________________
34
Bansidhar Bhatt
Jambu-jyoti
Cp. प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते, अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत् तन्मयो भवेत्...
__ (Md. Up. 2. 2. 4 = Dhbd. Up. 14) + धनुस्तारं शरो ह्यात्मा...शरवत् तन्मयो भवेत्...
(Rhd. Up.38) संखचक्कगयाधरे...
(Utt. 11.21) + संखचक्कयगसत्तिणंदगधरा...
(Pvy. 15) Cp. शंखचक्रगदा...धरस्य वै.....
(Gputt. Up. 1) (15) इमं च मे अस्थि इमं च मे नत्थि, इमं च मे किच्च इमं अकिच्चं... (Utt. 14. 15) इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुन र्धनम्...
(Gt. 16. 13) ...गमिस्सामो भिक्खमाणा कुले कुले...
(Utt. 14.26) Cp. पुत्रैषणायाश्च वितैषणायाश्च लोकैषणायाश्च व्युत्थायाथ भिक्षाचर्यं चरन्ति...
(BdA. Up. 4. 4. 23) + ...ये ह्युपवसन्त्यरण्ये शान्ता विद्वांसो भैक्षचयाँ चरन्तः... (Md. Up. 1. 2. 11) + ...त्रिषु वर्णेषु भिक्षाचर्य चरेत्...
(Sny. Up. 1) (17) असिधारागमणं चेव दुकरं चरिउं तवो...
(Utt. 19.37) ___Cp. क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत् कवयो वदन्ति... (Kth. Up. 1.3. 14) (18) जहा उ चरई मिगे, एवं धम्म चरिस्सामि...
(Utt. 19,77-80) + मिगचारियं चरित्ताणं गच्छइ मिगचारियं...
(Utt. 19. 81-84) + भिगचारियं चरिस्सामि सव्वदुक्खविमोक्खणि...
(Utt. 19.85) Cp. मृगैः सह परिस्पन्दः संवासस्तेभिरेव च ।
तैरेव सदृशी वृत्तिः प्रत्यक्षं स्वर्गलक्षणम्॥ (Bdh . Dh. Su. 3. 2. 19 = 3. 2. 22) + कृच्छ्रां वृत्तिं असंहार्यां सामान्यां मृगपक्षिभिः... (Bdh. Dh. Su. 3. 3. 21) + ...गोवन्मृगयते मुनिः...
(Sny. Up. 2.78) + गोधर्मा मृगधर्मा वा...न लिप्यते कर्मणा पातकेन वा... (Ps. Sü. 5. 18-20) (19) ...भासच्छन्ना इवाग्गिणो...
(Utt. 25. 18) + भासच्छण्णो जहा वण्ही...
(Rs. 15. 1747) Cp. ...दग्धेन्धनमिवानलम्....
(Sv. Up. 6. 19) + ...प्रच्छनो भस्मनेव हुताशनः..
(MBh. 4. 34. 29) + ...भस्मच्छन्नमिवानलम्...
(MBh. 4. 64.6) + ...भस्मच्छन्न इवानल:...
(MBh.3.262.30) ...भस्मांगवृतांगान् इव हव्यवाहान्...
(MBh. 1. 178.9) ...गूढोऽग्निरिव दारुषु...
(MBh. 12.137.40) + ...यथानलो भस्मवृतश्च वीर्यवान्...
(MBh. 4.6.3) + ...भस्मच्छनानिवाग्नीस्तान्...
(MBh. 13.59.7) (20) ...जुगमित्तं च खेत्तओ...
(Utt. 24.7) + ...पुरओ जुगमायाए पेहमाणो...
(Dasa. 5. 1.3) + ...जुगमायाए पेहाए...
(Dasa. 6. 150)
+
+
__
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org