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अनुसन्धान ४५
मुनि मेरु संग संगतूरे, आरे जिन जिन जापि पश्य आनंदु || २ भावइ० || आदिनाथगीतं ||
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॥ श्री राग ॥
पहिरि दाखिणु चीरु चंदणु लावइ सरीरु, सकल सिंगार करइ । गजपति गति चालइ बोलइ चतुरपणि, कहु किसु मनु न हरइ ॥१॥ आ रे आजु काइ करिवो, सखी रे जिणह भुवनि जाइवो ||दू०|| मुनिमेर वदति वदन निरखियले परमाणंद भयो । जीराउलि प्रभु नवल निनादिं पारसनाथ जयो ||२|| रे आ आजु० ॥ इति जीराउलापार्श्वनाथगीतं ॥
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[ रागः ] ॥ नाट ॥
सखी रे रहसु जले कवलु आजु तुझ चिति, अवरु न चाहइ रंगु ||१|| मोरा मनु लागिला, देखिनला पारसनाथ ||०|| जय सु सोहागिलु अससेणर (रा) यां तनि, संगति यति मुनिमेर ||२|| मोरा मनु लागिला, देखिनला पारसनाथ ||दू०11 ॥ पार्श्वनाथ गीतं ॥
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[ राग: ] केदारा
पसु देखि नेमि रथ वालिलाइ टालिलइ पातगु कलिमलो ।
राजल काजल पूरित मुख देखी सखी रे वचन कहिलो ||१|| कवणु मति एहु लिली, किहां चातुरी नेह गहिली ॥ ० ॥
अपुचे रंगि रंगु सखी रे न कीजइ परचि रंगि रंगु भलो वीतरागु नेमिनाथ न करइ नेहु, आपुचा तइ मनु लाइलो || कवणु० || रहु सखि पतंग रंगु न धरीजइ, मोरउ रंगु मंजीठ जिसो ।
अविचल सम्बन्धु नेमिराजीमती जले थिर रंगु इसो ॥ कवणु० ॥ ॥ इति नेमिनाथ गीतं ॥
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