SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसंधान-२५ मोडं वहेलुं जो प्रभु आपज्योरे, तो शी अरजनी वात. कोकिल चाहे कंठ सुशब्दनें रे, अंब छै मांजरि दात. मोटो दानी तुम सम को नही रे, हुं इम मार्नु निरधार. चंद चकोरनें दानी जेहवो रे, तेहवो स्युं दूजो संसारि. ते कारणथी हुं तुमन्हें कउं रे, तुमे छो देवना देव. वाचक मुगति इम विनवें, आपो भवोभव सेव. इति श्रीसंभवजिनस्तवनं ॥ ३ ॥ (कुंथु जिणेसर जाणज्यो रे-ए देशी) अभिनंदन जिन सेवना रे, करो भवि अक मनरे एह सम बीजो को नही हो लाल, मानु ए अनुभववन्त रे. वा०१ आतम आधार ए अछे हो लाल टेक. एहनी साथें प्रीतिने रे, पामी ए पुण्यनो योग रे वा० जिहां तिहां एहवी नवि होइं हो, भवि भवि जिम सुर भोग रे. वा०२ आ० हुं तो पाम्यो पुण्यथी रे, एह प्रभुपद कज केलि रे तस आगें तरj थइ हो, 'मोहन चित्रावेलि रे वा० ३. सुरमणि सुरघट सुरतरु रे, उपल माटि काष्ट रे थइनें अगोचर ते गयां हो ला. मुझ मन जव ए प्रतिष्ट रे. वा०४ सु० ए अभिनव सुरगवी रे ला. स्यु मंत्रादि सिधि रे माहरे एहथी होइ छे हो, मुगतिसुखनी रिधि रे. वा० ५ आ० इतिश्रीअभिनंदनजिनस्तवनं ॥४॥ चातुक मति जिम मेह, मधुकर जिम मालती री. जिम पोयणी चिति चंद, छात्रनें जिम भारती री. १ गज मनि जिम नदी रेव, पद्मस्युं जिम कमला री. पंथी मन जिम गेह, शूक जिम धूप फला री. १. मोहनवेलि तथा चित्रावेली तृणतुल्य छै. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229637
Book TitleVachak Mukti Saubhagya gani Krut Stavan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhay Doshi
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages19
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size398 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy