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अनुसन्धान-५७
बेंद्रीनइ छ एह प्राण । जीभ वचन बल अधिकां जणि । केंद्रीनइ घ्राण विशेष । चरिंद्रीनइ नेत्र नमेष ॥३३॥ असंनीआ पंचेंद्रय कांन । नवइ प्राण पणि न हुइ सांन । बि-ति-चउ-पंच समूच्छिम जेह । भाषा पर्याप्ति ऊपनी तेह ॥३४॥ विगलेंदीय नइ असंनीआ । तिरिय पंचिंदी इम वन्नीआ ।
औदारिक तेजस बेउ जाणि । कार्मण त्रीगँ सयर वखाणि ॥३५॥ एहतणुं नपुंसकवेद । हुइ आकार करइं बहु खेद । पढवी आप अनइ वनस्पती । बि-ति-चउरिंदी बेहू गती ॥३६।। मानव अनइ तिर्यंच मझारि । अगनि वाउ पुण तिरिय विचारि । नाना परि हुंडक संस्थान । देहतj हिव बोलुं मान ॥३७|| बेंद्री बार जोयण शंखादि । त्रिणि जोयण केंद्रीय आदि । ऊदेही आगमि एवडी । चरिंदी काया जोयणि च(व?)डी ॥३८॥ असंनीआ सनीआ तिर्यंच । जेहं तणइ हुई इंद्रय पंच । सहस जोयण मध्यादिक कहिआ । बि-ति-चउरिंदी असंनीआ ॥३९॥ एहनइं छेवट्ठी संघेण । च्यारइ गति पामइ तिरिएण । नर तिरि नारक नइ देवता । लाभइ अरथ सुगुरु सेवता ॥४०॥ माखिक मदिरा मांखण मंस । स्त्री सेवां मानव अवतंस । मरइ ऊपजइ बि घडीमाहि । समूच्छिम इम भव पूराय ॥४१॥ हिव गर्भज पंचेंद्रय सुणउ । एह विचार अछइ अतिघणउ । मानव तिरिय देव नारकी । पहिलुं चरच कही पारकी ॥४२॥ सुर-नर नारकनइ दश प्राण । पंचेंद्री मन वय काय जाणि । सासोसास अनइ परमायु । छइ पर्याप्ति अनेरी थाय ॥४३॥ आहार सयर इंद्रय ऊसास । भाषा मन महूरति ल्यि वास । सुर नारक वचन समकालि । मानव षट महूरत अंतरालि ॥४४॥ औदारिक वैक्रय आहार । तेजस कार्मण पंच प्रकार । मानव ए सुर नारक त्रिणि । औदारिक तेजस कार्मणि ॥४५।। पुरष नारि नपुंसकवेद । नर तिरि संनीआ नही भेद । सयर नारकी धणसय पंच । तेत्रीस सागर आयु अखंच ॥४६॥