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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 सर्वज्ञ नहीं हैं। बात खत्म हो गयी। शरण से रुकने का उपाय हो गया। ___ क्योंकि महावीर के लिए तो लोग कहते हैं, शास्त्र कहते हैं, तीर्थंकरों के लक्षण कहे गये हैं कि इतने-इतने दूरी तक, इतने-इतने फासले तक, जहां महावीर चलते हैं- वहां घृणा का भाव नहीं रह जाता, वहां शत्रुता का भाव नहीं रह जाता। लेकिन फिर महावीर के कान में ही कोई कीले ठोंक पाता है। तो ये तीर्थंकर नहीं हो सकते। क्योंकि जब शत्रुता का भाव ही नहीं रह जाता– जहां महावीर चलते हैं, उनके मिल्यू में, उनके वातावरण में, कोई शत्रुता का भाव नहीं बचता- तो फिर कोई इनके कान में कीलें ठोंक देता है, इतने पास आकर? कान में कोले तो बहुत दूर से नहीं ठोका जा सकती। बहत पास होना पड़ता है। इतने पास आकर भी शत्रुता का भाव बचा रहता है! बात गड़बड़ है। संदिग्ध है मामला, ये तीर्थंकर नहीं हैं। __ मगर महावीर तीर्थंकर हैं या नहीं, इससे आप क्या पा लेंगे? हां एक कारण आप पा लेंगे कि एक अरिहंत उपलब्ध होता था तो उसकी शरण जाने से आप बच सकेंगे। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे आपके शरण जाने से महावीर को कुछ मिलने वाला था, जो आपने रोक लिया। भूल रहे हैं, शरण जाने से आपको ही कुछ मिल सकता था, जो आप ही चूक गये। ये बहाने हैं, और आदमी की बुद्धिहीनता इतनी प्रगाढ़ है कि वह बहाने खोजने में बड़ा कशल है। खोज लेता है बहाना। ___ बुद्ध के पास आकर लोग पूछते हैं--- चमत्कार दिखाओ, अगर भगवान हो तो? क्योंकि कहा है कि भगवान तो मुर्दो को जिला सकता है। तो मुर्दे को जिलाकर दिखाओ। जीसस को सूली दी जा रही थी तो लोग खड़े होकर देख रहे थे कि सूली न लगे तो मानें कुछ। सूली लग जाए और जीसस न मरें, हाथ-पैर कट जाएं और जीसस जिंदा रहें तो मानें कुछ। फिर जीसस मर गये। लोग पुत्र नहीं है। नहीं तो ईश्वर का पुत्र ऐसे मरता? परीक्षा के लिए जीसस को सूली दी तो दो चोरों को भी दोनों तरफ लटकाया था। तीन आदमियों को इकट्ठी सली दी थी। जैसे चोर मर गये। वैसे ही जीसस मर गये। तो फर्क क्या रहा? कोई चमत्कार होना था। यह मौका चूक गये। जीसस ईश्वर पुत्र हैं या नहीं, इसकी जांच-पड़ताल हमारे मन में क्यों चलती है? चलती है इसलिए कि अगर हैं, तो ही हम शरण जाएं / न हों तो हम शरण न जाएं। लेकिन अगर आपको शरण नहीं जाना है तो आप कारण खोज लेंगे। और अगर आपको शरण जाना है तो एक पत्थर की मूर्ति में आप कारण खोज सकते हैं कि शरण जाने योग्य है। और मजा यह है कि शरण जाएं तो पत्थर की मूर्ति भी आपके लिए उसी परम-स्रोत का द्वार खोल देगी। और शरण न जाएं तो खुद महावीर सामने खड़े रहें तो भी द्वार बंद रहेगा। धार्मिक आदमी मैं उसे कहता हं जो शरण जाने का कारण खोजता रहता है. कहीं भी। जहां भी उसे लगता है कि जैसा है, वह शरण चला जाता है। जहां भी मौका मिलता है, अपने को छोड़ता और तोड़ता और मिटाता है। बचाता नहीं। एक दिन निश्चित ही उसकी गंगोत्री में सागर गिरना शुरू हो जाता है। और जिस दिन सागर गिरता है, उसी दिन उसे पता चलता है कि शरणागति का पूरा रहस्य क्या था। इसकी पूरी कीमिया, इसका पूरा चमत्कार क्या था। ___ एक बात आखिरी- अगर जीसस सूली का चमत्कार दिखा दें और तब आप शरण जाएं तो ध्यान रखना, वह शरणागति नहीं है- ध्यान रखना, वह शरणागति नहीं है। अगर बुद्ध किसी मुर्दे को जिंदा कर दें और आप उनके चरण पकड लें तो समझना कि वह शरणागति नहीं है। क्योंकि उसमें कारण बुद्ध हैं, कारण आप नहीं हैं। वह सिर्फ चमत्कार को नमस्कार है। उसमें कोई शरणागति नहीं है। शरणागति तो तब है, जब कारण आप हैं, बुद्ध नहीं। इस फर्क को ठीक से समझ लें, नहीं तो सत्र का राज चक जाएगा। 50 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org -
SR No.340003
Book TitleMahavir Vani Lecture 03 Sharnagati Dharm ka Mul Aadhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size73 MB
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