________________ महावीर-वाणी भाग : 1 इस थोड़ी बात को हम समझ लें। एक अनिवार्य शक्ति जरूरी है। चलने, उठने-बैठने, काम करने, बोलने इस सबके लिए एक खास केलरी की शक्ति जरूरी है। उतनी केलरी शरीर में लग जाती है। उसके अतिरिक्त जो आपके पास बचता है, वही आपकी कामवासना को मिलता है। ___ ध्यान रखें, हमारे पास जब भी कुछ अतिरिक्त बचता है-जब भी, शरीर में नहीं, बाहर भी-अगर आपके बैंक बैलेंस में आपके खर्च और व्यवस्था और जीवन की व्यवस्था को बचाकर कुछ बचता है, तो वह भोग और विलास में लगेगा। उसका कोई और उपयोग नहीं है। अतिरिक्त हमेशा विलास है। इसलिए जिन समाजों के पास समृद्धि बढ़ेगी वे विलासी हो जायेंगे। यह बड़ी कठिनाई है। गरीब की अपनी तकलीफें हैं, अमीर की अपनी तकलीफें हैं। गरीब की जीवन की जरूरतें पूरी नहीं हैं, इसलिए बेईमान हो जायेगा, चोर हो जायेगा, अपराधी हो जायेगा। अमीर के पास जरूरत से ज्यादा है, इसलिए विलासी हो जायेगा। संतुलन बड़ा मुश्किल है। महावीर कहते हैं, संतुलन, सम्यक, उतना भोजन जितने से शरीर का काम चल जाता हो। उससे कम भी नहीं, उससे ज्यादा भी नहीं। महावीर का जोर सम्यक आहार पर है। इतना, कि जितने से काम चल जाता हो। लेकिन हम ज्यादा लिए चले जाते हैं। इसमें जो चीजें गिनायी हैं उन्होंने-दूध, मलाई, घी, मक्खन-यह थोड़ा सोचने जैसी है। दध असल में अत्याधिक कामोत्तेजक आहार है और मनुष्य को छोड़कर पथ्वी पर कोई पश इतना कामवासना से भरा हआ नहीं है, और उसका एक कारण दूध है। क्योंकि कोई पशु, बचपन के कुछ समय के बाद दूध नहीं पीता, सिर्फ आदमी को छोड़ कर / पशु को जरूरत भी नहीं है। शरीर का काम पूरा हो जाता है। सभी पशु दूध पीते हैं अपनी मां का, लेकिन दूसरों की माताओं का दूध सिर्फ आदमी पीता है, और वह भी आदमी की माताओं का नहीं, जानवरों की माताओं का भी पीता है। ध बडी अदभत बात है, और आदमी की संस्कति में दध ने न मालम क्या-क्या किया है, इसका हिसाब लगाना कठिन है। बच्चा एक उम्र तक दूध पीये, यह नैसर्गिक है। इसके बाद दूध समाप्त हो जाना चाहिए। सच तो यह है, जब तक मां के स्तन से बच्चे को दूध मिल सके, बस तब तक ठीक है। उसके बाद दूध की आवश्यकता नैसर्गिक नहीं है। बच्चे का शरीर बन गया, निर्माण हो गया -दूध की जरूरत थी, हड़ी थी, खून था, मांस बनाने के लिए स्ट्रक्चर परा हो गया, ढांचा तैयार हो गया। अब सामान्य भोजन काफी होगा। अब भी अगर दूध दिया जाता है, तो यह सारा दूध कामवासना का निर्माण करता है। यह अतिरिक्त है। इसलिए वात्स्यायन ने काम सूत्र में कहा है कि हर संभोग के बाद पत्नी को अपने पति को दूध पिलाना चाहिए। ठीक कहा है। दूध जिस बड़ी मात्रा में वीर्य बनाता है, और कोई चीज नहीं बनाती। क्योंकि दूध जिस बड़ी मात्रा में खून बनाता है और कोई चीज नहीं बनाती। खून बनता है, फिर खून से वीर्य बनता है। तो दूध से निर्मित जो भी है, वह कामोत्तेजक है। इसलिए महावीर ने कहा है, वह उपयोगी नहीं है। खतरनाक है, कम से कम ब्रह्मचर्य के साधक के लिए खतरनाक है। ठीक है, कामसूत्र में और महावीर की बात में कोई विरोध नहीं है। भोग के साधक के लिए सहयोगी है, तो योग के साधक के लिए अवरोध है। फिर पश दृध है वह। निश्चित ही पशुओं के लिए, उनके शरीर के लिए, उनकी वीर्य-ऊर्जा के लिए जितना शक्तिशाली दूध चाहिए, उतना पशु मादाएं पैदा करती जब एक गाय दूध पैदा करती है, तो आदमी के बच्चे के लिए पैदा नहीं करती, सांड के लिए पैदा करती है। और जब आदमी का बच्चा पीये उस दूध को और उसके भीतर सांड जैसी कामवासना पैदा हो जाये, तो इसमें कुछ आश्चर्य नहीं है। वह आदमी का आहार न था। इस पर अब तो वैज्ञानिक भी काम करते हैं, और आज नहीं कल हमें समझना पड़ेगा कि अगर आदमी में बहुत-सी पशु प्रवृत्तियां 418 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org