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आराधक बनवानो मार्ग
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ते चौद पूर्वोने जणावे छे, अने नव कार चौद पूर्वरूपी श्रुतज्ञाननो सार छे अवी प्रतीति करावे छे । नवकारमां बार 'अं' कार छे, ते बार अंगोने जणावे छ । नव 'ण' कार छे, ते नवनिधानने सूचवे छ ।
पांच 'न' कार पांच ज्ञानने आठ 'स' कार आठ सिद्धिने, नव 'म' कार चार मंगळ अने पांच महाव्रतोने, त्रण 'ल' कार त्रण लोकने, त्रण 'ह' कार आदि मध्य अने अंत्य मंगळने, बे 'च' कार देश अने सर्व चारित्रने, बे 'क' कार बे प्रकारना घाती-अघाती कर्मोने, पांच 'प' कार पांच परमेष्ठिने, त्रण 'र' कार (ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूपी) त्रण रत्नोने, त्रण 'य' कार (मन, वचन, कायाना) त्रण योगो अने तेना निग्रह ने, बे 'ग' कार (गुरु अने परमगुरु प्रेम) बे प्रकारना गुरुप्रोने, बे 'ए' कार सात राज उर्ध्व अने सात राज अधो एवो चौद राज लोकने सूचवे छ । ____ मूळ मंत्रना चोवीस गुरू अक्षरो चोवीस तीर्थंकरोरूपी परम गुरूओने अने अगीवार लघु अक्षरो वर्तमान तीर्थ पतिना अगीपार गणधर भगवंतोरूपी गुरुप्रोने पण जणावनारा छ ।
प्राणशक्ति प्रने मनस्तत्त्व नमस्काररूपी क्रिया द्वारा श्वासनु मनस्तत्वमा रूपान्तर थई जाय छे । जेम जेम नमस्कारना जापनी संख्या वधती जाय छे । तेम तेम आध्यात्मिक उन्नति थतांनी साथे साधक श्वासप्रश्वासने मननी ज क्रिया रूपे जाणी शके छे । तेथी मनना संकल्प विकल्पो शमी जाय छ ।
मनने सीधे सीधी रीते प्राणशक्ति द्वारा ज संयममां लेती क्रिया-प्रणालि अनन्तने पहोंचवानो सहेलामां सहेलो, खूब ज असर कारक अने संपूर्णरीते वैज्ञानिक रस्तो छ । नमस्कारनी क्रिया अने जपद्वारा आ मार्गनी सरळ पणे सिद्धि थती जाय छे, तेथी जाप द्वारा थती नमस्कारनी क्रियानो मार्ग अनन्त एवा परमात्मस्वरूपने पामवानो झडपी, सुनिश्चित अने अनेक महापुरुषो वडे अनुभवीने प्रकाशेलो राजमार्ग छे। तुलसीदासजी नु पण कथन छे के :
नाम लिया उसने सब कुछ लिया,
ए सब शास्त्रका भेद; नाम लिये बिना नरक में पडे,
पढ पढ पुरान अरु वेद । मंत्रना शब्दोमां थतो प्राणनो विनियोग कोई एक अर्थमां ज पुराई न रहेतां शास्त्र निर्दिष्ट सर्व अर्थोमां व्यापि जाय छे, शरीर, प्राण, इन्द्रियो, मन, बुद्धि अने प्रज्ञा पर्यंत सर्व