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अनुसन्धान-३१
संगार सुंदर कि(क)रिवि उठ्ठि कंत पच्चूसि गच्छहं । जाएविणु भवभयहरणि जिणभवणि खिणु इक्क अच्छहं ॥ दाण-सील-तव-भावणहिं चउविह धम्मज्झाणु । आइनिवि भत्तिभरि जिण वसुपूज्जह सुविहाण ॥१२॥ जाव जुव्वणु जाई न पारि जर जाव न विप्फुरइ जाम वाहि नहु बपणासइ(वपु णासइ ?)। वसि जाम परियणु सयलु जा न रूवु लायन्नु नासइ ।। जा न इंदिय चंचलई तोलेविणु अप्पाणु । जाइवि जिणमंदरि भणइ विमलजिणहु सुविहाणु ॥१३।। अरह सासय अरुह अरिहंत सिव संकर कुगइहर परमजोइ जोईस मुणिवर । अपुणब्भव परमपयपत्त चत्तदुहदुरिअभरहर ॥ अखय निरंजण परमसुह पयडियरूव अणंत ! । सुविहाणं तुह परमगुरु दुज्जा(ज्ज)यकम्मकयंत ! ॥१४।। धम्म संचहु धम्मु अच्चेहु मणि धम्मसंचउ करउ धम्म होइ परलोअबंधवु । जिणधम्मह बाहिरउं अवरु सव्वु इहलोअ-धंधउ ।। ईय जाणेविणु भवियजणु मा वंचह अप्पाणु । जाइवि जिणमंदिर भणउ धम्मजिणह सुविहाणु ॥१५॥ जेण छड्डिय रायवररिद्धि छ खंड-वसुमइ-रयण-नवनिहाण-हय-गय-सदसण । नियजुवइ-पुरपट्टणई गाम-नगर-बहुदेस-मंडल ॥ पिक्खिवि चंचलु मणुयभवु गहिउ संजमभारु । संतिनाह ! सुविहाण तुह तउं तिअलोअह सारु ॥१६।। सयण- बंधव-भइणि-भिच्चयण सुकलत्त-सुहि-सज्जणिहिं कणयकोसपियपुत्तपत्तहिं । नवि केणइ होइ धर मूढजीव ! परलोइ जंतहं ।। परिहरि माया-मोह जिय ! परिहरियट्टज्झाणु ।
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