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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 परिणाम हो सकता है कि दूसरे के खून का अनुपात बदल जाए! आयतन बदल जाए! खून की गति बदल जाए! हृदय की गति बदल जाए! रक्तचाप बदल जाए! यह संभव है? अब तो इनकार करना कठिन है। डा. जगदीशचन्द्र बसु के बाद दूसरा एक बड़ा नाम एक अमरीकन का है, क्लीब बैक्स्टर का। जगदीशचन्द्र ने तो कहा था कि पौधों में प्राण हैं। बैक्स्टर ने सिद्ध किया है - सिद्ध हो गया है कि पौधों में भावना भी है। और पौधे अपने मित्रों को पहचानते हैं और शत्रुओं को भी। पौधा अपने मालिक को भी पहचानता है और अपने माली को भी। और अगर मालिक मर जाता है तो पौधे की प्राण-धारा क्षीण हो जाती है, वह बीमार हो जाता है। पौधों की स्मृति को भी बैक्स्टर ने सिद्ध किया है कि उनकी भी मैमोरी है। और आप जब अपने गुलाब के पौधे के पास जाकर प्रेम से खड़े हो जाते हैं तब वह कल फिर आपकी उसी समय प्रतीक्षा करता है। वह याद रखता है कि आज आप नहीं आये। या जब आप पौधे के पास प्रेम से भरकर खड़े हो जाते हैं, फिर अचानक एक फूल तोड़ लेते हैं तो पौधे को बड़ी हैरानी होती है, बड़ा कंफ्यूजन होता है। इस सबकी प्राणधाराओं को रिकार्ड करने वाले यंत्र तैयार किये हैं बैक्स्टर ने कि पौधा एकदम कंफ्यूजड हो जाता है, उसकी समझ में नहीं आता कि जो आदमी इतने प्रेम से खडा था, उसने फल कैसे तोड लिया। वह ऐसे ही कंफ्यूज़ड हो जाता है जैसे कोई बच्चा आपके पास खड़ा हो, प्रेम करते-करते एकदम गर्दन तोड़ लें कि चेहरा बहत अच्छा लगता है। पौधे की समझ में बिलकुल नहीं आता कि यह हो क्या गया! उसके भीतर बड़ा कंफ्यूज़न पैदा होता है। बैक्स्टर कहता है - हमने हजारों पौधों को कंफ्यूज़ किया, उनको हम बड़ी परेशानी में डाले हुए हैं। वे समझ ही नहीं पाते कि यह हो क्या रहा है! जिसको मित्र की तरह अनुभव कर रहे थे वह एकदम शत्रु की तरह हो जाता है। बैक्स्टर का यह भी कहना है कि जिन पौधों को हम प्रेम करते हैं वे हमारी तरफ बड़ी पाजिटिव भावनाएं छोड़ते हैं। और बैक्स्टर ने सुझाव दिया है अमरीकन मेडिकल एसोसिएशन को कि शीघ्र ही हम विशेष तरह के मरीजों को विशेष पौधों के पास ले जाकर ठीक करने में समर्थ हो जाएंगे- अगर उन पौधों को हमने इतना प्राणवान कर दिया -प्रेम से, भाव से, संगीत से, प्रार्थना से, ध्यान से। उनको इतना प्राण-शक्ति से भर दिया है तो उनके पास विशेष तरह के मरीज ले जाने से फायदा होगा। फिर हर पौधे में अपनी-अपनी प्राण-ऊर्जा की विशेषताएं हैं। जैसे रेड रोज़, लाल जो गुलाब है, वह क्रोधी लोगों के लिए बड़े फायदे का है। हो सकता है पंडित नेहरू को इसीलिए उससे प्रेम रहा हो। क्रोध के लिए रेड रोज़ बहुत फायदे का है बैक्सटर के हिसाब से। वह क्रोध को कम करता है, वह अक्रोध की धारणा को अपने चारों तरफ फैलाता है। उसका भी अपना आभामंडल है। * पौधों के पास भी हृदय है। माना कि वे अशिक्षित हैं, लेकिन उनके पास हृदय है। आदमी बहुत शिक्षित होता चला जाता है लेकिन हृदय खोता चला जाता है। यह धारणा, हृदय को जन्माने का आधार बन सकती है - मंगल की धारणा, निश्चित ही मंगल की धारणा। हम इतने कमजोर हैं और अमंगल हमें इतना सहज है कि हम अरिहंत पर भी मंगल की धारणा कर पाएं तो चमत्कार है। हम यह भी कह पाएं कि अरिहंत मंगल हैं तो भी मिरेकल है। पत्थर मंगल है, इसके लिए तो कठिनाई पड़ेगी। दुश्मन मंगल है, इसके लिए तो बहुत कठिनाई पड़ेगी / शत्रु मंगल है, इसके लिए तो बहुत कठिनाई पड़ेगी। महावीर आपको भलीभांति जानते हैं। जो श्रेष्ठतम है, उस पर भी आपको कठिनाई पड़ेगी, मंगल की धारणा करने में। उससे शुरू करते हैं - अरिहंत, सिद्ध, साधु और जिन्होंने जाना उनके द्वारा प्ररूपित धर्म। 'धर्म' का जैन परंपरा में वैसा अर्थ नहीं है जैसा अंग्रेजी के 'रिलीज़न' का है या उर्दू के 'मज़हब' का है। और वैसा अर्थ भी नहीं है 26 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340002
Book TitleMahavir Vani Lecture 02 Mangal va Lokottam ki Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size92 MB
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