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Bansidhar Bhatt
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. शरीरमिदं ... निरय एव... विण्मूत्र... मलै र्बहुभिः परिपूर्णमेतादृशे शरीरे....
+ अस्थिस्थूणं... नरकेऽपि सः...
+ अत्यन्तमलिनो देह.....
+ अस्थिस्थूणं दुर्गन्धिपूर्ण मूत्रपुरीशय:... (MS 6.76 foll. + किमिच्छन कस्य कामाय शरीरमनुसंज्वरेत्...
+ (see also Samyuttanikāya 421. 20-21 )
(46) एस परिण्णा पवुच्चति कम्मोवसंती...से हु दिट्ठपहे मुणी... Cp.... कर्मक्षये याति स तत्त्वतोऽन्यः...
(47) खेयण्ण निक्कम्म, eg. वीरे आतगुत्ते खेयणे....
Cp. प्रधान-क्षेत्रज्ञपति गुणेश:....
+ यश्चेतनमात्रः प्रतिपूरुषं क्षेत्रज्ञ..... ...नैष्कर्म्य....
+
+
... योऽकामः निष्कामः... ब्रह्मैव सन् ब्रह्माप्येति...
(48) पासग, e. g.
(Mt. Up. 1. 3 = 3. 4, also Mt. Up. 2. vss. 4-8). (Ndpv. Up. 3. 46-48) (Śjbl. Up. 1.21)
== MBh. 12. 329. 42) (Bdā. Up. 4. 4. 12)
(49) तस थावर, eg.
किमत्थि उवधी पासगस्स ? ण विज्जति...
(Ac. I. 131 = 146) (Ác. I. 80, 151)
+ उद्देसो पासगस्स नत्थि...
Cp. न पश्यो मृत्युं पश्यति... सर्वं हु परमः पश्यति....सर्वग्रंथीनां विप्रमोक्षस्तस्मै मृदितकषायाय
तमसस्पारं दर्शयति...
+ यदा पश्यः पश्यते...ईशं पुरुषम्...
अदु थावरा य तसत्ता तसजीवा य थावरत्ताए... Cp. स्थातुश्चरथं भ्रमते...
+ पशुंश्च स्थातुंश्चरथं च पाहि...
+ जगतस्तस्थुषश्च....
+ जगतस्स्थातुरुभयस्य...
+ सर्वस्य लोकस्य स्थावरस्य चरस्य च...
(50) गंथ - गढिय, eg.
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एस खलु गंथे... एस खलु निरए, इच्चत्थं गढिए लोए... Cp. यदा सर्वे प्रभिद्यन्ते हृदयस्येह ग्रन्थयः.... + भिद्यते हृदयग्रंथि :... तस्मिन् दृष्टे परावरे....
+ सोऽविद्याग्रंथिं विकिरतीह...
Jambū-jyoti
(Ac. I. 97) (Ch. Up. 6. 4)
(Ac. I. 109 ) and निक्कम्मदंसी (Āc. I. 115, 145) (Sv. Up. 6.16)
(Mt. Up. 2.5)
see (Gt. 3. 4; 18. 49 ) (BdA. Up. 4. 4. 6)
(Ác. I. 267)
( Rv. 1. 58.5) (RV. 1.72-76)
(Rv. 1. 115. 1 = AV 13. 2. 35)
(RV. 4. 53. 6) (Śv. Up. 3. 18)
(Md. Up. 2. 2. 8)
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(Ch. Up. 7.7.2) (Md. Up. 3. 1. 3)
(Ốc. I. 14) (Kth. Up. 2. 6. 14) = SarR. Up. 32; Ygs Up. 5.45; Ap. Up. 4. 31)
(Md. Up. 2. 1. 10)
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