________________ Hemaraj Pande's Caurasi Bol 395 साभरण बसन मुगति चाहै मानि परिग्रह हठ गहै। रवि चंद मंडल मूल आया वीर वंदन को कहै / / सासुती गति मरजाद मेटहिं सूर ससि को जानते / अनमिल बखानहि और मानहि कलपना सरधान तै // 77 // दूषन अठारह माहि बदलै कहै और सवारिकै। चौतीस अतिसय बदल केई गहहि और विचारिकै / जिनिम(?) तै विनासी सौं(?) लरहि मुनि दोष रंच न बानते(?) अनमिल बखानहि और मानहि कलपना सरधान तै / / 78 / / सोधरम सुरपति जीतने कौ चमर वितरपति गयौ / तसु वज्रदण्ड विलास पंडित कहिहि वीर सरनि भयौ / / कर पूषत(?) मरि गयै न खिरै युगल तनु परवान तै / अनमिल बखानहि और मानहि कलपना सरधान तै // 79 // निरबान होत जिनेस काया खिरै दामिनि बत ही / वर नारि दे थिर करै श्रावक देखि कामी मुनि कही / / केवली तनु तै जीवबध है कहै मत मदपान तै / अनमिल बखानहि और मानहि कलपना सरधान तै 80 // सुर मिले जिन दाढ पूजहि इंद्र जिन जब सिव गमै / जिन वीर मेरु अचल चलयौं जनम कल्यानक समै / / जिनजनम सूचक सुपन चौदह और नही मन आन तें। अनमिल बखानहि और मानै कलपना सरधान तै // 81 / / दोहा गंगा देबी स्यौ कहै पचपन्न वर्ष हज्जार / चक्रवर्ति भरतेस नै कियो लोग व्यवहार // 82 // अडिल्ल भोगभूमि छानवै न गनहि उछेदि कै, चर्म नीर मै दोष न लागै वेदि कै। घृत करि साधित वासी भोजनु लेतु है, सारे फल कौ भुंजत दोष न देतु है ||83!! सवया इकतीसा रिषभ विरागता निमित्त नीलंजना नृत्य मानै नही देव देवी की(?) कीनी विधान की। माता पिता जीवरौं विरागता कौं नाहि धरै वीर वर्धमान औसी गर्भवास आन की। बाहूबल की कहै कि युगल सरूप धारी हाड पूजै कौडे(?) थापि कहै परिवान को(?)। नाभि मरुदेवी के जुगल धरम मानतु है / तिनही जिन उतपत्ति सरधान की // 846 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org