचर्या बदलनी पड़ेगी। इतना आसान नहीं है रात्रि-भोजन छोड़ देना। रात्रि-भोजन तो कोई भी छोड़ सकता है, लेकिन पूरी जीवनचर्या बदलनी पड़ेगी। ___ महावीर ने तो साधक के लिए एक बार भोजन को कहा है। क्योंकि एक बार भोजन लिया गया हो तो उसके पचने में छह और आठ घंटे लगते हैं। इसलिए दोपहर में अगर ग्यारह बजे भोजन ले लिया तो ही रात्रि-भोजन से बचा जा सकता है, नहीं तो नहीं बचा जा सकता। इसका मतलब यह हुआ कि ग्यारह बजे जो भोजन लिया है, वह सांझ सूरज के डूबते-डूबते पच जायेगा। पेट में नहीं रह जायेगा, पचने की कोई क्रिया जारी नहीं रहेगी। अब यह साधक रात में बिना भोजन के सो सकता है। लेकिन अगर सिर्फ इतनी ही मान्यता है, तो रात में नींद मुश्किल हो जायेगी। और जब नींद मुश्किल होगी, तो भोजन के बाबत ही चिंतन चलेगा। जो उपवास करता है, रात भर भोजन करता है। भोजन का मजा लेना हो, तो उपवास करना चाहिए। फिर ऐसा रस भोजन में आता है, जैसे कभी आया ही नहीं। ऐसी-ऐसी चीजें याद आती हैं, जो कई जमाने हो गये, भल गयीं और बडा मन ताजा हो जाता है। अभी व्रत चलते हैं तो कई लोगों का मन भोजन के प्रति बड़ा ताजा हो जायेगा। आठ-दस दिन के बाद जब व्रत छूटेंगे, तब वह जेलखाने से छूटे हुए कैदियों की भांति अपने चौकों में प्रवेश कर जायेंगे। योजनाएं अभी से तैयार हो रही हैं उनके मन में कि क्या-क्या करना है। ___ महावीर आदमी को भोजन से छुड़ाना चाहते हैं। जैनों को जितना भोजन से बंधा मैं देखता हूं, किसी और को नहीं देखता-चौबीस घंटे भोजन! सत्र की हत्या हो जाती है, समझ की कमी से। भोजन महत्वपूर्ण नहीं है, न रात्रि महत्वपूर्ण है। शरीर की ऊर्जा का संतुलन, शरीर की ऊर्जा का रूपांतरण, वह अल्केमी, कीमिया महत्वपूर्ण है। महावीर निश्चित ही मनुष्य के शरीर में गहरे उतरे। कम लोग इतने गहरे गये हैं। उन्होंने ठीक जड पकड़ ली. कहां से जड़ें शुरू होती हैं। शरीर का काम शुरू होता है भोजन से, और शरीर चाहता है भोजन के पास रुके रहो, क्योंकि शरीर का काम भोजन से पूरा हो जाता है। उसकी और कोई जरूरत नहीं है। भोजन से जो ऊपर न उठ सके वह शरीर से भी ऊपर न उठ सकेगा। शरीर, यानी भोजन। आपका शरीर है क्या? भोजन का संग्रह है। आपने जो भोजन किया उसका, आपकी मां ने, आपके पिता ने जो भोजन किया, उसका, उनके माता-पिता ने जो भोजन किया उसका, आप भोजन का लंबा सार निचोड़ हैं, आपका शरीर जो है। इसलिए भोजन के प्रति इतना आकर्षण स्वाभाविक हैं, क्योंकि वह हमारे शरीर का मूल आधार है। उससे ही शरीर चल रहा है। अब सवाल यह है कि हमको शरीर को ही अगर चलाते रहना है तो बस भोजन करते रहना है, और भोजन निकालते रहना है, बस यह काम करते रहना है। युनान में लोग अपने भोजन की टेबल पर, जैसे आप सींकें रखते हैं दांत साफ करने के लिए, ऐसा पक्षियों के पंख रखते थे। भोजन कर लिया, फिर गले में पंख फिराया, वामिट कर दी, फिर भोजन कर लिया। तो मेहमान को अगर आपने दो-चार दफा उल्टी न करवायी तो आपने ठीक स्वागत न किया। तो मेहमान के लिए एक बड़ा पंखा पक्षी का रखते थे। और दो आदमी पास खड़े रहते थे जो जल्दी जब उसका भोजन, वह कहे, बस अब नहीं, तो जल्दी से वे बर्तन ले आयेंगे, पंखा चला देंगे उसके गले में और वामिट करवा देंगे। नीरो ने, सम्राट नीरो ने दो डाक्टर रख छोडे थे जो दिन में उसे आठ दफा उल्टियां करवाते थे ताकि वह और भोजन कर सके। 473 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.340025
Book TitleMahavir Vani Lecture 25 Aratri Bhojan Sharir Urja ka Santulan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size80 MB
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