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________________ ५८ अनुसन्धान-५७ लोकाग्र भागईं ते रहईं नास्तिक होईं ते नवि सद्दहईं तेहनइं मोक्ष थापवा भणी पहिलो भेद कहै त्रिभूवन धणी ॥४॥ मोक्ष पदारथनो ए मतो एकपद नाम माटइ छई छतो जे जे एक पद ते छई सही जिम जगि जीव देव घट दही ॥५॥ बै पद नाम पदारथ जेह केतला सत्य असत्य होइ तेह श्रीनंदन जिम हस्तीदंत राजपूत्रनई लक्ष्मीकंत ॥६॥ ५९ जपाकुसुम अनई मृगशृंग ए बिहुं शब्दि छता शिर गंग बिहु शब्द नामईं अछता जेह ६० शशकशृंग वंध्यापुत्र तेह ||७|| तुरंगमसींग अनइं खरसींग पाडो ग्याभणो करहीसींग आकाशकुसुम संयोगी नाम एहनो कहीइं न दीसई ठाम ॥८॥ तिम एक पद नाम मोक्ष निसंदेह छई निश्चय मधुरो संदेह वली मार्गणाद्वारई करी मोक्ष परूपणा कऊं हित ६२ धरी ॥ ९ ॥ बीजो भेद मोक्षनो एह कुण कुण जीव लहइं पुण ह मानव कोइक पामइं मुगति त्रिहुं गति नानई नही ते मुगति ॥१०॥ पंचेंद्रि कोईक सिद्धि जाय बित्ति चउरिंद्री नयें न कहाय त्रसकायथी शिवपुर होई पांच काय पुण न लहई शोय ॥११॥ भव्य जीव ते पामहं एह अभव्यजीव नवि पामई तेह लहइं सन्निया मोक्ष ६३ दूयार असन्निया न लहइं निरधार ॥१२॥ पांचमहं चारित्र लहइं शिवसुक्ख पहिले चिहुं नवि पाम मुक्ख समकित भेद अछईं ते पंच पहिलां चिहुं नहि १४ नहि शिवसंच ॥१३॥ क्षायिक समकित जव जीव लहइं मोक्ष पामई ते जिनवर कहई अनाहारी मुगतिं जई मलई आहारी संसारई रलई ||१४|| केवलदर्शन शिवसुख सही चक्षु अचक्षु अवधि त्रिहु नहीं केवली मोक्ष लहइं सर्वदा बीजई चिहुं ज्ञानई नहीं कदा ॥१५॥ इणि दस थानकि पामई मुगति प्रथम द्वार ए जाणई सुमति बीजुं द्वार ते द्रव्य प्रमाण अभव्य जीवथी अनंत सिद्ध माण ||१६|| त्रीजुं क्षेत्र द्वार लोकाकाश अशंखमई भागि सिद्ध नीवास अथवा सर्वसिद्ध जिहां५ रहई लोक असंखमई भागि सिद्धि ६६ कहें ||१७||
SR No.229650
Book TitleNavtattva Chopai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDiptipragnashreeji
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size130 KB
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