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अनुसंधान-२५
श्रीमुनिचंद्रसूरि गुरुगुण गहुंली ।। अथ गुंहलि लिख्यते ॥ (बेनी अपापानयरी उद्यान के वाजा वाजियारे लोल ॥ ए देसी ।।) बेनी चालो गुरु-गुण गावा के हर्ष हीयें घणो रे लोल ॥ बेनी पाटण नयर मोझार । के विचरंता वली रे लोल ॥१॥ बेनी पधार्या गुरुराय के, वर पटोधरु रे लोल । बेनी गुण छत्रीसना धार, के तपगच्छपति रे लोल ।।२।। बेनी सित्तेरमो ए पाट के परंपरा गणी रे लोल । बेनी श्री मुनिचंद्रसूरीस के, लघु वय पद लघु रे लोल ॥३|| बेनी मरुधर नामे देश के, गाम चांपासणी रे लोल । बेनी उत्तमकुले उतपन्न के, भीखाजी पिता रे लोल ॥४॥ बेनी माता धापुनाम के; कुखे अवतर्या रे लोल । बेनी पूरव पुन्य संजोग के, प्रगट्यो लघु वये रे लोल ॥५॥ बेनी गीतारथे करी सोध के, ततक्षण ते मल्या रे लोल । बेनी देखी भाग्य विशाल के, शांत दांत मुद्रा भणी रे लोल ॥६॥ बेनी राजेन्द्रसूरीजीरा शिष्य के गुण रयणे भर्या रे लोल । बेनी मुखकज तेहनो देखी; के मन विकसे घणो रे लोल ॥७॥ बेनी लाव्या खम्भातनयर के, महेन्द्रविजयगणी रे लोल । बेनी त्यांथि पूना नयर के, जाये सह मल्या रे लोल ॥८॥ बेनी पूना केरो संघ के, मलि बहु एकठो रे लोल । बेनी देस-विदेसे लखाय के, कंकुपत्रिका रे लोल ॥९॥ बेनी उत्सवनो बहु ठाठ के, न जाये कह्यो रे लोल । बेनी विक्रम संवत जाण के ओगणी-ओगणसायठो रे लोल ॥१०॥ बेनी मास वैशाखना जाण के, अक्षय [तृतीयातिथी रे लोल । बेनी सुभ वृष लग्ने दीक्षा के; सींहपद लह्यो रे लोल ॥११॥
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