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आगम का अध्ययन क्यों ?
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जाना है। ठीक उसी प्रकार यह जीवात्मा स्वाध्याय रूपी नन्दनवन में पहुंचकर अलौकिक आनन्द की अनुभूति करता है। स्वर्ग नरक के दृश्यों को जानकर नरक के भयंकर परमाधामी देवजन्य कष्टों से तथा दश प्रकार की क्षेत्र वेदना जन्य दुःखों से बचने का और स्वर्ग एवं अपवर्ग (मोक्ष) जन्य सुखों को प्राप्त करने की ओर अपने कदम बढ़ाता है। ये सब सदशिक्षाएँ साधक को स्वाध्याय से ही मिलती हैं। अतः हमें पराध्याय छोड़कर सदा स्वाध्याय करना चाहिए। जीवन में आमूलचूल परिवर्तन स्वाध्याय से आना है । स्वाध्याय के माध्यम से आगम में बाग लगाया जा सकता है।
अतः वीतरागों की वाणी पढ़नी चाहिए। आत्मा के लिए स्वाध्याय और शरीर के लिए भोजन अत्यावश्यक है। अपथ्य भोजन जैसे शरीर के लिए हानिकारक है, उसी प्रकार गन्दा साहित्य आत्मा के लिए महान् नुकसानकारक है। जैसा कि कहा है- "गन्दा साहित्य मत पढ़ो, पतन की ओर मत बढ़ो।"
अर्थात् अश्लील साहित्य पढ़ने से जीवन में विकृतियां बढ़ती हैं। जहर पीने से भी गन्दा साहित्य पढ़ना भयंकर है। अतः स्वाध्याय के लिए आगम-साहित्य, आगम शास्त्र एवं धार्मिक ग्रन्थों को सुनना चाहिए। मुक्ति महल में प्रवेश करने के लिए आगम स्वाध्याय एक लिफ्ट है ।
जैसे दुकानों पर सजी व खड़ी पुतली, पहरे के लिए नहीं प्रदर्शन के लिए है। मिट्टी के फल खाने के लिए नहीं बल्कि रूम सजाने के लिए हैं। कागज के फूल सूंघने के लिए नहीं, बल्कि देखने के लिए हैं। इसी प्रकार आचार हीन ज्ञान आत्मदर्शन के लिए नहीं, बल्कि अहं प्रदर्शन के लिए है। अतः हमको स्वाध्याय के माध्यम से अपने आचार धर्म को शुद्ध बनाना चाहिए। चारित्र को निर्मल रखने के लिए चारित्रवान पुरुषों का जीवन सामने रखना चाहिए।
ज्ञानी भगवन्तों ने स्वाध्याय को तीसरी आंख कहा है-- "शास्त्रं तृतीयलोचनम् ।"
महापुरुषों के जीवन की दिव्य भव्य झांकियां देखने को आगम के पृष्ठ ही प्रेरक होते हैं। महापुरुषों के आदर्श जीवन से हम भी अपने जीवन
को पावन प्रशस्त व निर्मल बना सकते हैं। क्योंकि कवि ने कहा-
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"जीवन चरित्र महापुरुषों के हमें नसीहत करते हैं । हम भी अपना जीवन स्वच्छ रम्य कर सकते हैं ।।" महापुरुषों के आदर्श जीवन से अपना जीवन भी बदला जा सकता है। जैसे महामुनि राजकुमाल के प्रशस्त जीवन से हम अपना जीवन प्रशस्त बना सकते हैं। (अन्तगड तीसरा वर्ग)
कामदेव सुश्रावक जैसी दृढ़ता सीखने के लिए हमें उपासकदशांन सूत्र पहना चाहिए स्कन्धक जी. सुदर्शन जी, अर्जुनमाली एवं राजा प्रदेशी
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