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जून २०१२
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विक्रमना राज्यारोहणनुं आ वर्ष वीरनि. सं. ४५७ हतुं. ८ वर्ष पछी तेओनो स्वर्गवास थतां उज्जैनीनी गादी पर नभः सेन आव्यो. आ नभःसेनना राज्यना ५मा वर्षे अवन्ति साम्राज्य पर शकसेनानो बहु मोटो हल्लो थयो . आ आक्रमणने अवन्तिनी सेनाओ बहु बहादुरीथी खाळ्युं. अने से विजयनी यादगीरीमां अक संवत् प्रवर्ताव्यो के जे आगळ जतां विक्रम संवत्ना नामे ओळखायो. आ संवत् विक्रमादित्यना राज्यारोहणथी १३मा वर्षे प्रवर्त्यो हतो (८ वर्ष विक्रमशासन + ५ वर्ष नभ:सेन). आ वातनुं सूचन नीचेनी पङ्क्तिमां छे
‘“विक्कमरज्जाणंतर, तेरसवासेसु वच्छरपवित्ती ।"
पण वालभी गणनाकारोने आ पंक्तिनो अर्थ जुदो ज लाग्यो. तेथी तेओ उज्जैनीनी गादी पर शकराजा पछी विक्रमादित्य नामना राजा वीरनि. सं. ४७०मां बेठा अवुं स्वीकारी, तेमना शासनना १३ वर्ष बाद वीरनि. सं. ४८३ मां विक्रमसंवत् प्रवर्त्यो अवुं मानता हता. मतलब के पूर्वोक्त पंक्तिना वास्तविक अर्थनी विस्मृति अने काल्पनिक अर्थनी उत्पत्ति बे गणना वच्चे १३ वर्षना तफावतनुं निमित्त बनी. आ परत्वे मुनिश्रीना शब्दों
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'यह बात तो निश्चित है कि पिछले समय में जैन सङ्घ में एक ऐसा समुदाय भी वर्तमान था, जो वीरनिर्वाण का विक्रमराज्यारम्भ से और उसके नाम से प्रचलित संवत्सर से जुदा जुदा अन्तर मानता था और इस मान्यता का कारण मेरे विचार से ५२ वर्ष के विपर्यास के परिणामस्वरूप "तेरसवासेसु वच्छरपवित्ती' इस वाक्य के वास्तविक अर्थ का विस्मरण और काल्पनिक अर्थ की उत्पत्ति ही था । और वालभी गणना में जो १३ वर्ष अधिक थे वे इस मान्यता के समर्थक थे ।"
(वी.नि.सं.जै.का. पृ. १४७)
आम वीरनिर्वाणनां वर्षोमां बे गणनाओ वच्चे तफावतनुं कारण, कापडिया साहेबना मते 'विक्रम संवत्नी उत्पत्ति विक्रमना राज्यारम्भ (वीरनि. सं. ४७०) थी गणवी के राज्यारम्भना १३ वर्ष पछी ?' अ मतभेद छे. तो मुनिश्रीना मते 'विक्रमनो राज्यारम्भ वीरनि. सं. ४७०मां गणवो के ४५७ मां ?' अ गणनाभेद छे. ज्यारे आ लखनारना अभिप्राय प्रमाणे ' श्री श्रीगुप्ताचार्यनी अलग गणतरी करवी के नहि ?' अ विचारभेद छे.