________________
[571
व्याधि सत्योत्तरसो उपसमें, गौतमध्यांन ऋदयमा रमें मरणघात थकी उगरई, गुरु गौतम जा सांनीध करई ॥ ५८ दीसंतो जे माहा विकराल, ते विषधर थाई फूलमाल केसरी सघला मुंकें मांन, गौतमनामइं साहिइं कांन । जलमां बुडंतां दीइं हाथ, मारग भुलां मेलें साथ विघन उपजतां वेगई वलई, मन सुद्धई जो गौतम मिलई ॥ ६० परदल आव्यां पाछां फरई, गौतमसांमि जो सांनीध करई चोर पराछी(घी) धाउ फांसीआ, गौतमनांमई ते वप्र(?) कीआ ।। ६१ गौतमनांमें थाइं सुगाल, गौतमनामइं टलई दुकाल ईत उपद्रव मरगी जेह, गौतमनांमें नासई तेह ॥ चौदसई बावन गणधर सुण्यां, तीर्थंकर चोवीसे तणा अधीक प्रतापी गौतमस्वामि, पाप पणासई जेहनई नाम ॥ ६३ गयणांगण को तारा गणई, मेरु अंगुल वली को नर मणइं समुद्रनीरनी संख्या थाई, गौतमना गुण कह्या न जाय ॥ ६४ प्रह उठीनई पवीत्रहपणई, गौतमना गुण जे नर भणई श्रवणे सुणतां सुख बहू थाय, दुख दालीद्र सवी दुरइं जाय ।। ६५ संवत् सतर बत्रीसौं कहूं, आसो सुदि दसमी दिन लहूं कर जोडी कहइं शांतिदास, गौतम ऋषि आलो सुखवासो (स) ॥६६
इति श्री गौतमस्वामिरास संपूर्ण : ॥
सुदोसण मध्य लषीत्यं ॥ श्री ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org