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________________ 90 अनुसंधान-२५ जी हो वात करतां ईष्टस्युं, जी हो सासोसास जे जाय. जी हो ते लेखे मार्नु घj, जी हो अवर अकों थाय. ३ जि० जी हो एकपखी जे प्रीतडी, जी हो ते श्या कामनी होय. जी हो जेहनें मनि पिण जे वस्यो, जी हो ते विण बीजानें जोय.४ जि० जी हो मालिम तुझनें ताहरी, जी हो मुझने माहरी देव ते स्वरूपिण मूंको रखे, जी हो बांहि ग्रह्यानी टेव. ५ जि० जी हो जिम वाहे चकोर चंदने, जी हो तिम हुं तव मुख कंज. जी हो ए भावें मुझ संपजे, जी हो मुगतिसुखनो पुंज.६ जि०. । इति श्रीधर्मजिनस्तवनं ॥१५॥ भ० १ जि० भ० रजि० भ० ३ जि० (सूरिजन-ए देशी०) जिनवर शांतिनी प्रीतिनें, करवा वांछे मन्न. भविजन. प्रभुजीनी मूरति जोइनें, उलसें माहरी तन्न. वाहलानी साथें प्रेमने, देखी किम खमें दुष्ट भ० तो पिण मनमां नवि धरूं, दिन दिन थाउं पुष्ट भुंडो भुंडाश न मुंको, करीइं कोडि उपाय. भ० काजल दूधे पखालीओ, तो हि न उजल थाय. जे गुणे नवि माचे छ, अवगुणें राचै जेम. भ० मुगताफल तजी भीलडी, गुंजा उपरि प्रेम. मुह मीठे बोलावीइं, दुरजन सुजन न थाय. भ० करि इं सिंह स्वाननें, भश्या विना न रहिवाय. परघरभंजक खल घणा, जेहनी मति विपरीत. भ० हुँ पिण तेहनें नवि गणुं, पुरुषनी एह छे रीति. रांक अंधारूं स्युं करें, सूरय आगलि दीस भ० पुंण वीसी तिहां नवि रहे, जिहां छे वीसवावीस. भ० ४ जि० भ० ५ जि० भ० ६ जि० भ० ७ जि० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229637
Book TitleVachak Mukti Saubhagya gani Krut Stavan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhay Doshi
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages19
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size398 KB
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