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________________ धर्म : एक मात्र शरण कोई जन्म नहीं, फिर कभी मृत्यु नहीं होगी। हम सब खोजना चाहते हैं जरूर, अमृत / हम सब चाहते हैं कि ऐसी घड़ी आये, जहां मृत्यु न हो। लेकिन वह घड़ी आयेगी, जब हम उसको खोज लेंगे जिसका कोई जन्म नहीं हुआ। जब तक हम उसे न खोज लें जिसका कोई जन्म नहीं हुआ है, तब तक अमृत का कोई पता नहीं चलेगा। हम सब खोजना चाहते हैं आनंद-लेकिन आनंद से हमारा मतलब है-दुख के विपरीत। महावीर कहते हैं, आनंद से अर्थ है उसका, जो कभी दुखी नहीं हआ—यह बड़ी अलग बात है। हम चाहते हैं आनंद मिल जाये, लेकिन हम उसी मन से आनंद चाहते हैं जो सदा दुखी हुआ। जो मन सदा दुखी हुआ, वह कभी आनंदित नहीं हो सकता। उसका स्वभाव दुखी होना है। महावीर कहते हैं, आनंद चाहिए तो खोज लो उसे, तुम्हारे भीतर जो कभी दुखी नहीं हुआ। फिर अगर चाहते हो अमृत, तो खोज लो अपने भीतर उसे, जिसका कभी जन्म नहीं हुआ। इसे वे कहते हैं-धर्म। धर्म का महावीर का वही अर्थ है, जो लाओत्से का ताओ से है। धर्म से वही मतलब है जो हम इस अस्तित्व की आंतरिक... प्रकृति। मेरे भीतर भी वह है, आपके भीतर भी वह है। आपके भीतर खोजना मुझे आसान न होगा। आपके पास मैं खोजने जाऊंगा तो आपकी परिधि ही मुझे मिलेगी। इसे थोड़ा देखें। हम दूसरे आदमी को कभी भी उसके भीतर से नहीं देख सकते, या कि आप देख सकते हैं? आप दूसरे आदमी को सदा उसके बाहर से देख सकते हैं। आप मुस्कुरा रहे हैं, तो मैं आपकी मुस्कुराहट देखता हूं, लेकिन आपके भीतर क्या हो रहा है, यह मैं नहीं देखता। आप दुखी हैं, तो आपके आंसू देखता हूं; आपके भीतर क्या हो रहा है, यह मैं नहीं देखता। अनुमान लगाता हूं मैं कि आंसू हैं, तो भीतर दुख होता होगा; मुस्कुराहट है, तो भीतर खशी होती होगी। दूसरा आदमी अनुमान है, इनफ्रेंस है। भीतर तो मैं केवल अपने को ही देख सकता हूं। तब हो सकता है, ऊपर आंसू हों और भीतर दुख न हो। ऊपर मुस्कुराहट हो और भीतर दुख हो। ___ भीतर तो मैं अपने ही देख सकता हूं। एक ही द्वार मेरे लिए स्वभाव में उतरने का खुला है—वह मैं स्वयं हूं। दूसरा मेरे लिए बंद द्वार है, उससे मैं कभी नहीं उतर सकता। ___ हम सब दूसरे से उतरने की कोशिश कर रहे हैं। हमारा प्रेम, हमारी मित्रता, हमारे संबंध, सब दूसरे से उतरने की कोशिशें हैं। दूसरे से हम प्रवाह में ही रहेंगे। इसलिए महावीर ने बड़ी हिम्मत की बात कही। महावीर ने ईश्वर को भी स्वीकार नहीं किया। क्योंकि महावीर ने कहा, ईश्वर भी दूसरा हो जाता है—दी अदर। उससे भी कुछ हल नहीं होगा। तो महावीर ने कहा कि मैं तो आत्मा को ही परमात्मा कहता हूं और किसी को परमात्मा नहीं कहता। कोई दूसरा परमात्मा नहीं, तुम स्वयं ही परमात्मा हो। एक ही द्वार है तुम्हारे अपने भीतर जाने का, वह तुम स्वयं हो। परिधि को छोड़ो और भीतर की तरफ हटो। क्या है उपाय, कैसे हम छोड़ें परिधि को? एक आखिरी सूत्र। जो भी बदल जाता हो, समझो कि वह मैं नहीं हूं। शरीर बदलता चला जाता है। महावीर कहते हैं, जो बदलता जाता है, समझो कि मैं नहीं हूं। शरीर प्रतिपल बदल रहा है, एक धारा है। अभी आपका मां के पेट में गर्भाधान हुआ था, उस अणु का अगर चित्र आपके सामने रख दिया जाये, तो आप यह पहचान भी न सकेंगे कि आप यह थे। लेकिन एक दिन वही आपका शरीर था, फिर जिस दिन आप जन्मे थे, वह तस्वीर आपके सामने रख दी जाये तो आप पहचान न सकेंगे कि यह मैं ही हूं। एक दिन यही आपका शरीर था। अगर आपके पिछले जन्म की लाश आपके सामने रख दी जाये तो आप पहचान न सकेंगे, एक दिन आप वही थे। अगर आपके भविष्य का कोई चित्र आपके सामने रख दिया 363 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340019
Book TitleMahavir Vani Lecture 19 Dharm Ek Matra Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size74 MB
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