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[3] मा प्रसवानव पूत्र थाय (?), जनम्यो पूत्र हरणे तस माय मूरत जोवा मांडि घडी, धवलमंगल गाई गोरडी ॥ कुंकमनां किधां छांटणां, पंच सबद तिहां वाजई घणां तलीआं तोरण बांध्यां बार, जोवा आवई नरनई नार ।। दसमई दिन तस दिधुं नाम, इंद्रभुत रूपइं अभीरांम दिन दिन वाधई चढती कला, सीखई सास्त्र सवे आंमला ॥ १२ च्यार वेद मुखपाठई करई, वांणी संस्कृत मुखइं उचरड् वादि सवे मनावि आंण, इंद्रभुत विद्यानी खांण ॥ समोसर्या तिहां विरजिणंद, समोसरण रचई सुरइंद त्रगडई बइठा त्रिभुवनस्वामि, जाइं पाप जस लिधई नाम ।। १४ जेहनई छई अतिसय चोत्रीस, वांणी गुण जेहनइं पांत्रीस जोजनभुमि देसना विस्तरई, भविक जिवना संसय हरई ॥ १५ इंद्रभुत करइं जगनारंभ, रचिओ मंडप रोप्यो थंभ वेदाध्ययन करई विप्रषनवा (?), विद्या कुंभतणी परई भर्यां ॥ १६ आवई रिषनई आवई देव, इंद्रभुत तस सारई सेव हवन करई मंत्राक्षर भणी, देवदुंदुभी आकासई सुणी ।। जे (जै)न देव ए कुंण आवीओ, आउंबर एतो लावीओ हुं जईनई जीतुं एहनई, सीस नमावीइ सुर जेहनई ॥ एम कही चाल्यो जेतलई, समोसरण दिडं तेतलई सीह दिठइं गज मुंकइं मांन, इंद्रभुत मुकउं अभीमांन । ए को ब्रह्मा ए को ईस, चंद सूर कई ए जगदीस अणसमझ्ये हुं आव्यो वही, ए साधई जीते स्युं नहीं ।। मन केरी संदेह भांजस्यई, इंद्रभुत तो चेलो थस्यें इम कही आघो आवीओ, वीरई नांमई बोलावीओ ॥
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