________________ धर्म : एक मात्र शरण हिस्से से राजी है। लेकिन महावीर अदभुत आदमी मालूम पड़ते हैं। जीवन में सब दुख देखकर भी महावीर आनंदित हैं। यह बड़ी असंभव घटना मालूम पड़ती है, क्योंकि महावीर और बुद्ध ने जीवन के दुख की जितनी गहरी चर्चा की है, इस जगत में कभी किसी ने नहीं की। फिर भी महावीर से ज्यादा प्रफुल्लित, आनंदित और नाचता हुआ व्यक्तित्व खोजना मुश्किल है। महावीर से ज्यादा खिला हुआ आदमी खोजना मुश्किल है, शायद जमीन ने फिर ऐसा आदमी दुबारा नहीं देखा। __कहानियां हैं महावीर के बाबत वे बड़ी प्रीतिकर हैं। प्रीतिकर हैं कि महावीर अगर रास्ते पर चलें, तो कांटा भी अगर सीधा पड़ा हो तो तत्काल उलटा हो जाता है। कहीं महावीर को गड़ न जाये। ___ कोई कांटा उलटा नहीं हआ होगा। आदमी इतनी चिंता नहीं करते तो कांटे इतनी क्या चिंता करेंगे? आदमी महावीर को पत्थर मार जाते हैं, कान में खीलें ठोंक जाते हैं तो कांटे-अगर कांटे ऐसी चिंता करते हैं तो आदमी से आगे निकल गये। लेकिन जिन्होंने कहा है, किन्हीं कारण से कहा है। वैज्ञानिक तथ्य नहीं है, लेकिन बड़ा गहरा सत्य है और जरूरी नहीं है सत्य के लिए कि वह वैज्ञानिक तथ्य हो ही। सत्य बड़ी और बात है, इस बात में सत्य है। इस बात में इतना सत्य है कि कोई उपाय ही नहीं है महावीर को कांटे के गडने का। कैसा ही कांटा हो. महावीर के लिए उलटा ही होगा। और हमारे लिए कांटा कैसा ही हो. सीधा ही होगा. न भी हो. तो भी होगा। हम मखमल की गद्दी पर चलें, तो भी कांटे गड़ने वाले हैं। महावीर कांटों पर भी चलें तो कांटे नहीं गड़ते हैं, यही मतलब है। कांटों की तरफ से नहीं है यह बात। यह बात महावीर की तरफ से है। महावीर के लिए कोई उपाय नहीं है कि कांटा गड़ सके। जो आदमी दुख की इतनी बात करता है कि सारा जीवन दुख है, उस आदमी को कांटा नहीं गड़ता दुख का! जरूर इसने किसी और जीवन को भी जान लिया। इसका अर्थ हुआ कि यही जीवन सब कुछ नहीं है। जिसे हम जीवन कहते हैं, वह जीवन की नहीं है, केवल परिधि है। जिसे हम जीवन जानते हैं, वह केवल सतह है, उसकी गहराई नहीं। और इस सतह से छूटने का तब तक कोई उपाय नहीं है, जब तक सतह के साथ हमारी आशा बंधी है। इसलिए महावीर इस सतह के सारे दुख को उघाड़कर रख देते हैं; इस सारे दुख को उघाड़ कर रख देते हैं। इसका सारा हड्डी, मांस-मज्जा खोल कर रख देते हैं कि यह दुख है। दमी दुखी हो जाये। यह इसलिए नहीं कि आदमी आत्मघात कर ले। यह इसलिए कि आदमी रूपांतरित हो जाये, उस नये जीवन में प्रविष्ट हो जाये जहां दुख नहीं है। यह एक नयी यात्रा का निमंत्रण है। इसलिए महावीर निराशावादी नहीं हैं, दुखवादी नहीं हैं, पैसिमिस्ट नहीं हैं। महावीर आनंदवादी हैं। फिर दुख की इतनी बात करते हैं। पश्चिम में तो बहुत गलतफहमी पैदा हुई है। ___ अलबर्ट शवीत्जर ने भारत के ऊपर बड़ी से बड़ी आलोचना की है, और बहुत समझदार व्यक्तियों में शवीत्जर एक है। उसने कहा कि भारत जो है वह दुखवादी है। इनका सारा चिंतन, इनका सारा धर्म दुख से भरा है, ओत-प्रोत है, निराशावदी है। इन्होंने जीवन की सारी की सारी जड़ों को सुखा डाला है और इन्होंने जीवन को कालिख से पोत दिया है। शवीत्जर थोड़ी दूर तक ठीक कहता है। हमने ऐसा किया है। लेकिन फिर भी शवीत्जर की आलोचना गलत है। अगर महावीर के ऊपर के वचनों को कोई देखकर चले तो लगेगा ही: सब जरा है, सब दुख है, सब पीडा है। अगर महावीर से आप कहें कि देखते हैं यह स्त्री कितनी सुंदर है! तो महावीर कहेंगे थोड़ा और गहरा देखो। थोड़ा चमड़ी के भीतर जाओ। थोड़ा झांको, तब तुम्हें असली सौंदर्य का पता चलेगा। तब तुम्हें हड्डी, मांस-मज्जा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं मिलेगा। सुना है मैंने, मुल्ला नसरुद्दीन जवान हुआ। एक लड़की के प्रेम में पड़ा। उसके पिता ने उसे समझाने के लिए कहा कि तू बिलकुल 361 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org