________________
68
अनुसंधान - २९
महिमंडल मोटो तूं देवह, चौसठ इन्द्र करे तुझ सेवह त्रिभुवन ताहरूं तेज विराजे, जस परताप जगत्रमें गाजे ||२३||
केता देस कहुं वलि नामें, प्रभुनी कीरति जिण जिण ठामे पुर पट्टण संवाहण गामे, सुणतां नाम भविक सुख पामे ||२४||
छंद देसनाम
अंग वंग कलिंग मरुधर मालवो मरहट्ट अ कास्मीर हूण हमीर हब्बस सवालख सोरट्ठ ए
कामरूअ कूंकण दमण देसें जये तोरो जाप ए इणि देस अविचल प्रबल प्रतपे पास प्रगट प्रताप ए ।। २५ ।।
लाट ने कर्णाट कन्नड मेदपाट मेवात ए
वलि नाट घाट वेराट वागड वच्छ कच्छ कुशात ए सतिलंग गंग फिरंग देसें जपे तोरो जाप ए
इणि० ||२६||
वलि ओड तोड सगोड द्राविड चउड नट महाभोट ए पंचाल ने बंगाल बंगस सबर बब्बरकोट ए मुलतान मागध मगध देसें जपे तोरो जाप ए इणि० ॥२७॥
नमि आड लाड कुणाल कोसल बहुलि जंगल जाणिई खुरसाण रोणअ इराक आरबं तुस (रु) क वा वखाणि कुरु अच्छ मच्छ विदेह देसे जये तोरो जाय ए इणि० ॥२८॥
कासीअ केरल अने केकइ सूरसेन संडिब्भओ गांधार गुर्जर गाजणें वडिआर गूड विदर्भओ आभीर ने सौवीर देसें जपे तोरो जाप ए इणि० ॥२९॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org