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________________ श्री कापरला स्वर्ण जयन्ती महोत्सव अन्य अस्पृष्ट सृजातीय बृत्तिनो एक सरखो प्रवाह ते ध्यान छ । तेने प्रत्ययनी एकतानता पण कहे छ । __ स्मरण, विचिंतन अने ध्यान ए साधनानु जीवित, प्राण अने वीर्य छ । पुष्ट निमित्तोना आवलम्बनथी ते प्राप्य छ । तेथी पुष्ट निमित्तो साधनाना प्राण गणाय छ । श्रीसिद्धसेनसूरिजी फरमावे के : 'पुष्ट हेतुजिनेन्द्रोऽयम्, मोक्ष-सद्भाव-साधने ।' मोक्षरूपी कार्यनी सिद्धि माटे श्री जिनेन्द्र भगवान अने उपलक्षणथी पांचे परमेष्ठियो पुष्ट निमित्त छ । तेथी श्रीनमस्कार मंत्र सर्व साधकोने पुष्ट आलंबनरूप थईने साध्यनी सिद्धि करावे छ । देहन द्रव्य स्वास्थ्य प्रने प्रात्मानुं भाव स्वास्थ्य पंचमंगल महाश्रुतस्कंधरूप होवाथी सम्यग् ज्ञान स्वरूप छे । पंच परमेष्ठिनी स्तुतिरूप होवाथी सम्यग् दर्शन स्वरूप छे। तथा सामायिकनी क्रियाना अंगरूप अने मन, वचन, कायानी प्रशस्त क्रियारूप होवाथी कथंचित् चारित्र स्वरूप पण छे । ज्ञानमा प्रधानता मननी, स्तुतिमा प्रधानता वचननी अने क्रियामा प्रधानता कायानी रहेली छे । आयुर्वेद मुजब वात, पित्त अने कफनी विषमता ते रोग अने समानता ते आरोग्य छ । ज्यां मन त्यां प्राण अने ज्यां प्राण त्यां मन ए न्याये सम्यग् ज्ञान वात वैषम्यने शमावे छ । ज्यां दर्शन, स्तवन, भक्ति आदि होय त्यां मधुर परिणाम होय छे, अने ते पित्त प्रकोपने शमावे छे । ज्यां कायानी सम्यक् क्रिया होय त्यां गति छे, अने ज्यां गति त्यां उष्णता होय ज। उष्णता कफना प्रकोपने शमावे छे । ए रीते श्री पंच मंगळमां शरीरनु अस्वास्थ्य निप. जावनार त्रिदोषने शमाववानी शक्ति छ । बीजी रीते विचारतां राग ए ज्ञान गुणनो घातक छे, द्वेष ए दर्शन गुणनो घातक छ अने मोह ए चारित्र गुणनो घातक छ । तेथी विपरीत पंच मंगळमां ज्ञान छ, दर्शन छ, चारित्र छे तथा मननी, वचननी, कायानी प्रशस्त क्रिया छे। तेथी पंचमंगलमां देहने दूषित करनार वात, पित्त अने कफ दोषने शमाववानी शक्ति छे, तेमं आत्माने दूषित कर. नार राग, द्वेष अने मोहने शमाववानी पण शक्ति छ। विकृत ज्ञान ए राग छ,, विकृत श्रद्धा ए द्वेष छे अने विकृत वर्तन ए मोह छ। रागी दोषने जोतो नथी, द्वेषी गुणने जोतो नथी अने मोही जाणवा छतां ऊधु वर्तन करे छ । गुण अने द्वषनु यथार्थ ज्ञान करवा माटे राग अने द्वषने जीतवा जोईए तथा यथार्थ वर्तन करवा मोहने जीतवो जोईए । ज्यां ज्यां वर्तनमा दोष जणाय त्यां त्यां ज्ञान दूषित ज होय, एवो नियम नथी। ज्ञान
SR No.249684
Book TitleAradhak Banvano Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherBhadrankarvijay
Publication Year
Total Pages64
LanguageGujarati
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size5 MB
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