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________________ अरात्रि-भोजन : शरीर-ऊर्जा का संतुलन व्यस्तता है, अराजकता है, उसका कारण पेट में पड़ा हुआ भोजन है। आपके सपने अधिक मात्रा में आपके भोजन से पैदा हुए हैं। आपका पेट परेशान है। काम में लीन है। दिन भर चुक गया। काम का समय बीत गया और अब भी आपका पेट काम में लीन है। बाकी हम तो अदभुत लोग हैं। हमारा असली भोजन रात में होता है, बाकी तो दिन भर हम काम चला लेते हैं। जो असली भोजन है, बड़ा भोजन डिनर, वह हम रात में लेते हैं। उससे ज्यादा दुष्टता शरीर के साथ दूसरी नहीं हो सकती। __इसलिए अगर महावीर ने रात्रि भोजन को हिंसा कहा है तो मैं कहता हूं, कीड़े-मकोड़ों के मरने के कारण नहीं, अपने साथ हिंसा करने के कारण आत्म-हिंसा है। आप अपने शरीर के साथ दुर्व्यवहार कर रहे हैं। एक-अवैज्ञानिक है। भोजन की जरूरत है सुबह, सूर्य के उगने के साथ। जीवन की आवश्यकता है, शक्ति की आवश्यकता है। श्रम होगा, शक्ति चाहिए। विश्राम होगा, शक्ति नहीं चाहिए। पेट सांझ होते-होते, होते-होते मुक्त हो जाये भोजन से, तो रात्रि शांत होगी, मौन होगी, गहरी होगी। निद्रा एक सुख होगी और सुबह आप ताजे उठेंगे, रात्रि भर भी आपके पेट को श्रम करना पड़े तो सुबह आप थके मांदे उठेंगे। __इसके और भी गहरे कारण हैं। आपने खयाल किया होगा, जैसे ही पेट में भोजन पड़ जाता है वैसे ही आपका मस्तिष्क ढीला हो जाता है। इसलिए भोजन के बाद नींद सताने लगती है। लगता है लेट जाओ। लेट जाने का मतलब यह है कि कुछ मत करो अब / क्यों? क्योंकि सारी ऊर्जा शरीर की पेट को पचाने के लिए दौड़ जाती है। मस्तिष्क बहुत दूर है पेट से। जैसे ही पेट में भोजन पड़ता है, मस्तिष्क की सारी ऊर्जा पेट में पचाने को आ जाती है। ये वैज्ञानिक तथ्य हैं। इसलिए आंख झपकने लगती है और नींद मालूम होने लगती है। इसलिए उपवासे आदमी को रात में नींद नहीं आती। दिन भर उपवास किया हो तो रात में नींद नहीं आती। क्योंकि सारी ऊर्जा मस्तिष्क की तरफ दौड़ती रहती है तो नींद नहीं आ पाती। इसलिए, जैसे ही आप पेट भर लेते हैं तत्काल नींद मालूम होने लगती है। यह भरे पेट में नींद इसलिए मालूम होती है कि मस्तिष्क को जो ऊर्जा दी गयी थी, वह पेट ने वापस ले ली। पेट जड़ है। पेट पहली जरूरत है। मस्तिष्क विलास है, लक्जरी है। जब पेट के पास ज्यादा ऊर्जा होती है तब वह मस्तिष्क को दे देता है। नहीं तो पेट में ही मस्तिष्क की ऊर्जा घूमती रहती है। महावीर ने कहा है. दिन है श्रम, रात्रि है विश्राम, ध्यान भी है विश्राम। इसलिए परी रात्रि ध्यान बन सकती है. अगर थोडा-सा शरीर के साथ समझ का उपयोग किया जाये। अगर रात्रि पेट में भोजन पड़ा है तो रात्रि ध्यान नहीं बन सकती, निद्रा ही रह जायेगी। निद्रा भी उखड़ी-उखड़ी, गहरी नहीं। आदमी साठ साल जीये तो बीस साल सोता है। बीस साल बड़ा लंबा वक्त है। और हम सारे लोग यह कहते सुने पाये जाते हैं, कब करें ध्यान? समय नहीं है। महावीर कहते हैं, यह बीस साल ध्यान में बदले जा सकते हैं। यह जो रात्रि की निद्रा है, जब आप कुछ भी नहीं कर सकते, तब ध्यान किया जा सकता है। ___ध्यान श्रम नहीं है, ध्यान विश्राम है। इसलिए ध्यान का नींद से बड़ा गहरा संबंध है। और नींद ध्यान में रूपांतरित हो जाती है। लेकिन नींद, ध्यान में तभी रूपांतरित हो सकती है, जब पेट ऊर्जा न मांग रहा हो। जब पेट मांग न कर रहा हो, कि शक्ति मुझे चाहिए पचाने के लिए। जब पेट शांत हो, पेट की कोई मांग न हो, ऊर्जा मस्तिष्क में हो। इस ऊर्जा को ध्यान में बदला जा सकता है। अगर इसको ध्यान में न बदला जाये तो नींद को तोड़ने वाली हो जायेगी जो कि आम उपवास करने वाले की होती है। अगर यह ध्यान में बदल जाये, यह ऊर्जा तो नींद को बाधा नहीं देगी। नींद अपने तल पर चलती रहेगी, और एक नया आयाम, एक नया डाइमेंशन ऊर्जा का शुरू हो जायेगा, ध्यान। कृष्ण ने कहा है, कि योगी रात सो कर भी सोता नहीं। महावीर ने भी कहा है, शरीर ही सोता है, चेतना नहीं सोती। यह एक भीतरी 471 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340025
Book TitleMahavir Vani Lecture 25 Aratri Bhojan Sharir Urja ka Santulan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size80 MB
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