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________________ ३३० • श्रथवा जो संयमहीन होकर भी अपने को संयमो प्रदर्शित और घोषित करते हैं, उन्हें मैं वन्दना नहीं करूँगा । आनन्द ने संकल्प किया— मैं वीतरागवाणी पर अटल श्रद्धा रखूंगा और शास्त्रों के अर्थ को सही रूप में समझ कर उसे क्रियान्वित करने का प्रयत्न करूँगा । व्यक्तित्व एवं कृतित्व शास्त्रों के अध्ययन में तटस्थ दृष्टि श्रावश्यक : यदि शास्त्र का अर्थ अपने मन से खींचतान कर लगाया गया, तो वह आत्मघातक होगा । उसके धर्म को समझने में बाधा उपस्थित होगी । शास्त्र का अध्ययन तटस्थ दृष्टि रखकर किया जाना चाहिए, अपना विशिष्ट दृष्टिकोण रखकर नहीं । जब पहले से कोई दृष्टि निश्चित करके शास्त्र को उनके समर्थन के लिए पढ़ा जाता है, तो उसका अर्थ भी उसी ढंग से किया जाता है । कुरीतियों, कुमार्गों और मिथ्याडम्बरों को एवं मान्यता भेदों को जो प्रश्रय मिला है, उसका एक कारण शास्त्रों का गलत और मनमाना अर्थ लगाना है । ऐसी स्थिति में शास्त्र शस्त्र का रूप ले लेता है । अर्थ करते समय प्रसंग श्रादि कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है । अर्थ की समीचीनता प्रसंग से : कहीं बाहर जाने समय सेवक नमक कोष के अनुसार कोई साहब भोजन करने बैठे। उन्होंने अपने सेवक से कहा--' सैन्धवम् आनयं । वह सेवक घोड़ा ले आया । भोजन का समय था फिर भी वह 'सैन्धव' मंगाने पर घोड़ा लाया । खा-पीकर तैयार हो जाने के पश्चात् की तैयारी करके पुनः उन्होंने कहा - ' सैन्धवम् श्रानयं ।' उस ले आया, यद्यपि सैन्धव का अर्थ घोड़ा भी है और नमक भी; दोनों अर्थ सही हैं । फिर भी सेवक ने प्रसंग के अनुकूल अर्थ न करके अपनी मूर्खता का परिचय दिया । उसे भोजन करते समय 'सैन्धव' का अर्थ 'नमक' और यात्रा के प्रसंग में 'घोड़ा' अर्थ समझना चाहिये । यही प्रसंगानुकूल सही अर्थ है । ऊट-पटांग अथवा अपने दुराग्रह के अनुकूल अर्थ लगाने से महर्षियों ने जो शास्त्ररचना की है, उसका समीचीन अर्थ समझ में नहीं आ सकता । Jain Educationa International श्रानंद का निर्दोष दान देने का संकल्प : आनंद ने अपरिग्रही त्यागी सन्तों को चौदह प्रकार का निर्दोष दान देने का संकल्प किया, क्योंकि प्रारम्भ और परिग्रह के त्यागी साधु दान के सर्वोत्तम पात्र हैं। उसने जिन वस्तुओं का दान देने का निश्चय किया, वे दान इस प्रकार हैं - ( १ ) प्रशन ( २ ) पान (३) खाद्य - पकवान आदि (४) स्वाद्य - मुखवास चूर्ण आदि (५) वस्त्र (६) पात्र ( ७ ) कम्बल ( ७ ) रजोहरण ( ६ ) पीठ - चौकी For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229937
Book TitleJivan ka Break Sanyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Acharya
PublisherZ_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf
Publication Year1985
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size1 MB
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