________________ धर्म : एक मात्र शरण था। वहां भी धोखा हो गया था। अगर वह भी अपनी मां को ही प्रेम करता चला जाता तो उसका पति होने वाला नहीं था। लड़का जवान होगा, तो मां से जो प्रेम था, वह बदलेगा। छाया हट जायेगी, किसी और पर पड़ेगी, किसी और को घेर लेगी। तब धोखा नहीं हो रहा, सिर्फ हम प्रवाह को प्रेम कर रहे थे, यह जाने बिना कि वह प्रवाह है। हम मानते थे कि कोई थिर चीज है, इसलिए अड़चन हो रही है, इसलिए कठिनाई हो रही है। ___ आज दस लोग आपको आदर देते हैं आप बड़े आश्वस्त हैं। कल ये दस लोग आपको आदर नहीं देंगे, आप बड़े निराश और दुखी हो जायेंगे। ऐसा नहीं कि ये दस लोग बुरे थे। ये दस लोग प्रवाह थे। प्रवाह बदल जायेंगे। हम आदर देते भी-एक ही आदमी को सदा आदर नहीं दे सकते। हम प्रवाह हैं। हम आदर देते-देते भी ऊब जाते हैं। आदर के लिए भी हमें नया आदमी खोजना पड़ता है। ___ हम प्रेम भी एक ही आदमी को नहीं दे सकते, हम प्रवाह हैं। हम प्रेम देते-देते भी ऊब जाते हैं। हमें प्रेम के लिए भी नये लोग खोजने पड़ते हैं। हम एक सतत बदलाइट हैं और हम ही बदलाहट हैं, ऐसा नहीं। हमारे चारों तरफ जो भी है, सब बदलाहट है। अगर हम इस जगत को इसकी बदलाहट में देख सकें, तो हमारे दुखी होने का कोई भी कारण नहीं है। वृक्ष की छाया बदल जायेगी, वृक्ष भी क्या कर सकता है, सूरज बदल रहा है। और सूरज को क्या मतलब है इस वृक्ष की छाया से, और वृक्ष क्या कर सकता है? वर्षा नहीं आयेगी, और वर्षा को क्या मतलब है इस वृक्ष से? और वृक्ष क्या कर सकता है कि भारी ताप हुई, सूर्य की आग बरसी, पत्ते सूख गये और गिर गये। क्या मतलब है धूप को इस वृक्ष से? और जो छाया में नीचे बैठा है, इस वृक्ष को क्या प्रयोजन है उस आदमी से कि वह छाया में नीचे बैठा है। __ यह सारा का सारा जगत अनंत प्रवाह है। उस प्रवाह में जो भी पकड़ कर शरण खोजता है वह दुख में पड़ जाता है। लेकिन तब क्या कोई शरण है ही नहीं? __एक संभावना यह है कि शरण है ही नहीं, जैसा कि शापनहार ने, जर्मन विचारक ने कहा है कि कोई शरण नहीं है। दुख अनिवार्य है, यह एक दशा है। अगर आदमी ठीक से सोचेगा तो एक विकल्प यह उठता है कि दुख अनिवार्य है, दुख होगा ही। यह बड़ा निराशाजनक है। लेकिन शापनहार कहता है सत्य यही है, हम कर भी क्या सकते हैं। फ्रायड ने पूरे जीवन चिंतन करने के बाद यही कहा कि आदमी सुखी हो नहीं सकता। क्यों? क्योंकि जहां भी पकड़ता है, वहीं चीजें बदल जाती हैं। और ऐसी कोई चीज नहीं है जो न बदले और आदमी पकड़ ले। शापनहार कहता है कि सब दुख है। सुख सिर्फ आशा है, दुख वास्तविकता है। सुख का एक ही उपयोग है-सुख है तो नहीं, सिर्फ उसकी आशा का एक उपयोग है कि आदमी दुख को झेल लेता है। दुख को झेलने में राहत मिलती है, सुख की आशा से। लगता है, आज नहीं कल मिलेगा; आज नहीं कल मिलेगा, तो आज का दुख झेलने में आसानी हो जाती है। लेकिन सुख है नहीं। क्योंकि सभी कुछ प्रवाह है, सभी कुछ बदला जा रहा है। आपकी आशाएं कभी पूरी नहीं होंगी, क्योंकि आपकी आशाएं ऐसे जगत में पूरी हो सकती हैं, जहां चीजें बदलती न हों। इसे थोड़ा ठीक से समझ लें।। आप जो भी आशाएं करते हैं, वे एक ऐसे जगत की करते हैं, जहां सब चीजें ठहरी हुई हैं। मैं जिसे प्रेम करता हूं तो प्रेम की क्या आशा है, आप जानते हैं? प्रेम की आशा है-अनंत हो, शाश्वत हो, सदा रहे, फिर कभी कुम्हलाए न, कभी मुरझाये न, कभी बदले न। यह आशा एक ऐसे जगत की है, जहां प्रवाह न हो, चीजें सब थिर-थिर हों। 359 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org