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________________ महामंत्रनी अनुप्रेक्षा शकाय छ । नमो पद आत्मतत्त्वनी रुचि जगाड़े छ, अरिहं पद शुद्ध आत्मतत्त्वनो बोध करावे छ अने ताणं पद आत्मतत्त्वनी परिणति उभी करे छ । ___ श्री विमलनाथ प्रभुना स्तवनमां पू० उपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराज फरमावे छ के : 'तत्त्व प्री िकर पाणी पाए विमलालोके प्रांजीजी, लोयण गुरु परमान्न दिए तव . भ्रम नांखे सवि भांजीजी।' परमात्मानु ध्यान तत्त्व प्रीतिकर पाणी छ, तत्त्वबोधकर निर्मळ नेत्रांजन छे अने सर्वरोगहर परमान्न भोजन छ । नवकारना प्रथम पदमां थतुं अरिहंत परमात्मानु ध्यान ते त्रणे कार्योने करे छ । __नमो पदथी मिथ्यात्वनो त्याग, अरिहं पदथी अज्ञाननो त्याग अने ताणं पदथी अविरतिनो त्याग थायछे । नमनीयने न नमवु ते मिथ्यात्व छ । आत्माना शुद्ध स्वरूपने न जाणवु ते अज्ञान छ । अने आचरवा लायकने न आचरवु ते अविरति छ । नवकारना प्रथम पढ़ना आराधनथी नमनीयने नमन, ज्ञातव्यनु ज्ञान अने करणीयनु करण थतु होवाथी त्रणे दोषोनु निवारण थई जाय छ । व-अंतरात्मधाब-परमात्मभाव नवकारना प्रथम पदथी बहिरात्मभावनो त्याग, अंतरात्मभावनो स्वीकार अने परमात्मभावनो आदर थाय छ । श्री आनन्दघनजी महाराज सुमतिनाथ भगवानना स्तवनमा फरमावे छे के: 'बहिरातम तजी अंतर आतमा ___ रूप थई थिर भाव, सुज्ञानी; परमातमनुं हो आतम भाववु, आतम अरपण दाव, सुज्ञानी; सुमति चरण कज आतम अरपणा-' सुमतिनाथ भगवानना चरण कमळमां आत्मानु अर्पण करवानो दाव ते छे, के बहिरात्मभावनो त्याग करी, अंतरात्मभावमां स्थिर थई, पोतानो आत्मा तत्त्वथी परमात्मा छे, एवा भावमां रमण करवु। नमो पद वडे बहिरात्मभावनो त्याग अने अंतरात्मभावनो स्वीकार थाय छे तथा अरिहं
SR No.249684
Book TitleAradhak Banvano Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherBhadrankarvijay
Publication Year
Total Pages64
LanguageGujarati
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size5 MB
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