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________________ कार्मरण शरीर और कर्म ] [ ६३ है । कर्म-बद्ध आत्मा से ही कर्म - पुद्गल सम्बन्ध जोड़ते हैं और कर्म-शरीर से चिपके हुए कर्म-पुद्गल, अच्छे या बुरे, चाहे इस जन्म के हों या पिछले जन्मों के हों, जीव के साथ चलते हैं और परिपक्व होने पर उदय में आते हैं । जब आत्मा कर्मों से मुक्त हो जाती हैं तो फिर कोई भी पुद्गल उस शुद्ध चैतन्यमय आत्मा से न तो सम्बन्ध जोड़ सकते हैं और न ही आवरण डाल सकते हैं । सूक्ष्म शरीर के द्वारा जो विपाक होता है, उसका रस- स्राव शरीर की ग्रन्थियों के द्वारा होता है और वह हमारी सारी प्रवृत्तियों को संचालित करता है और प्रभावित भी करता है । यदि हम इस तथ्य को उचित रूप में जान लेते हैं तो हम स्थूल शरीर पर ही न रुक कर उससे आगे सूक्ष्म शरीर तक पहुँच जाएँ । हमें उन रसायनों तक पहुँचना है जो कर्मों के द्वारा निर्मित हो रहे हैं । वहाँ भी हम न रुकें, आगे बढ़ें और आत्मा के उन परिणामों तक पहुँचे, जो उन स्रावों को निर्मित कर रहे हैं । स्थूल या सूक्ष्म शरीर उपकरण हैं । मूल हैं आत्मा के परिणाम । हम सूक्ष्म शरीर से आगे बढ़ कर आत्म परिणाम तक पहुँचे । उपादान को समझना होगा, निमित्त को भी समझना होगा और परिणामों को भी । मन के परिणाम, आत्मा के परिणाम निरन्तर चलते रहते हैं | आत्मा के परिणाम यदि विशुद्ध चैतन्य केन्द्रों की ओर प्रवाहित होते हैं, तो परिणाम विशुद्ध होंगे और वे ही आत्म-परिणाम वासना की वृत्तियों को उत्तेजना देने वाले चैतन्य - केन्द्रों की ओर प्रवाहित होते हैं, तो परिणाम कलुषित होंगे । जो चैतन्य - क्रन्द्र क्रोध, मद, माया और लोभ की वृत्तियों को उत्तेजित करते हैं, जो चैतन्य केन्द्र आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा और परिग्रह संज्ञा को उत्तेजना देते हैं, यदि उन चैतन्य केन्द्रों की ओर आत्म-परिणाम की धारा प्रवाहित होगी, तो उस समय वही वृत्ति उभर आएगी, वैसे ही विचार बनेंगे । आज इस बात की आवश्यकता है कि हम निरन्तर अभ्यास द्वारा यह जानने की कोशिश करें कि शरीर के किस भाग में मन को प्रवाहित करने से अच्छे परिणाम आ सकते हैं और किस भाग में मन को प्रवाहित करने से बुरे परिणाम उभरते हैं यदि यह अनुभूति हो जाय तो हम अपनी सारी वृत्तियों पर नियन्त्रण पा सकते हैं और तब हम अपनी इच्छानुसार शुभ लेश्याओं में प्रवेश कर सकते हैं और अशुभ लेश्याओं से छुटकारा पा सकते हैं । इस विषय में गुजराती- मिश्रित राजस्थानी भाषा के प्राचीन ग्रन्थ में कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण तथ्य लिखे हैं जो पता नहीं लेखक के निजी अनुभवों पर आधारित हैं अथवा दूसरे ग्रन्थों के आधार पर, लेकिन बहुत ही आश्चर्यकारी और महत्त्व - पूर्ण हैं । उसमें लिखा है - नाभि कमल की अनेक पंखुड़ियाँ हैं । जब आत्मपरिणाम प्रमुख पंखुड़ी पर जाता है तब क्रोध की वृत्ति जागती है, जब अमुक पंखुड़ी पर जाता है तब मान की वृत्ति जागती है, जब अमुक पंखुड़ी पर जाता है तब वासना उत्तेजित होती है और जब अमुक पंखुड़ी पर जाता है तब लोभ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229859
Book TitleKarman Sharir aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanraj Mehta
PublisherZ_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf
Publication Year1984
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size821 KB
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